2026 के बाद होगा परिसीमन लेकिन बवाल अभी से
- MOBASSHIR AHMAD

- Apr 17
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देश में एक बार फिर से परिसीमन का मुद्दा चर्चा में है। दक्षिण के राज्य इसको लेकर सशंकित है। दक्षिण के राज्यों को डर है कि परिसीमन से उनके राज्यो में लोकसभा की सीटें कम हो जायेगी। हालांकि परिसीमन 2026 में जनगणना के बाद होगी, लेकिन इस पर अभी से संग्राम छिड़ गया है। दक्षिण के राज्य को इस बात का डर सता रहा है इससे उनके राज्यों में लोकसभा की सीटे कम हो सकती है। इस पर डीएमके ज्यादा ही आक्रमक है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने तो इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 5 मार्च को सर्वदलीय बैठक बुला ली है। डीएमके का कहना है कि परिसीमन 'दक्षिणी राज्यों पर तलवार की तरह है। कुछ समय पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी राज्य की घटती प्रजनन दर को लेकर चिंता जाहिर की थी और लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की बात कही थी।

असल में भारत के दक्षिणी राज्यों की आबादी उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम है और उन्हें डर है कि अगले अगले परिसीमन में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। इन राज्यों को लगता है कि परिवार नियोजन के राष्ट्रीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पुरस्कार मिलने के बजाय उनको सजा दी जा रही है। केंद्रीय गृह मन्त्री का आश्वसन भी काम नही आ रहा
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों, खासकर तमिलनाडु, की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने स्पष्ट किया कि परिसीमन प्रक्रिया से तमिलनाडु सहित किसी भी दक्षिणी राज्य को लोकसभा में एक भी सीट का नुकसान नहीं होगा। अमित शाह ने कहा 'मैं दक्षिण भारत के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपके हितों को ध्यान में रखा है। परिसीमन के बाद प्रो-राटा आधार पर न तो एक भी सीट कम होगी और न ही दक्षिणी राज्यों के साथ कोई अन्याय होगा। जो बढ़ोतरी होगी, उसमें दक्षिणी राज्यों को उचित हिस्सा मिलेगा। इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।
कौन करेगा परिसीमन ?
ऐसे में 2026 में जनगणना के बाद परिसीमन के लिये राष्ट्रपति द्वारा एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग नियुक्त किया जाएम्स। इसमें उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त को सदस्य बनाया जाएगा। आयोग नए निर्वाचन क्षेत्र बनाने या सीमाओं में बदलाव के लिए जनसंख्या में बदलाव की जांच करेगा। सार्वजनिक प्रतिक्रिया लेने के बाद, आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित करता है। 1976 में आपातकाल के दौरान, लोकसभा सीटों की संख्या को फ्रीज कर दिया गया और परिसीमन को 2001 तक टाल दिया गया था। वर्ष 2001 में, परिसीमन को 25 वर्ष के लिए फिर टाल दिया गया था।
अब सवाल उठ रहा है कि परिसीमन का क्या आधर है, जिसको लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। संविधान के अनुच्छेद 82 में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना पूरी होने के बाद, प्रत्येक राज्य की लोकसभा सीटों को जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर समायोजित किया जाना चाहिए। साथ ही, अनुच्छेद 81 में कहा गया है कि लोकसभा में 550 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते। लेकिन उत्तर के रज्जो में जनसख्या में बेहताश बढ़ोतरी की बजह से, एक एक लोकसभा क्षेत्र में 30 लाख से ज्यादा अबादी हो गई है, ऐसे में बेहतर प्रतिनिधित्व के लिये लोकसभा की सीटें बढ़ाई जायेगी। जिस अनुपात में उत्तर के राज्यो की सीट बढ़ेगी, उस अनुपात से दक्षिणी राज्यों में सीट नहीं बढ़ेगी।
लोकसभा में 725 सीट हो जायेगी
इस लिहाज से लोक सभा में 725 सीट हो जायेगी, जिसमें उवर के राज्यो की भागीदारी बढ़ जायेगी लेकिन दक्षिण के राज्यो की भागीदारी उस अनुपात में नहीं बढ़ेगी। इसलिए दक्षिण के राज्य अब केंद्र से भरोसेमंद आश्वासन चाहते हैं। हलौकि विपक्षी दलों ने परिस्रमिन को लेकर फैल रही गलतफहमियों के लिये भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। टीएमसी ने साफ साफ कहा है कि परिसमिन का मुद्दा चुनाव आयोग से जुड़ा है। आयोग के अगुवाई में ही परिसमिन की पूरी प्रकिया की जाती है, ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्रालय या गृह मंत्री क्यो रिएक्ट कर रहे हैं। 2001 में जब परिसीमन पर रोक लगाई गई थी, उस समय यह ही संशय था कि अगर परिसमिन किया गया तो, दक्षिण के राज्यो को नुकसान हो सकता है। ऐसे में परिसमिन दक्षिण के साथ नाइंसाफी हो सकती है। इसलिए केंद्र इस मसले पर फूक फूक करे कदमे रखे रही है।
आखिरकार परिसमिन है क्या ?
परिसीमन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या में बदलाव के अनुसार सभी नागरिकों को समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि परिसीमन की आवश्यकता क्यों पड़ी है? कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ जाती है, जबकि कुछ क्षेत्रों में कम हो जाती है। परिसीमन यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को समान रूप से प्रतिनिधित्व मिले। समय के साथ, शहरों और कस्बों की सीमाओं में बदलाव होता है। परिसीमन इन परिवर्तनों को ध्यान में रखता है और सीमाओं को समायोजित करता है। पिछले 50 सालो में देश मे परिसीमन नहीं हुआ है। तय मानक के मुताबिक हरेक 10 साल में जनगणना के बाद, परिसीमन होता है। लेकिन 2001 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस पर 26 साल तक रोक लगा दी थी।
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