मुस्लिम समाज के लोग, चुनाव में नीतीश का साथ देंगे या छोड़ देंगे?
- MOBASSHIR AHMAD
- Apr 16
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बिल पास होने के बाद से मुस्लिम समाज के लोगों की मिश्रित प्रतिक्रिया मीडिया के माध्यम से सामने आ रही है। एक बड़ा वर्ग जहां इस बिल के पास होने से नाराज है तो वहीं मुस्लिम समाज के कुछ खास लोग खुश नजर आ रहे हैं। जो नाराज है उनका कहना है कि नीतीश कुमार से अधिक उनकी नाराजगी ललन सिंह से है क्योंकि ललन सिंह और संजय कुमार झा ने मिलकर नीतीश कुमार को बरगलाया है। अब उनकी मानसिक स्थिति पहले जैसी नहीं है यही कारण है कि उनको कुर्सी पर बिठाकर उनका फायदा उठाया जा रहा है। हालाकि कुछ ऐसे भी लोग थे जिनका कहना था कि अब 'बिहार का मुस्लिम समाज नीतीश कुमार को कभी भी चुनाव में वोट नहीं देगा और साल 2025 विधानसभा चुनाव में जो परिणाम आएगा उसे अपने आप सब कुछ पता चल जाएगा।
वहीं राजधानी पटना से 30 किलोमीटर दूर स्थित फतुहा के गोविन्द पुर में बिल के पास होने के बाद मुस्लिम समाज के लोगों के द्वारा खुशी में पटाखे फोड़े जा रहे थे और मिठाइयां बांटी जा रही थी। इन लोगों का कहना था कि इस बिल के पास होने से हमारी परेशानी दूर हो जाएगी। वक्फ वाले हमारे जमीन पर दावा कर रहे हैं और बुलडोजर चलाने की धमकी दे रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस नए बिल के आने के बाद हमारे जमीन को लेकर जो जबरदस्ती विवाद किया जा रहा है वह खत्म हो जाएगा।

फतुहा के गोविंदपुर में 19 डिसमिल जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। वहां के मुतवल्ली बबलू मियां ने दावा किया था कि यह जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड की है। उनके अनुसार, 1959 में 21 डिसमिल जमीन का रजिस्ट्री वक्फ बोर्ड के नाम पर हुआ था, जिसमें से दो डिसमिल जमीन बाद में बाजार समिति को चली गई। अब बचे 19 डिसमिल जमीन पर वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जता रहा है। यह विवाद प्लॉट नंबर 217, 219 और 199 से जुड़ा है, जहां एक मजार भी स्थित है।
हालांकि, लोगों का दावा है कि वे पिछले सौ सालों से वहां रह रहे हैं और यह उनकी पुश्तैनी जमीन है। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड का दावा पूरी तरह झूठा है। निरंजन प्रसाद ने कहा, '2021 में वक्फ बोर्ड ने इस जमीन पर अपना दावा ठोका था। इसके बाद हम कोर्ट गए और सुनवाई के बाद कोर्ट ने जमीन पर स्टे लगा दिया। अब इस बिल से उम्मीद है कि हमारी जमीन सुरक्षित रहेगी।'
एक और अन्य विवादित मामले पर अगर ध्यान दिया जाए तो गर्दनीबाग के कच्ची तालाब पर सुन्नी वक्फ बोर्ड दावा करता है कि तालाब की जमीन वक्फ बोर्ड की है। इससे हर साल विवाद खड़ा होता है। इस मामले पर हाईकोर्ट ने कहा कि यह सरकारी जमीन है। हर साल छठ पूजा होती है। हजारों श्रद्धालुओं की आस्था इससे जुड़ी है। वहां से कब्रिस्तान काफी दूर है, फिर भी वक्फ वाले बार-बार कहते हैं कि यह जमीन वक्फ की है।
कच्ची तालाब के आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि ट्रिब्यूनल ने बिना किसी नोटिस और कागज दिखाए इस जमीन को वक्फ का बता दिया। जबकि यह जमीन भवन निर्माण विभाग की है।

वहीं, लोगों का कहना है कि इस तालाब पर लंबे समय से छठ पूजा की जा रही है। साल 1920 में इस जमीन के बदले उतनी ही जमीन कब्रिस्तान के लिए मुस्लिम समाज को दी गई थी। गोविंदपुर के अलावा फतुहा के कई अन्य इलाकों में भी वक्फ बोर्ड ने जमीनों पर दावा किया था। स्टेशन रोड और पटना-बख्तियारपुर पुरानी सड़क के पीछे की जमीनों पर भी वक्फ बोर्ड ने अपना अधिकार जताया था।
हालांकि, कोर्ट में सुनवाई के बाद इन सभी मामलों को खारिज कर दिया गया। स्थानीय लोगों का मानना है कि नए संशोधन से अब वक्फ बोर्ड की ओर से फर्जी दावों की संभावना खत्म हो जाएगी। समाज या तो प्रशांत किशोर के साथ या लालू प्रसाद यादव के साथ गोल बंद हो चुका है। इतना तो तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को 2 से 5% का वोट परसेंटेज का घाटा होगा। हालांकि वे लोग यह भी कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव पर अगर ध्यान दिया जाए तो मुस्लिम समाज ने नीतीश कुमार को बोट करना लगभग बंद कर दिया है। यही कारण है कि नीतीश कुमार की पार्टी 50 सीट से कम पर आकर सिमट गई और तेजस्वी यादव बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक दल बन गए। अंत में अपनी कैबिनेट में किसी मुसलमान को मंत्री बनने के लिए नीतीश कुमार को मायावती की पार्टी से चुनाव जीते जमा खान को जदयू में शामिल करा कर उन्हें मंत्री बनाया गया।
नीतीश कुमार भली-भांति जानते हैं कि अकेले मुसलमान के दम पर वह चुनाव नहीं जीत सकते हैं और जब साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा था तो मुस्लिम समाज ने उनका साथ नहीं दिया था। नीतीश जानते हैं कि अगर बीजेपी के साथ गठबंधन रहती है तो लोकसभा चुनाव में जिस तरह से 12 लोकसभा सीट पर जदयू, 12 लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी, पांच लोकसभा सीट पर चिराग पासवान की पार्टी, एक लोकसभा सीट पर जीतन रामनाथ मांझी की पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया। कुछ ऐसा ही प्रदर्शन आगामी बिहार विधानसभा में देखने को मिल सकता है।
बिहार में वक्फ की कितनी जमीन है और किन-किन जमीनों पर विवाद है

वक्फ की बिहार में तीन हजार से अधिक प्रॉपर्टी सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड के अधीन है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास राज्य में करीब 2900 तो शिया वक्फ बोर्ड के पास 327 संपत्तियां हैं। इनमें से 400 से अधिक प्रॉपर्टी पर विवाद है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मुताबिक, वक्फ के पास 29 हजार बीघा से ज्यादा जमीन का मालिकाना हक है।
वहीं कुछ ऐसे हिंदू लोग भी हैं जो कहते हैं कि मुस्लिम समाज के लोगों के द्वारा हमारी संपत्ति पर जबरन अधिकार किया जा रहा है जो सही नहीं है।
बिल को लेकर क्या कहते हैं शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद अफजल अब्बास

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद अफजल अब्बास ने कहा, 'हमने इस बिल में 32-34 बदलावों का सुझाव दिया था, लेकिन JPC ने केवल 17 बदलावों की सिफारिश की। इनमें से भी कई को नजरअंदाज कर दिया गया। सिर्फ 14 बदलावों को ही मंजूरी दी गई।'
उन्होंने बताया, 'सिर्फ शिया वक्फ बोर्ड की 327 संपत्तियां हैं, जिन पर दूसरों ने कब्जा कर रखा है। बिहार में 138 जमीनों पर विवाद ट्रिब्यूनल में चल रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा 52 मामले पटना से हैं। सैयद अफजल ने डाकबंगला चौराहे के पास वक्फ बोर्ड की हजारों करोड़ रुपए की नीन का जिक्र करते हुए कहा, 'इस जमीन को अवैध रूप से बेच दिया गया और कब्जा भी कर लिया गया। यह मामला कोर्ट में है और फैसला जिसके पक्ष में आएगा, जमीन उसी की होगी।
नए बदलावों में एक्ट की धारा 107 को हटाने और वक्फ की प्रॉपर्टीज को 1963 के लिमिटेशन एक्ट के दायरे में लाने का प्रावधान है। रिटायर्ड सरकारी ऑफिसर अकरमुल जब्बार खान के मुताबिक, 'अगर किसी ने 12 साल या उससे ज्यादा समय से वक्फ की किसी प्रॉपर्टी पर कब्जा कर रखा है, तो लिमिटेशन एक्ट के चलते वक्फ बोर्ड इसके खिलाफ कानूनी मदद नहीं ले पाएगा।
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