OPERATION SINDOOR
- MOBASSHIR AHMAD
- May 21
- 4 min read
भारत की रणनीतिक विजय है संघर्ष विराम

राजेश जैन-Operation Sindoor
10 मई 2025 की शाम जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर यह घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान संघर्ष विराम पर सहमत हो गए हैं तो दुनिया ने राहत की सांस ली। कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाइयों ने न केवल सीमा पार आतंकी ठिकानों को मिट्टी में मिला दिया था बल्कि युद्ध के बादल गहराने की आशंकाओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता पैदा कर दी थी। अलग अलग मीडिया रिपोर्ट्स में संघर्ष विराम के विभिन्न कारण बताए जा रहे हैं लेकिन संघर्ष विराम की यह पहल चाहे पाकिस्तान की रही हो या अमेरिका की मध्यस्थता से हुई हो अथवा भारत की रणनीतिक संतुलन साधने की चतुराई रही हो, एक बात तय है कि इससे भारत के वैश्विक कूटनीतिक कद को नई ऊंचाई मिली है।

संघर्ष विराम को भारत की रणनीतिक विजय माना जा रहा है। इस दौरान भारत ने ब्रह्मोस जैसे एडवांस हथियारों के उपयोग के जरिए अपनी सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन किया। देश ने आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल किया और पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफल रहा। इस दौरान चीन के हथियारों की प्रभावशीलता को चुनौती दी जिससे उसकी छवि को झटका लगा। भारत कूटनीति और सैन्य शक्ति का संतुलन साधते हुए संघर्ष को सीमित रखने में भी सफल रहा।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भूमिका

एक अन्य महत्वपूर्ण थ्योरी के मुताबिक अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर इस संघर्ष को रोकने की सलाह दी। अमेरिका को खुफिया जानकारी मिली थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा तनाव परमाणु संघर्ष में तब्दील हो सकता है। वेंस के फोन कॉल के बाद भारत और पाकिस्तान के वरिष्ठ राजनगिकों और सुरक्षा सलाहकारों के बीच कई दौर की बातचीत शुरू हुई। इस थ्योरी से यह संकेत मिलता है कि भारत वैश्विक दवाव को नजरअंदाज नहीं कर रहा था, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भारत पीछे हटा बल्कि यह संकेत है कि भारत अपनी स्थिति स्पष्ट कर अपनी सैन्य श्रेष्ठता स्थापित करने के बाद कूटनीतिक समाधान की ओर बढ़ा।
आईएमएफ और आर्थिक दबाव का गणित

संघर्ष विराम में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की भूमिका उजागर होती है। भारत की सख्त आपत्ति के बावजूद आईएमएफ ने पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर का लोन जारी किया। भारत ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान इस धन का उपयोग आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में कर सकता है। कई विश्लेषकों का मानना है कि आईएमएफ द्वारा यह लोन जारी करने की शर्त ही संघर्ष विराम रही हो। अमेरिका आईएमएफ के निर्णयों पर भारी प्रभाव रखता है और यह संभव है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को लोन के बदले संघर्ष विराम के लिए राजी किया हो। यह कूटनीति भारत के लिए लाभदायक रही क्योंकि बिना अतिरिक्त सैन्य नुकसान के पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।
चीन की छवि पर संकट

सीजफायर के पीछे एक चौथा दिलचस्प पक्ष चीन से जुड़ा है। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जिन हथियारों का प्रयोग किया जेएफ-17, पीएल 15 मिसाइल, एचक्यू -9 डिफेंस सिस्टम वे सभी चीन से प्राप्त थे। भारत ने अपनी एयर डिफेंस प्रणाली के माध्यम से इन हथियारों को नाकाम किया जिससे चीन के हथियारों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए। चीन को डर था कि उसके हथियारों की असफलता से उसको वैश्विक हथियार बाजार में छवि को गंभीर नुकसान होगा। इसलिए चीन ने पाकिस्तान पर सीजफायर के लिए दबाव डाला। यदि यह ध्योरी सही है, तो भारत ने अप्रत्यक्ष रूप से चीन की रक्षा अर्थव्यवस्था को भी झटका दिया।
'ऑपरेशन बुनियान उल मरसूस' और भारत की रणनीति

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान द्वारा भारत की सैन्य सुविधाओं पर अवाबी हमले के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग की राह पकड़ी और अमेरिका, सऊदी अरब तथा तुर्किये से मदद की अपील की। कुछ विश्लेषकों ने इसे भारत का 'बैकफुट' पर आना माना, लेकिन वास्तव में यह एक रणनीतिक संतुलन साधने का प्रयास था। भारत ने अपने मिलिट्री रिस्पांस पूरी करने के बाद ही संघर्ष विराम की दिशा में कदम बढ़ाया। यह संभावना भी जताई गई कि भारत ने इस संघर्ष को एक सीमित दायरे में बनाए रखने के लिए 'ऑपरेशन बुनियान उल मरसूस' को रोकने की योजना बनाई। भारत ने स्पष्ट किया कि वह युद्ध नहीं चाहता लेकिन अपनी सुरक्षा और जवाबी कार्रवाई में कोई कोताही भी नहीं बरतेगा।
ब्रह्मोस से बनी दबाव की स्थिति

10 मई की सुबह भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कई सामरिक ठिकानों पर स्कैल्प, हेमर और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों से हमला किया। ब्रह्मोस का उपयोग पहली चार सुखोई-30 जैसे फाइटर जेट से किया गया। इससे पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत दिया कि भारत अब पारंपरिक जवाबी हमलों से आगे निकल चुका है। पाकिस्तान को आशंका हुई कि भारत अगला निशाना उसकी परमाणु ठिकानों और आर्मी कमांड सेंटर्स पर साध सकता है। यह डर इतना गहरा था कि पाकिस्तान को अमेरिका की 'हॉटलाइन' पर मदद लेनी पड़ी। अमेरिका ने तुरंत कड़ा रुख अपनाते हुए इस्लामाबाद से संघर्ष रोकने को कहा। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स डीजीएमओ के बीच सीधी बातचीत हुई और शाम तक सीजफायर पर सहमति बन गई।
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