नीतीश मुसलमानों के दोस्त या दुश्मन, वक्फ बिल क्यों हुआ पास ?
- MOBASSHIR AHMAD

- Apr 16
- 8 min read

रोशन झा
आखिरकार वक्फ बिल पास हो गया। पहले लोकसभा में और फिर बाद में राज्यसभा में इसे बिना किसी रूकावट के पास करवा लिया गया। दोनों सदनों में लगभग 12 घंटे से अधिक विस्तार पूर्वक विचार विमर्श किया गया। लोकतंत्र की भाषा में इसे डिबेट कहा जाता है। सत्ता पक्ष जहां इस बिल को ऐतिहासिक बताते हुए कह रही कि यह बिल मुस्लिम समाज के लोगों के विरोध में नहीं बल्कि उनके हितों
को ध्यान में रखकर लाया गया है तो वहीं विपक्ष के अधिकांश लोगों ने साफ तौर पर कह दिया कि यह बिल मुस्लिम समाज के लोगों के लिए बाबा साहेब भीमराव द्वारा संविधान में दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है।

दो अप्रैल को जब लोकसभा में इस बिल को पेश किया गया तो अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री किरण रिजजू ने बताया कि हमने इस बिल का नाम उम्मीद रखा है अर्थात Unified Waqf Management Empowerment Efficiency and Development रखा। अब सवाल उठता है कि यह बिल मुस्लिम समाज के लोगों की उम्मीद पर कितना खरा उतरेगा इसके लिए हमें आने वाले समय का इंतजार करना होगा लेकिन फिलहाल बिल पास होने के बाद पटना सहित पूरे देश में कहीं पर खुशी तो कहीं पर गम का माहौल है।
दो तारीख को जब लोकसभा में इस बिल को रखा गया तो 12 घंटे के बाद अर्थात वोटिंग करवाई गई और इसे पास करवा लिया गया। 288 सांसदों ने समर्थन में 232 सांसदों ने विरोध में अपना वोट दर्ज करवाया। वही तीन अप्रैल को जब राज्यसभा में इस बिल को रखा गया तो यहां पर भी 12 घंटे से अधिक डिबेट करने के बाद रात लगभग ढाई बजे अंतिम वोटिंग करवाई गई। जैसा कि सबको लग रहा था कि राज्यसभा में भी बिल को पास करने में सत्ता पक्ष को कोई परेशानी नहीं होगी तो सबकुछ वैसा ही हुआ, समर्थन में 128 और विरोध में 95 सदस्यों ने अपना अपना वोट दिया।
दो तारीख को लोकसभा में तय किया गया था कि दिन के 12:00 बजे इस बिल को पेश किया जाएगा और यही कारण था कि मैं सुबह-सुबह नहा कर टीवी के सामने लाइव डिबेट देखने बैठ चुका था। सबसे पहले किरण रिजजू ने इस बिल को लोकसभा के पटल पर रखा। बिल के समर्थन में उन्होंने लंबा चौड़ा भाषण दिया और यह बताने का प्रयास किया कि कैसे वक्फ बिल के नाम पर जबरन लोगों की जमीन को वक्फ बोर्ड द्वारा हड़पा जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि अध्यक्ष महोदय अभी लोकसभा में खड़े होकर हम स्पीच दे रहे हैं, उस लोकसभा की जमीन पर भी वक्फ बोर्ड के द्वारा अपना दावा किया जा चुका है इतना ही नहीं इस मामले में केस भी चल रहा है। आगे हम आपको बताएंगे कि किरण रिजजू, अमित शाह सहित सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने लोकसभा और राज्यसभा में अपने-अपने भाषण के दौरान इस बिल के समर्थन में और विरोध में क्या कुछ कहा।

लाइव डिबेट के दौरान मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था कि नीतीश कुमार की पार्टी के सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह इस मामले में क्या बोलते हैं। जनता दल यूनाइटेड इस बिल का विरोध नहीं करेगी यह पहले ही तय हो चुका था क्योंकि एक दिन पहले पार्टी ने अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर सदन में उपस्थित रहने का आदेश दिया था और समर्थन में वोटिंग करने के लिए कहा था। इसलिए तय था कि बिल का विरोध तो नहीं होगा लेकिन बिल के समर्थन में जदयू क्या स्टैंड लेती है और आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए क्या मैसेज बिहार के मुस्लिम समाज के लोगों तक पहुंचाती है।
ललन बाबू जब बोलने के लिए खड़े हुए तो उनके तेवर, तर्क से लग रहा था कि मुस्लिम समाज के लोगों को ललन सिंह दो टूक में कहने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में नीतीश कुमार से बड़ा सेकुलर नेता कोई नहीं है। नीतीश कुमार ने मुस्लिम समाज के लोगों को आगे ले जाने के लिए कई काम किया है इसलिए नीतीश कुमार को किसी की सर्टिफिकेट को कोई जरूरत नहीं है।
साथ ही ललन सिंह ने कहा कि वक्फ एक ट्रस्ट है. जो मुसलमानों के हितों के लिए काम करता है। वक्फ में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वह मुसलमानों के सभी वर्गों के साथ न्याय करे, जो नहीं हो रहा है। वक्फ कोई धार्मिक संस्था नहीं बल्कि प्रशासनिक संस्था है, जो मुसलमानों के लिए काम करती है। आप मोदी जी को कोस रहे हैं। अगर आपको नरेंद्र मोदी का चेहरा पसंद नहीं है, तो उनकी तरफ मत देखिए, बल्कि उनके कामों की बात कीजिए। 2013 में आप लोगों ने जो पाप किया था, उसका अंत मोदी जी ने कर दिया है। वक्फ को कुछ लोगों के चंगुल से मुक्त कराया गया है और इसमें आम मुसलमानों की भागीदारी बढ़ाने का प्रयास किया गया है। सरकार ने वक्फ के कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है।

आप यह नैरेटिव बना रहे हैं कि यह बिल मुसलमानों के खिलाफ है। लेकिन यह भी बताएं कि क्या वक्फ बोर्ड में कोई पसमांदा मुसलमान है ? उनकी इतनी बड़ी आबादी है, लेकिन वक्फ बोर्ड में उनका कोई प्रतिनिधि नहीं है। इतना ही नहीं ललन सिंह ने कहा कि अपकी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा बोट के लिए समाज को बांटना है। हमारी परिभाषा बिना किसी विवाद के समाज के हर वर्ग के लिए काम करना है। नीतीश कुमार 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। 20 साल में नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए जो काम किया है, आजादी के बाद से किसी ने नहीं किया।
उन्होंने आगे ये भी कहा कि भागलपुर दंगा अआपके शासन में हुआ, लेकिन नीतीश कुमार की सरकार में उन्हें न्याय मिला। नीतीश कुमार ने पूरे बिहार में कब्रिस्तानों की घेराबंदी करवाई। उन्हें लोगों की चिंता रहती ना कि वोट की, उन्होंने मुसलमानों के लिए बहुत काम किया। इन कामों में भाजपा ने भी उनका साथ दिया। वक्फ संशोधन विधेयक के जरिए पसमांदा मुसलमानों को न्याय दिलाने को तैयारी है।
आज अगर उन महिलाओं को वक्फ से जोड़ा जा रहा है, तो आपको क्या परेशानी है? उनके सशक्तिकरण का काम मोदी सरकार ने किया है और आप मुस्लिम विरोधी नैरेटिव गढ़ रहे हैं। जैसे नीतीश ने बिहार में धर्मनिरपेक्षता स्थापित की है, वैसे ही नरेंद्र मोदी पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता की नई परिभाषा गढ़ने में जुटे हैं। उनकी सोच और विजन व्यापक है।
ललन सिंह जब यह भाषण दे रहे थे तो मैं टीवी डिबेट के सामने बैठे-बैठे इतिहास के पन्नों में पहुंच चुका था। मुझे सबसे पहले याद आया कुछ महीने पहले ललन बाबू का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह यह कह रहे थे कि मुस्लिम समाज के लोग इस गलतफहमी में ना रहे कि वह हमें वोट देते हैं। मुस्लिम समाज के लोग नीतीश कुमार को अपना एक भी वोट नहीं देते हैं। यह तो नीतीश कुमार है जो वोट की चिंता किए बिना लगातार मुस्लिम समाज के लोगों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। ललन बाबू ने मंच से यह भी लोगों से पूछा था खासकर मुसलमानों को विधानसभा और लोकसभा में हमने टिकट देने का काम किया है लेकिन आपने उन्हें वोट देकर नहीं जिताया।

मुझे याद आया कि जब केंद्र की मोदी सरकार सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट बिल ला रही थी और डिबेट के दौरान केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा था कि हम अभी सीएए लेकर आए हैं पीछे-पीछे एनआरसी आएगा और यह तय है, इसे कोई नहीं रोक सकता। जबकि उस समय नीतीश कुमार मुस्लिम समाज के लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए चट्टान की तरह मोदी सरकार के सामने खिलाफ में खड़े हो गए थे और कहा था कि उनके रहते बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। तब भी नीतीश कुमार की पार्टी ने सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट बिल पर मोदी सरकार का साथ दिया था लेकिन गठबंधन में रहने के बाद भी खुलकर एनआरसी का विरोध किया था।
यह नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने महागठबंधन में रहते हुए अर्थात उस समय जब बिहार में जदयू और राजद की सरकार थी तब नीतीश कुमार ने लीग से हटकर राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट देने का फैसला लिया था और कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार को साफ कह दिया था कि हम आपको वोट नहीं दे सकते हैं। यह नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने महागठबंधन में रहते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने जब पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक किया तो उसका सबूत मांगने के बदले खुले दिल से इसका समर्थन किया था।
तो फिर आज क्या हो गया। आखिरकार नीतीश कुमार वक्फ बिल का विरोध करने के बदले समर्थन क्यों कर रहे हैं। क्या नीतीश कुमार अब सेकुलर नेता नहीं रहे? क्या नीतीश कुमार ने अच्छाई और बुराई में फर्क करना छोड़ दिया है? क्या नीतीश कुमार को अब वोट की चिंता नहीं है? तो ऐसा नहीं है... नीतीश कुमार सेकुलर नेता है या नहीं इस बात को जानने के लिए आपको तीन अप्रैल के दिन राज्यसभा में वक्फ बिल के समर्थन में जदयू नेता संजय कुमार झा ने जो कहा उसे सुनना चाहिए और समझना चाहिए।

राज्यसभा में इस बिल का समर्थन करते हुए संजय कुमार झा ने भी लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह के दिये बयान का समर्थन किया। संजय झा ने कहा कि वक्फ बिल आने पर हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को स्थिति स्पष्ट हुई। मुस्लिम समाज और धार्मिक संस्थाओं के लोग उनसे मिलने आए और चुनाव को लेकर चर्चा हुई। मैं भी उस मीटिंग में था। उन्होंने अपनी चिंताओं को साझा किया, विशेषकर पार्टी और सरकार के स्तर पर। उन्होंने बताया कि क्या प्रभाव पड़ेगा और क्या वह खतरे में आ जाएंगे। जेपीसी के सदस्य ने भी इसे सामने रखा। कल गृह मंत्री जी का भाषण लोकसभा में हुआ और उन्होंने फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर किया कि मस्जिद, ईदगाह या कब्रिस्तान पर कोई खतरा नहीं है।
कल रात और आज सुबह मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भाषण सुना और कहा कि उनके बीच फैलाए जा रहे भ्रांतियां गलत थीं। बिहार सरकार ने पिछले 19 साल में हजारों कब्रिस्तान की घेराबंदी की है। कल स्पष्ट हो गया कि फैलाई जा रही कन्फ्यूजन गलत थी। बिल लागू होने के बाद पुरानी स्थिति बरकरार रहेगी। बिहार अकेला राज्य है जिसने जातीय गणना की है। गणना में 73% पसमांदा मुसलमान पाए गए हैं। हमारे पास वैज्ञानिक उत्तर है और लेटेस्ट सर्वे है। अंसारी समाज को पहली बार इसमें प्रतिनिधित्व मिला है। महिलाओं का भी स्थान इसमें रहेगा, जो प्रोग्रेसिव कदम है। वक्फ से जुड़े विवादों में अक्सर प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े होते हैं। बिल से चैरिटी का सही उपयोग होगा, जो अबतक नहीं हो रहा था। प्रधानमंत्री जी का संदेश है कि सही लोगों को फायदा मिले। बिहार में कोई बड़ा हॉस्पिटल या स्कूल वक्फ के पैसों से नहीं बना है। कानून लागू होने के बाद भ्रांतियां खत्म हो जाएंगी। भागलपुर दंगा बिहार का सबसे बड़ा दंगा था।
संजय झा ने भी लालू यादव के उस वायरल वीडियो को सही बताया, जिसके बाद मनोज झा ने आपत्ति जताई और आरोप लगाया कि अमित शाह ने एक 'एडिटेड' वीडियो को वायरल किया है। वहीं मनोज झा के आरोपों पर गृह मंत्री अमित शाह ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'एडिटेड वीडियो' नहीं, बल्कि लोकसभा में दिए गए आधिकारिक बयान और रिकॉर्ड का हवाला दे रहे हैं, जिसमें लालू यादव का बयान स्पष्ट रूप से दर्ज है। मैं किसी भी तथ्य को तोड़-मरोड़ कर नहीं रखता, जो कुछ भी मैंने कहा है, वह संसद के रिकॉर्ड में दर्ज है। विपक्ष को पहले तथ्यों की पुष्टि करनी चाहिए, फिर सवाल उठाना चाहिए।
वही संजय झा का कहना था कि बिहार में 70% पसमांदा मुसलमान रहते हैं और हमारे पास एग्जेक्ट उत्तर है क्योंकि हमने अभी कास्ट सेंसेक्स करवाया था। इस बिल के आने के बाद पसमांदा सहित गरीब मुसलमान को इसका लाभ होगा और नीतीश कुमार मुस्लिम समाज के हित चिंतक हैं और यही कारण है कि आज तक बिहार में उनके रहते कोई दंगा नहीं हुआ और एक दिन के लिए भी कफ्यूं नहीं लगा है।
_edited.jpg)





Comments