वक्फ कानून, सुप्रीम कोर्ट में तारीख पर तारीख
- MOBASSHIR AHMAD

- May 23
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लोकसभा में और राज्यसभा में पहले वक्फ बिल को पास करवाया जाता और इसके बाद इसे कानून बना दिया जाता है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और पहली तारीख को सुनवाई के बाद दूरली तारीख और दूसरी तारीख की सुनवाई के बाद तीसरी तारीख मुकर्रर की गई। मुसलमान समाज के लोगों की लग रहा था की तीसरी सुनवाई के दिन कुछ ना कुछ बड़ा फैसला होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वर्तमान चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अगली तारीख मुकरर कर दी और कह दिया कि केंद्र की मोदी सरकार की ओर से जो हलफनामा दायर किया गया है उसे उन्होंने विस्तार पूर्वक नहीं पड़ा है और ये जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहते। अब अगली सुनवाई 15 मई को की जाएगी।
इस रिपोर्ट में हम आपको विस्तार पूर्वक बताएंगे कि पहले दिन की सुनवाई, दूसरे दिन की सुनवाई और तीसरे दिन की सुनवाई में क्या कुछ हुआ। सबसे पहले तीसरे दिन की सुनवाई में क्या कुछ हुआ उसे जान लेते हैं। उसके बाद बारी-बारी से पहले दिन और दूसरे दिन की सुनवाई पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीय खन्ना ने 5 मई को सुनवाई के दौरान कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2024 को चुनौती देने वाली सभी
याचिकाओं को व्यायमूर्ति बीआर गई की अध्यक्षता बाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा। इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि चूंकि 13 मई को वे रिटायर हो रहे हैं, इसलिए उनके पास अधिक समय नहीं बचा है।

वक्फ संशोधन अधिनियम मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।
तीसरे दिन जैसे हो मामले की सुनवाई शुरू हुई, सीजेआई खन्ना ने कहा कि मैं अंतरिम चरण में कोई निर्णय या आदेश सुरक्षित नहीं रखना चाहता। इस मामले की सुनवाई उचित समय पर करनी होगी, और यह मेरे समक्ष नहीं होगा। यदि आप सभी सहमत हैं. तो हम इसे व्यायमूर्ति गवई की पीठ के समक्ष भेजने को तैयार हैं।
याचिकाकताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, एएम सिंघवी आदि के साथ-साथ भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई के सुझाव को स्वीकार कर लिया। न्यायमूर्ति गवई 14 मई को अगले सीजेआई के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे।
पिछली सुनवाई में, पीठ द्वारा कुछ चिंताएं उठाएं जाने के बाद, केंद्र ने कुछ विवादास्पद प्रावधानों को स्थगित करने का बचन दिया था।

न्यायालय ने 16 और 17 अप्रैल को दो बार विस्तार से मामले की सुनवाई की है। 16 अप्रैल को, याचिकाकताओं की ओर से वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं, इस दौरान 2025 के संशोधन अधिनियम के बारे में विभिन्न चिंताएं जताई जिसमें 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ' प्रावधान को छोड़ना भी शामिल है। उन्होंने तर्क दिया कि सदियों पुरानी मस्जिदों, दरगाहों आदि के लिए पंजीकृत दस्तावेजों को साबित करना असंभव है। इनमें से अधिकांश वक्फ बाय यूजर है।

दूसरी तरफ, भारत के सॉलिसिटर जनरल मेहता ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने न्यायाल को सूचित किया कि वक्फ बाग यूजर प्रावधान प्रभावी है। जब सीजेआई ने एसजी से पूछा कि क्या उपयोगकताओं द्वारा वक्फ की गई संपतियां प्रभावित होंगी या नहीं, तो एसजी मेहता ने जनाब दिया, 'यदि पंजीकृत हैं, तो नहीं, वे पंजीकृत होने पर वक्फ के रूप में हो रहेंगी। साथ ही, केंद्रीय चक्क परिषद और राज्य वक्फ बोडों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने पर भी चिंता जताई गई। सीजेआई ने एसजी मेहता से पूछा कि क्या हिंदू धार्मिक बंदोबस्तों को नियंत्रित करने बाले बोडों में मुसलमानों को शामिल किया जाएगा। सुनवाई के अंत में, न्यायालय ने अंतरिम निर्देश प्रस्तावित किए कि न्यायालयों द्वारा वक्त घोषित की गई किसी भी संपत्ति को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी प्रस्ताव रखा कि चक्क बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के। इस तरह के अंतरिम निर्देश प्रस्तावित करने के पीछे न्यायालय का विचार यह है कि सुनवाई के दौरान कोई 'कठोर' परिवर्तन न किया जाय।

चूंकि एसजी मेहता ने अधिक समय मांगा था, इसलिए मामले की सुनवाई 17 अप्रैल को फिर से हुई, जिसमें उन्होंने बयान दिया कि मौजूदा वक्फ भूमि प्रभावित नहीं होगी और केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोडों में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी। न्यायालय ने बयान को रिकॉर्ड में ले लिया और मामले को प्रारंभिक आपतियों और अंतरिम निदेशों के बाद तय किया कि अगली सुनवाई 5 मई को होगी।
बताते चले की भाजपा के नेतृत्व वाले पांच राज्यों असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र ने विधेयक का समर्थन करते हुए हस्तक्षेप आवेदन दायर किए हैं।
कांग्रेस सांसद डॉ जमेद आजाद एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, दिल्ली के आप विधायक अमानतुल्लाह खान, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, अंजुम कादरी, तैय्यब खान सलमानी, मोहम्मद शफी, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, एसपी सांसद जिया उर रहमान, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, डीएमके, विधायक इजहार अशफी, पूर्व विधायक मुजाहिद आलम आदि याचिकाकताओं में शामिल हैं।

सभी याचिकार्ताओं ने जिन प्रावधानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए आपत्ति दर्ज करवाई है उसमें से कुछ प्रावधान हम आपको नीचे बता रहे हैं।
"उपयोगकर्ता द्वारा चक्फ' प्रावधान को हटाना, केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना, परिषद और बोर्ड में महिला सदस्यों को शामिल करने की सीमा दो तक सीमित करना, वक्फ बनाने के लिए 5 साल तक प्रैक्टिरिंग मुस्लिम के रूप में रहने की पूर्व शर्त, वक्फ-अल-औलाद को कमजोर करना, वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर 'एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास' करना, न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील, सरकारी संपति के अतिक्रमण से संबंधित विवादों में सरकार को अनुमति देना, वक्फ अधिनियम पर सौमा अधिनियम का लागू होना, एएसआई संरक्षित स्मारकों पर बनाए गए वक्फ को अमान्य करना, अनुसूचित क्षेत्रों पर वक्फ बनाने पर प्रतिबंध आदि कुछ ऐसे अवधान हैं जिन्हें चुनौती दी गई है।
दूसरे दिन की सुनवाई के बाद केंद्र सस्कार ने दायर किया हलफनामा

केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। 1332 पन्नों के हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्क संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ।
वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।
नोट: लाइव लॉ के इनपुट के आधार पर इस आलेखा को तैयार किया गया है।
पहले दिन की सुनवाई की महत्वपूर्ण बातें....

कानून के खिलाफ दलील दे रहे कपिल सिब्बल ने कहा प्रधानको चुनौती देते हैं, जिसमें है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सरकार कैसे कह सकती है कि केवल ये लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले 5 सालों से इस्लाम को मान रहे हैं? इतना ही नहीं, राज्य कैसे तय कर सकता है कि में मुसलमान नहीं और इसलिए बनाने के योग्य हूं?'
सिब्बल ने कहा, यह इतना आसान नहीं है। वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाया गया है। अब ये 300 साल पुरानी संपत्ति की वक्फ डीड मागेंगे। यहां समस्या है। इस पर SG ने कहा- वक्फ का रजिस्ट्रेशन 1995 के कानून में भी था। सिब्बल सह कह रहे हैं कि मुतवल्ली को जेल जाना पड़ेगा। अगर वक्फ का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो यह जेल जाएगा। यह 1995 से है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अंग्रेजों से पहले चक्क रजिस्ट्रेशन नहीं होता था। कई मस्जिदें 13वीं, 14थीं सदी की है। इनके पास रजिस्ट्रेशन या सेल डीड नहीं होगी। ऐसी संतों को कैसे रजिस्टर करेंगे। उनके पास क्या दस्तावेज होगे? वक्फ बाई यूजर मान्य किया गया है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो तुषाराना होगी।
सिब्बल ने कहा, 'केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे। अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। गह अधिकारों का हनन है। आर्टिकल 26 कहता है कि नागरिक धार्मिक और समाजसेवा के लिए संस्था की स्थापना कर सकते हैं।
इस मसले पर CJI और SG के बीच तीखी बहस हुई। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करेगी? SG ने कहा कि बक्स परिषद में पदेन सदस्यों के अलावा दो से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।
इस पर बेंच ने कहा, "नए एक्ट में वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से आठ मुस्लिम होंगे। इसमें दो ऐसे जज हो सकते हैं, जो मुस्लिम नहीं। ऐसे में बहुमत गैर मुस्लिमों को इस संस्था का धार्मिक चरित्र कैसे बचेगा?
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता, जबकि कानून के खिलाफ कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह दलीलें रख रहे हैं।
17 अप्रैल की सुनवाई में SG मेहता ने कहा था कि संसद से 'उचित विचार-विमर्श के साथ' पारित कानून पर सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए।
उन्होंने कहा था कि लाखों सुझायों के बाद नया कानून बना है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें गांवों को वक्फ ने हड़प लिया। कई निजी संपत्तियों को वक्फ में ले लिया गया। इस पर बेंच ने कहा कि हम अंतिम रूप से निर्णय नहीं ले रहे हैं।
17 अप्रैल की सुनवाई में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
सनी के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना ने कहा कि हम अगली सुनवाई से केवल 5 रिट याचिकाकर्ता ही न्यायालय में उपस्थित होंगे। हम यहाँ केवल 5 चाहते हैं। आप 5 का चयन करें। अन्य को या तो आवेदन के रूप में माना जाएगा वा निपटाया जाएगा। हम नाम का उल्लेखा नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका कताओं से यह भी कहा कि आप लोग कृपया एक नोडल वकील नियुक्त करें। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना ने कहा कि मैंने पहले ही कह दिया है कि उपयोगकर्ता द्वारा घोषित या पंजीकृत वक्फ भी वक्फ है।

इस बात पर सहमति है कि पक्षकार उन याचिकाओं को पहचान करेंगे जिन्हें लीड केस माना जाएगा। लीड मामलों में अन्य याचिकाओं को आवेदन के रूप में माना जाना चाहिए।
1995 के चक्फ अधिनियम और 2013 में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं की इस सूची से अलग से दिखाया जाएगा। 2025 के मामले में रिट दायर करने वाले याचिकाकताओं को विशेष मामले के रूप में जवाब दाखिल करने की स्वतंत्रता है। संच और राज्य तथा वक्फ बोर्ड भी 7 दिनों के भीतर जवाब दाखिल करेंगे।
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