वक्फ बिल पर नीतीश कुमार क्यों मान गए, पटना में अमित शाह से क्या हुई बातचीत
- MOBASSHIR AHMAD

- Apr 16
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प्रीति सिंह
अब जबकि वक्फ बिल पास हो चुका है तब धीरे-धीरे इस बात को लेकर पर्दा उठ रहा है कि आखिरकार नीतीश कुमार इस बिल को लेकर क्यों मान गए और उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया। बिहार विधान मंडल बजट सत्र शुरू होते ही राष्ट्रीय जनता दल अर्थात तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद के तमाम विधायक और एमएलसी ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया था। एआईएमआईएम के नेता अख्तरुल इमान ने तो इतना तक कह दिया था कि यह हमारे वजूद पर हमला है। हमसे हमारे बाप दादाओं द्वारा दान में दी गई जमीन को छीनने का प्रयास है और यही कारण है कि मोदी सरकार वक्फ अमेंडमेंट बिल ला रही है। जदयू के नेता और बिहार सरकार के मंत्री जमा खान ने तो सवाल पूछने पर साफ कह दिया था कि मुस्लिम समाज के लोगों की जो भी समस्या हैं वह इस बिल में दूर किया जाएगा और जो भी सुझाव दिए गए हैं वह जेपीसी में भेजा गया है। भाजपा माले के विधायक दल के नेता महबूब आलम ने भी इस बिल का बिहार विधान मंडल बजट सत्र के दौरान जबरदस्त विरोध किया था।
इसी बीच रमजान का पाक महीना शुरू होता है और जगह-जगह इफ्तार पार्टी का आयोजन किया जाता है। लेकिन जिस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया जाता है उससे एक दिन पहले बिहार की राजनीति में बड़ा बवाल शुरू हो जाता है। इमारत-ए-शरिया और अन्य मुस्लिम धार्मिक संगठन नीतीश कुमार की इस इफ्तार पार्टी का विरोध करती है। इस बाबत एक चिट्ठी जारी होती है जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित अन्य सात मुस्लिम संगठनों को भी नाम लिया गया था। इसमें लिखा था कि इमारत-ए-शरिया सहित बिहार के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने रविवार 23 मार्च को होने वाली मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दावत-ए-इफ्तार के बायकॉट की घोषणा करती है। चिराग पासवान की पार्टी द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का भी इस पत्र के माध्यम से विरोध किया गया था। इन संगठनों की ओर से नीतीश कुमार को लिखे गए पत्र में कहा गया था कि यह फैसला आपकी ओर से प्रस्तावित वक्फ संशोधन, बिल 2024 के समर्थन के खिलाफ विरोध के तौर पर लिया गया है।
पत्र लिखने वाले संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा हिंद, जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद, खानकाह मुजीबिया और खानकाह रहमानी शामिल हैं। विल्कुल स्पष्ट अंदाज में लिखे गए पत्र में इन संगठनों ने नीतीश कुमार से कहा था कि आपने धर्मनिरपेक्ष शासन और अल्पसंख्यकों के अधिकार की सुरक्षा के वाट्टे पर सत्ता हासिल की थी, लेकिन भाजपा के साथ आपका गठबंधन और अतार्किक व असंवैधानिक वक्फ संशोधन बिल को आपका समर्थन आपके उन्हीं वादों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। आपकी इफ्तार की दावत का मकसद सद्भावना और भरोसा को बढ़ावा देना होता है लेकिन भरोसा केवल औपचारिक दावतों से नहीं बल्कि ठोस नीति और उपायों से होता है। आपकी सरकार की मुसलमानों की जायज मांगों को नजरअंदाज करना इस तरह की औपचारिक दावतों को निरर्थक बना देता है।

इन संगठनों ने स्पष्ट शब्दों में अपनी मांग दोहराते हुए कहा था कि वक्फ संशोधन बिल 2024 से समर्थन तुरंत वापस लिया जाए। वक्फ संशोधन बिल के नुकसान को बताते हुए पत्र में कहा गया था कि अगर यह संशोधन लागू होता है तो यह शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, महिलाओं के केंद्र और धार्मिक स्थानों पर सदियों पुरानी वक्फ जायदादों को खत्म कर देगा। इससे मुस्लिम समुदाय में ग्रीबी और अभाव और बढ़ेगा जैसा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में पहले ही बताया जा चुका है। इस पत्र में कहा गया था कि यह पत्र जुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ एक मजबूत स्टैंड है न कि बातचीत से इनकार। अगर बातचीत वास्तविक और प्रभावी नौति व सुधार की राह बनाए तो हम सार्थक बातचीत के लिए तैयार हैं।
तय समय से दो घंटे पहले जब हम मुख्यमंत्री आवास के बाहर पहुंचे थे तो मुख्य गेट जो राज्यपाल भवन के सामने है जहां देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की मूर्ति लगी हुई है वहां से सिर्फ और सिर्फ विधायक, एमएलसी और मंत्रियों सहित वीआईपी लोगों को ही प्रवेश दिया जा रहा था। हमें बताया गया कि दूसरे गेट से आम लोग सीएम आवास के अंदर जा सकते हैं और इफ्तार पार्टी में शामिल हो सक़ते हैं। जो लोग अंदर जा रहे थे उनसे उनका मोबाइल जप्त किया जा रहा था अर्थात जमा करवाया जा रहा था। इस इफ्तार पार्टी में बिहार के राज्यपाल के अलावे चिराग पासवान, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी शामिल हुए थे। लेकिन इफ्तार पार्टी खत्म होने के बाद अंदर से बाहर निकलें कुछ पत्रकारों से जब हमने पूछा तो उनका कहना था की भीड़ तो ठीक-ठाक थी लेकिन धर्मगुरुओं की संख्यां पिछले साल से काफी कम थी। साफ था की इफ्तार पार्टी का जो विरोध हुआ था वह आंशिक रूप से सफल रहा। इसमें मुस्लिम समाज के वही लोग शामिल हुए जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट सरकार से उपकृत थे या सरकार से लाभान्वित थे।
इफ्तार पार्टी के बाद मानो सरकार में कोहराम, मच गया... हालांकि इफ्तार पार्टी के बाद सीएम आवास से बाहर निकले जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय झा ने कहा कि इफ्तार पार्टी पूर्ण रूप से. सफल रहा और जो लोग विरोध कर रहे थे उन्हें उनकी हैसियत पता चल गई। संजय झा का यह भी कहना था कि मुस्लिम समाज के लोगों के लिए जितना काम नीतीश कुमार ने किया है उतना आज तक किसी ने नहीं किया है। चुनाव आने के बाद बिहार की जनता ऐसे लोगों को सबक सिखाएगी जो नीतीश कुमार का विरोध कर रहे हैं। इस बयान पर बिहार विधान मंडल बजट सत्र के दौरान जमकर बवाल हुआ। विपक्षी दल के तमाम मुस्लिम नेताओं ने इस बयान का पुरजोर विरोध किया।

इसी बीच खबर आती है कि लालू प्रसाद यादव इस बार राबड़ी आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजनं नहीं करने जा रहे हैं बल्कि राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया जा रहा है। मामला न सिर्फ चौंकाने वाला था बल्कि सोचने पर विवश करने वाला था कि आखिरकार ऐसा क्यों हो रहा है। इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। लालू प्रसाद यादव की ओर से हर बार राबड़ी आवास पर ही इफ्तार पार्टी का आयोजन होता रहा। एक इफ्तार पार्टी तो आपको वाद भी होगा जिसमें नीतीश कुमार को भी न्योता भेजा गया था और मुख्यमंत्री आवास से नीतीश कुमार पैदल पैदल चले आए थे। और इसके कुछ ही महीना के बाद बिहार में सरकार बदल गई थी और एक बार फिर से महागठबंधन ने सरकार बनाया था और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे।
अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास पर जब हम इफ्तार पार्टी में शामिल होने पहुंचे तो वहां का नजारा कुछ अलग था। मुख्यमंत्री आवास पर जो इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया था उसमें पांच हजार से अधिक लोगों की भीड़ वहां पर दिख रही थी। मुस्लिम समाज के अधिकांश धर्म गुरु भी उपस्थित थे। मामला साफ था कि बक्फ बिल के विरोध में जिन लोगों ने नीतीश कुमार का विरोध किया उन्हीं लोगों ने लालू प्रसाद यादव को अपना समर्थन दे दिया है। यही कारण था कि बीमार होने के बाद भी लालू प्रसाद यादव गदगद थे। इफ्दार पार्टी में एक्टिव दिख रहे थे। अब्दुल ग्रारी सिद्दीकी के आवास में इफ्तार पार्टी को लेकर कई पंडाल बनाए गए थे जैसे गेट से एंट्री करते ही आम लोगों के लिए बड़ा सा पंडाल बना था जिसमें इफ्तार का आयोजन था। बीच में एक पंडाल था जहां लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, राबड़ी देवी सहित राजद के तमाम बड़े नेता और आमंत्रित विप'नेताओं के लिए बैठने की व्यवस्था की गई थी। लोजपा पारस गुट के नेता और पूर्व सांसद प्रिंस राज भी इस इफ्तार पार्टी में शामिल होने पहुंचे थे। मतलब साफ था की आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पारर्स और लालू प्रसाद यादव के बीच सीट सेंपरिंग पर बातचीत हो रही है और संभव है कि पारस गुट को पांच से दस विधानसभा सीट का ऑफर दिया जाए। इसके अतिरित सिद्दीकी के आवास पर एक और बड़ा पंडाल बनाया गया था जहां मुस्लिम समाज के जानेमाने धर्मगुरु बैठे हुए थे और जहां पर रोजा खोलने से पहले नमाज अदा की गई। बीमार अवस्था में भी लालू प्रसाद यादव अपने स्थान से उठकर उस पंडाल में पहुंचे जहां धर्मगुरु बैठे थे।
अब्दुल बारी सिद्दीकी, के आवास पर लालू प्रसाद यादव द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी की सफलता ने जदयू के बड़े-बड़े नेताओं को अंदर से हिला दिया था। मुख्यमंत्री आवास में बैठे नीतीश कुमार भी परेशान हो उठे थे। जिसके बाद जदयू के बड़े-बड़े नेता एक्टिव्य होते हैं और मुस्लिम समाज के लोगों से बातचीत करते हैं कि आखिर इस बिल को लेकर उनकी क्या परेशानी है। और यहीं से असली खेल शुरू हो जाता है। बिहार सरकार के मंत्री जमा खान के आवास पर आयोजित इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार शामिल होते हैं और वहां मुस्लिम समाज के लोगों से फीडबैक लेते हैं। जानने की कोशिश करते हैं कि आखिरकार मुस्लिम समाज के लोग उनसे नाराज क्यों हैं? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तफसील से सब कुछ बताया जाता है। नीतीश कुमार उन लोगों को आश्वासन देते हैं कि आप लोगों के अंदर जो डर बैठा है उसे दूर किया जाएगा।
इसी बीच बिहार विधान मंडल सत्र समाप्ति की ओर रहती है और पटना के गर्दनीबाग में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित तमाम मुस्लिम संगठनों के द्वारा वक्फ बिल के विरोध में धरना प्रदर्शन का आयोजन किया जाता है। कग्रिस, राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा माले, प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज मुस्लिम समाज के लोगों को अपना अपना समर्थन देने का ऐलान करती है। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव तो इस सभा को संबोधित करने के लिए खुद पहुंचते हैं। वहां डंके की चोट पर तेजस्वी यादव कहते हैं कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी सरकार बने चाहे ना बने वे इस बिल का विरोध करते हैं और मरते दम तक मुसलमानों के साथ रहेंगे। लालू यादव कहते हैं कि हम इस बिल का विरोध करते हैं लेकिन नीतीश कुमारं इस बिल का समर्थन कर रहे हैं। सीएम आवास में नीतीश कुमार जदयू के बड़े-बड़े नेताओं के साथ बैठकर इस भाषण को सुन रहे थे और परेशान हो रहे थे। मामला साफ था लालू प्रसाद ने आगामी बिहार बिधानसभा चुनाव को देखकर माय समीकरण को मजबूत करने का फैसला ले लिया था। माय समीकरण अर्थात मुस्लिम प्लस यादव समीकरण। नीतीश जानते हैं कि अगर मुस्लिम समाज के लोग लालू प्रसाद यादव को एक तरफा बोट करेंगे तो उनकी स्थिति चुनाव में खराब हो जाएगी। इसी समीकरण को तोड़कर नीतीश कुमार सत्ता को कुर्सी पर बैठे थे। भाला अपने सामने फिर से माय समीकरण को यह बनते हुए कैसे देख सकते हैं।

यहीं से असली खेल शुरू होता है और इसी बीच देश के गृह मंत्री अमित शाह दो दिवसीय यात्रा पर बिहार आते हैं। इस दौरान पहली बार कुछ ऐसा होता है जो आज से पहले कभी नहीं हुआ था। अमित शाह एनडीए के नेताओं के साथ बैठक करने के लिए मुख्यमंत्री आवास पहुंचते हैं। इस बैठक में जदयू के नेता संजय झा, ललन सिंह, बीजेपी के दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिंहा, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी सहित कई अन्य नेता उपस्थित होते हैं। इस बैठक के उपरांत खबर आने लगती है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बैठक के दौरान अमित शाह से वक्फ बिल को लेकर बात करते हैं और बताते हैं कि बिहार की वर्तमान स्थिति क्या है। मुस्लिम समाज के लोगों में इस बिल को लेकर कुछ डर है जिसे दूर करना आवश्यक है। उन लोगों को इस बात का डर सता रहा है कि उनके मस्जिदों कब्रिस्तान और मदरसों को तोड़ा जा सकता है। उन्हें इस बात का भी डर सता रहा है कि डीएम को यह अधिकार दिया जा रहा है कि किसी भी जमीन पर अगर विवाद होता है तो वहीं अब फैसला करें कि यह जमीन किसका है। सूत्रों की माने तो अमित शाह नीतीश कुमार से कहते हैं कि आपके मन के अंदर जो जो भी संशय से है लिखकर दे दीजिए उसे बिल में दूर कर दिया जाएगा। गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार से बात करने के दौरान उनको समझाया कि बिल गरीब और पसमांदा मुसलमानों के पक्ष में है। वो बिल पारित होने के बाद हमारे साथ आ सकते हैं। इसके बाद नीतीश कुमार बिल का समर्थन करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था वैसे-वैसे मुस्लिम समाज के लोगों का विरोध नीतीश कुमार को लेकर एग्रेसिव हो रहा था। लेकिन जब जदयू द्वारा अपने सांसदों को बिल का समर्थन करने के लिए और सदन में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया गया तो फिर इफ और बट का सारा खेल खत्म हो गया। पहले लोकसभा में और फिर राज्यसभा में बिल लाया जाता है और जदयू के तमाम नेता इसका समर्थन करते हैं और लोकसभा में और राज्यसभा में बिल क्यों अचा है इसको लेकर प्रकाश डालते हैं।

नीतीश कुमार के कहने पर बिल में कौन-कौन सा बदलाव हुआ
अब सवाल उठता है कि नीतीश कुमार ने गृह मंत्री अमित शाह से इस बिल में कौन-कौन से बदलाव करने को कहा और केंद्र की मोदी सरकार ने किन-किन बातों का ध्यान रखा। आगे बढ़ने से पहले इतना क्लियर कर दें कि बीजेपी खासकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पता है कि नीतीश कुमार अपनी शर्त पर अडिग रहते हैं और अगर उनके साथ धोखा किया गया तो नीतीश कुमार कभी भी साथ छोड़ सकते हैं।
विहार से प्रकाशित होने वाली एक बड़ी अखबार की खबरों पर विश्वास करें तो अमित शाह ने नीतीश कुमार के बाद जदयू के दो बड़े नेताओं से बंद कमरे में बात की और उन्हें इस बारे में अवगत करवाया। वह दो नेता कोई और नहीं बल्कि ललन सिंह और संजय झा थे। आप भी जान लीजिए कि नीतीश कुमार के बाद और इन दो नेताओं से बातचीत के बाद इस बिल में कौन-कौन से बड़े बदलाव किए गए।।।
बिल के मूल ड्राफ्ट में प्रावधान था कि नया कानून लागू होने के छः महीने के अंदर एक सेंट्रल पोर्टल पर सभी वक्फ प्रॉपर्टीज का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी था। छः महीने बाद प्रॉपर्टी को लेकर कानून के तहत कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं की जा सकती। जेडीयू के सांसद दिलेश्वर कामत ने इस प्रावधान में संशोधन का सुझाव दिया था, जिसे जेपीसी ने स्वीकार कर लिया। अब वक्फ ट्रिब्यूनल किसी वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन की टाइमलाइन बढ़ा सकता है। इसके लिए प्रॉपर्टी के मुतवल्ली यानी केयरटेकर को ट्रिब्यूनल के सामने इसकी उचित वजह बतानी होगी। नीतीश कुमार की ओर से अमित शाह को यह भी कहा गया की जमीन का जिम्मा राज्य सरकार के पास होता है इसीलिए बड़े स्तर पर कोई विवाद होता है तो राज्य सरकार से विचार विमर्श किया जाए। लोगों को जिला अधिकारी पर विश्वास नहीं है इसीलिए उसे किसी बड़े अधिकारी की यह जिम्मा दिया जाए कि विवाद होने के बाद मामले का निपटारा किया जा सके।
दावा करने वाले तो इतना तक दावा करते हैं कि भाजपा की टॉप लीडरशिप ने बिल के एक-एक पॉइंट को क्लियर किया। शाह ने ललन सिंह और संजय झा के साथ मीटिंग की। उन्हें पहले विश्वास दिलाया कि बिल मुसलमान के हित में है और इसके बाद नीतीश कुमार को कॉन्फिडेंस में लिया गया।
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