वक़्फ बिल
- MOBASSHIR AHMAD
- Feb 16
- 4 min read
सरकार जान-बूझ कर अफरातफरी का माहौल बनाना चाहती है !

• मोहम्मद उतार अशरफा
वक़्फ बिल को लेकर मौजूदा हालात में सरकार जिस तरह का रवैया अपना रही है उससे साफ जाहिर होता है कि सरकार जान बूझ कर अफरातफरी का माहौल बनाना चाहती है।
ऐसा नहीं है के वक्फ कानून में पहले संशोधन नहीं हुए या फिर नहीं हो सकते हैं लेकिन प्रस्तावित वक़्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के अनुसार जो चीज उसमे शामिल करने और जो जो चीज हटाने की बात की जा रही है, उससे भारत की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के बीच एक भय पैदा हो रही है कि कहीं उनके पुरखों की जायदाद सीधे तौर पर सरकार के हाथों में नहीं चली जाए। क्यूंकि हाल के दिनों में जिस तरह से वरशिप एक्ट को नजरअंदाज कर के भारत के अलग इलाके के मस्जिद दरगाहों को निशाना बनाया जा रहा है उससे ये वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर मुसलमानों और भी बेचैनी है।
जबकि वत्रफ एक्ट में हमेशा वक़्त के हिसाब से संशोधन होते रहे हैं, अगर हम बात करें वक़्फ एक्ट-1995 की तो उसके तहत वक्फ बोर्ड का
गठन अनिवार्य है। और इस बोर्ड में कम से कम सात और ज्यादा से ज्यादा 11 सदस्य होने चाहिए। इन सदस्यों में से चार सदस्य सरकार द्वारा नॉमिनेट किए जाते हैं, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति को सरकार नॉमिनेट करेगी, जिसको टाउन प्लानिंग या बिजनेस मैनेजमेंट, सोशल वर्क, फाइनेंस या रेविन्यू, एग्रीकल्चर या डेवलपमेंट कार्य का प्रोफेशनल एक्सप्रीरिएंस हो। दो मान्यता प्राप्त इस्लामिक स्कॉलर (एक शिया और एक सुन्नी) को सरकार नॉमिनेट करेगी, साथ ही ज्वाइंट सेकेट्री रैंक के एक मुस्लिम अफसर को सरकार नॉमिनेट करेगी। इसके अलावा एक या अधिक से अधिक दो सदस्य (संसद सदस्य, विधान मंडल सदस्य) होंगे। दोनों का मुस्लिम होना अनिवार्य है। इसके अलावा राज्य के बार कौंसिल का एक मुस्लिम सदस्य और एक लाख रुपये प्रतिवर्ष की आय वाले वक्फ के दो मुतवल्ली बोर्ड में शामिल होंगे। ये बोर्ड इलेक्शन के जरिए एक अध्यक्ष का चयन करेगा। बता दें कि 2013 में एक्ट में किए गए संशोधन के मुताबिक केन्द्र या किसी राज्य सरकार का कोई मंत्री बोर्ड का सदस्य नहीं हो सकता। साथ ही बोर्ड में कम से कम देो महिला सदस्य होने चाहिए।
इससे आपको ये समझ आ गया होगा की वक्फ बोर्ड पहले से ही सरकारी नियंत्रण में है और ये एक सरकारी संस्था हो है, लेकिन अभी जिस तरह का माहौल मौजूदा सरकार में बैठे लोडर बना रहे हैं, अपने भाषण में अजीब अजीब तरह के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे जहाँ मुसलमानों को ये लगने लगा है कि उनके खिलाफ साजिश हो रही है, वहीं अक्सरियत हिंदुओं को ये महसूस करवाया जा रहा है कि वज्रफ के रूप में मुसलमानों के पास कुछ ऐसा है, जिसे खत्म करना उनके हित में है। वहीं कुछ लोग वक्फ बोर्ड के समानांतर हिंदू और सनातन बोर्ड बनाने की बात करने लगे हैं, जबकि हर राज्य में हिंदुओं के लिए अलग अलग धार्मिक न्यास बोर्ड पहले से मौजूद है जो अपना काम कर रहा है। लेकिन मीडिया द्वारा इसे मुद्दा बना कर पूरे भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की साज़िश की जा रही है और इसका नुकसान कुल मिलाकर देश को होगा क्योंकि अधिकतर लोगों कोई जानकारी ही नहीं है।
वक्फ संशोधन बिल पर जेपीसी की हुई बैठक, 44 संशोधनों पर चर्चा के बाद विधेयक को मिली मंजूरी
संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी ने वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। बिल को अगस्त 2024 में 14 बदलावों के साथ संसद के पटल पर रखा गया था। जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने मीडिया से बातचीत में कहा, '44 संशोधनों पर चर्चा की गई। 6 महीने तक विस्तृत चर्चा के बाद, हमने सभी सदस्यों से संशोधन मांगे। यह हमारी अंतिम बैठक थी इसलिए बहुमत के आधार पर समिति द्वारा 14 संशोधनों को स्वीकार किया गया है। विपक्ष ने भी संशोधन सुझाए थे। हमने उनमें से प्रत्येक संशोधन को आगे बढ़ाया और उस पर मतदान हुआ, लेकिन उनके (सुझाए गए संशोधनों) समर्थन में 10 वोट पड़े और इसके विरोध में 16 वोट पड़े और वो मंजूर नहीं किया गया।'
विवादास्पद विधेयक को जैसे ही सदन में बजट सत्र के दौरान पेश किया गया और भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल की अगुआई वाली संयुक्त समिति को भेजा गया, विपक्ष ने इसका तीखा विरोध किया। जेपीसी ने इस सप्ताह अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसकी करीब तीन दर्जन बैठकें हुईं, लेकिन विपक्ष के सदस्यों की संख्या कम होने के कारण हंगामे और विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा, जिन्होंने कहा कि उनकी चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
सदन की समिति ने 14 सिफारिशें कीं, जो सभी सत्तारूढ़ भाजपा या उसके सहयोगी दलों के सदस्यों की ओर से थीं, जबकि विपक्षी सांसदों को 44 सिफारिशों को खारिज कर दिया गया, जो दोनों पक्षों के बीच कटुता का एक और स्रोत था।
जेपीसी की 24 जनवरी को दिल्ली में हुई बैठक में विपक्षी सदस्यों ने हंगामा किया था दावा किया कि उन्हें ड्राफ्ट में प्रस्तावित बदलावों पर रिसर्च के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। आरोप लगाया कि बीजेपी दिल्ली चुनावों के कारण ध्यान में रखते हुए वक्फ संशोधन विधेयक पर रिपोर्ट को संसद में जल्दी पेश करने पर जोर दे रही है। पिछली बैठक में हंगामे के बाद कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा था, संसदीय परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा और यह विधेयक पूरी तरह से समय के खिलाफ है। यह वक्फ की संपत्तियों को हड़पने की एक साजिश प्रतीत हो रही है और इसके माध्यम से देश में नफरत फैलाने की योजना बनाई जा रही है। हमने स्पीकर साहब से सवाल किया कि इतनी जल्दबाजी क्यों है, जबकि इस विधेयक को सत्र के आखिरी दिन, यानी चार अप्रैल तक रखा जा सकता था। उन्हें यह आशंका है कि इस तरह की जल्दबाजी से सभी पक्षों को अपनी बात रखने का उचित समय नहीं मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि जेपीसी की पिछली बैठक में दौरान हंगामे के बाद 10 विपक्षी सांसदों को एक दिन के लिए निलंबित कर दिया गया था। निलंबित सांसदों में कल्याण बनर्जी, मोहम्मद जावेद, ए. राजा, असदुद्दीन ओवैसी, नासिर हुसैन, मोहिबुल्लाह नदवी, एम. अब्दुल्ला, अरविंद सार्वव, नदीमुल हक और इमरान मसूद शामिल थे।
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