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गूंजती रहेगी हमेशा शारदा सिन्हा की मीठी आवाज

  • Writer: MOBASSHIR AHMAD
    MOBASSHIR AHMAD
  • Nov 30, 2024
  • 6 min read

Updated: Dec 1, 2024


प्रिया कुमारी


शारदा सिन्हा नहीं रही। विश्वास नहीं होता कि वह हमें छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए स्वर्ग लोक के लिए प्रस्थान कर गई है। वे काफी दिनों से बीमार थी, और नई दिल्ली स्थित एम्स में उनका इलाज चल रहा था। पति के निधन के बाद से ही अंदर ही अंदर टूट चुकी थी लेकिन लगने लगा था कि वह अपने आप को संभालने लगी है। सोशल मीडिया में उन्होंने एक तस्वीर भी साझा की थी जिसमें लाल बिंदी की जगह काली बिंदी उन्होंने लगा रखी थी। उनके मांग में हमेशा से लाल सिंदूर शोभायमान रहता था, जो पति के निधन के बाद गायब हो गया।


उनके निधन के बाद लगने लगा मानो राणा माय ने खुद शारदा सिन्हा की विदागिरी कराने का समय तय किया हो और उन्हें ले जाने के लिए खुद पालकी सजाकर धरती पर पहुंची हो। तभी तो उनके निधन का समय उसी पावन छठ पूजा के नहाय खाय वाले दिन को चुना है, जिस छठ पूजा को उनके द्वारा गाए गीतों ने लोकल से ग्लोबल बना दिया। इसे नियति कहिए या संजोग की शारदा सिन्हा के जाने के बाद भी न सिर्फ उनके गीत लोगों को याद आते रहेंगे बल्कि जब-जब धरती पर छठ पूजा का आयोजन होगा तब तब उसी दिन उनकी पुण्यतिथि भी मनाई जाएगी।


शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ पटना के गुलबी घाट पर संपन्न हुआ। श्रद्धांजलि देने वालों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, विजय चौधरी अश्विनी चौबे सहित कई नामी गिरामी लोग शामिल थे। उनके पुत्र आयुष्मान सिंहा जब मुखाग्नि दे रहे थे तब टीवी स्क्रीन पर यह दृश्य देख मुझे शारदा सिन्हा जी का एक गीत याद हो आया... पटना के घाट पर, हमहुँ अरधिया देबै हे छठ मैया, हम ना जाइब दोसर घाट देखब हे छठ मैया... मानो लग रहा था कि छठ मैया ने उनकी मन्नत मान ली और उन्हें पटना के छठ घाट पर ही स्थान दे दिया।


थी लेकिन उन्हें पहली बार सा कला का प्रदर्शन करने का अर्थात शुभंकरपुर दर मंगा तरह से कहा जाए, ता जीवन का पहा के मणिकांत झा बताते हैं कि का पुराना नाता रहा है। सार्वजनिक समारोह के ज कार्यक्रम का आयोजन किय से आग्रह किया गया था कि इस गांव की नतनी है वह ग पर चढ़ने के बाद उसने शा पूजा कमेटी के द्वारा उन्हें ₹- था। इसे आप यह भी कह स को जीवन में पहली बार के कारण दिए गए थे।


शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के मिथिला क्षेत्र में सुपौल जिला के हुलास गांव में हुआ था। काफी मन्नत के बाद शारदा सिन्हा के माता-पिता को पुत्री रत्न प्राप्त हुआ। नौ भाई बहन में शारदा अकेली बहन थी। इसीलिए माता-पिता ने बड़े लाड प्यार से उनको पाला था। विवाह भी मिथिला क्षेत्र के बेगूसराय के सिहमा गांव में हुआ था। कर्मभूमि उनकी समस्तीपुर रही। आकाशवाणी दरभंगा में भी मैथिली की गायिका के रूप में काम करती रही।



शारदा सिन्हा के परिवार वालों के अनुसार शारदा बचपन से ही गाना गाया करती थी लेकिन उन्हें पहली बार सार्वजनिक रूप से अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका उनके ननिहाल अर्थात शुभंकरपुर दरभंगा में प्राप्त हुआ था। एक तरह से कहा जाए तो यह शारदा सिन्हा की गीत संगीत जीवन का पहला स्टेज था। आकाशवाणी दरभंगा के मणिकांत झा बताते हैं कि दरभंगा से शारदा सिन्हा का पुराना नाता रहा है। उनके गांव में किसी - सार्वजनिक समारोह के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। पूजा कमेटी - से आग्रह किया गया था कि एक छोटी सी बच्ची जो इस गांव की नतनी है वह गाना गाना चाहती है। मंच पर चढ़ने के बाद उसने शानदार परफॉर्मेंस किया। पूजा कमेटी के द्वारा उन्हें ₹ 10 पारितोषिक दिया गया था। इसे आप यह भी कह सकते हैं की शारदा सिन्हा को जीवन में पहली बार ₹10 का इनाम उन्हें जीत के कारण दिए गए थे।।


यही लड़की बड़े होकर शारदा सिन्हा बनती है और अब एचएमवी के सेट द्वारा आयोजित एक टैलेंट धर्च प्रीणय में ऑडिशन देने जाती है तो रिजेक्ट हो जाती है। रिजेक्शन के बाद उसने तय कर लिया था कि उसे ओवन में कभी भी गाना नहीं गाना है। शारदा सिन्हा ने खुद एफ इंटरव्यू के दौरान बताया था कि ऑडिशन से निकलने के बाद उनहोंने जमकर आइसक्रीम खायी ताकि उनकी आवाज खराब हो सके ।लेकिन उनके पति का कहना था कि सुबह एक बार फिर से कैसेट कंपनी बालों से बात करेंगे। अगले दिन शारदा सिन्हा को फिर से गाना गाने का मौका दिया गया। सामने बेगम अख्तर बैठी थी। जिसे शारदा सिन्हा पहचानती नहीं थी। उनकी आवाज सुनकर एचएमवी कंपनी के मालिक ने अपने अधिकारियों से कहा था कि इस लड़की की आवाज को जरूर रिकॉर्ड करो। इसके बाद क्या था शारदा सिन्हा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बिहार के सभी भाषाओं में उन्होंने गाने गए। मैथिली उनकी मातृभाषा थी लेकिन उन्हें भोजपुरी और मगही से भी


बहुत अधिक प्रेम था। शारदा सिन्हा में पहले मिथिला की बेटी विंध्यवासिनी देवी ने भी छठ गीत गए थे और कैसेट रिलीज किया था। लेकिन शारदा सिन्हा द्वारा गाए गए छठ गीतों का ऐस्स जादू चाला कि उसने घर-घर में अपनी पहुंच बना ली और सब के मन में रच बच गया। आप यह भी कह सकते हैं कि विंध्यवासिनी देवी ने जब छठ गीत रिकॉर्ड किए तब सबके पास ना तो टेप रिकॉर्डर हुआ करता था और ना ही कोई अन्य साधन। हां रेडियो और गांव देहात में होने वाली कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर पर लोग विंध्यवासिनी देवी के गाने सुन पा रहे थे।


छठ पूजा का सबसे पॉपुलर गीत जो आज लोगों को याद है. कांच ही बांस के बार्हगिया, बहँगी लचकत जाय... इस धुन पर सबसे पहले विध्यवासिनी देवी ने ही गाने रिकॉर्ड किए थे जिसे बात के दिनों में शारदा सिन्हा सहित अन्य गायकों ने गया। हालांकि यहां यह बता देना जरूरी है कि यह धून मिथिला क्षेत्र का पारंपरिक धुन है लेकिन, एचएमवी कंपनी ने विंध्यवासिनी देवी का जो छठ गीत रिकॉर्ड किया था उसके म्यूजिक संयोजन का काम भारत रत भूपेन हजारिका को दिया गया था। आसान भाषा में कहा जाए तो ढूंढ पारंपरिक और म्यूजिक संयोजन भूपेन हजारिका का था।


इसी बीच शारदा सिन्हां का एक और गीत लॉन्च हुआ जो लोगों को काफी पसंद आया। गीत के बोल थे... जगदम्बा घर में दियारा बार आयली है...इस जीत ने तो मानो अब तक का सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में यह गीत राष्ट्रगान जैसे गया जाने लगा। बिहार की महिलाएं शाम के समय दिया बाती दिखाने के दौरान इस गीत को गुनगुनाने लगी।


आजु धनवा कुटउ चार बडवा से... के बिना शादी विवाह का सीजन अधूरा लगने लगता था। पटना के जहाज पर पलटनिया बनकर आईहो पिया, ले ले आयहो हे पिया सेनूर बंगाल से... इस जीत ने नई नवेली दुल्हन सबको झकझोड़ दिया और अपनी वेदना प्रकट करने का एक मौका दे दिया।



अधिकांश लोग शारदा सिन्हा को मात्र उनके छठ गीत को लेकर याद करते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। सच यह है की शारदा सिन्हा ने जिस गीत को गाया वह गीत न सिर्फ लोगों के मन में बस गया बल्कि सुपर डुपर हिट साबित हो गया। शारदा सिन्हा की कौन सी गीत की प्रशंसा की जाए और किसकी बुराई। इसका फैसला ना तो आप कर सकते हैं और ना हम। उनकी भोजपुरी गीत जितना मिथिला में फेमस है उतना ही मैथिली गीत भोजपुरी क्षेत्र में फेमस है। भोजपुरी क्षेत्र के लोग मिथिला के लोक पर्व पर सामा चकेवा को इसलिए जानते हैं क्योंकि शारदा सिन्हा ने अपनी कैसेट में एक गीत को शामिल किया था जो काफी प्रसिद्ध है... सामा खेलय चलली, भउजीक संग सहेली... ऐसे बहुत से जीत है जिसको शारदा सिन्हा ने गाकर जीवंत कर दिया। राम जी से पूछे अवधपुरी की नारी... राजा जनक जी के बाग में अलबेला दूल्हा आयो जी... सुतल छलिये बाबाक कोठलिया, अतबे मे आयल कहार।


शारदा सिन्हा कहती है कि एचएमवी से उनकी पहली कैसेट रिकॉर्ड होने के बाद उन्हें मैंने प्यार किया नामक हिंदी सिनेमा में गीत गाने का मौका मिला। जीत के बोल थे।। कहे तुझसे सजना यह तोहरी सजनिया... शारदा सिन्हा ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि इस फिल्म के सभी गाने भारत रत्न लता मंगेशकर ने गायी लेकिन बीच में एक गीत में मेरा नाम भी देख कर मुझे काफी अच्छा लगा। हम आपके - हैं कौन फिल्म की विदाई वाली गीत को कौन भूल सकता है... बाबुल जो तूने सिखाया, सजन घर मैं चली।


यहां मुख्य रूप से शारदा सिन्हा के गजलों पर - बात करना जरूरी है क्योंकि टी-सीरीज से उनके ■ गजल का एल्बम भी निकला है इसके बारे में - अधिकांश लोग नहीं जानते लेकिन अगर आप यूट्यूब पर जाकर सर्च करेंगे तो आपको लिंक आसानी से मिल जाएगा। सुनने के बाद मन करेगा कि इस एल्बम को सुनते रहे।


कितने गीतों के बारे में बात करें। शारदा सिन्हा का हर एक गीत अपने आप में एक आर्टिकल के लायक है। किस गीत का नाम ले और किसका ना ले... आज छठ पूजा है... आरा जिले के एक गांव में बैठकर या आलेख लिख रहा हूं... बहुत दूर से आवाज सुनाई दे रही है... बाट घाट साजि गेलै आई हे औथिन छठ मैया। इसके कुछ ही देर के बाद कानों में आवाज आती है... पहिले पहिल हम कइनी छठि मैया व्रत तोहार

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