मखाना बोर्ड पर सीमांचल में महाभारत, सांसद पप्पू यादव ने ठोंका ताल बोले, पूर्णिया का हक छीनने नहीं देंगे
- MOBASSHIR AHMAD
- Mar 17
- 9 min read

शशांक शेखर
बिहार के मिथिला क्षेत्र में एक कहावत है... पग पग पोखर, माछ, मखान, सरस बोली, मुस्की मुख पान, विद्या वैभव शान्तिक प्रतीक जनक नगरी ई मिथिला थिक... दरभंगा के महान साहित्यकार सोमदेव ने कभी देश के पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र के स्वागत में इस पंक्ति की रचना की थी। उस समय लिखा गया था कि, ललित नगर दरभंगा ठीक. कहते हैं कि ललित बाबू उस समय दरभंगा से लोकसभा सांसद हुआ करते थे। बाद के दिनों में इस पंक्ति में बदलाव किया गया और इसे मिथिला के लिए कहा जाने लगा। सोमदेव का जन्म बिहार के आरा जिले में हुआ था लेकिन ननिहाल दरभंगा में था. बचपन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने मिथिला को कभी नहीं छोड़ा। इस पंक्ति से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मिथिला में मखान का क्या महत्व है और यहां पग पग पर पोखर अर्थात तालाब आपको दिख जाएगा. मिथिला के उसी मखान को आजकल पूरे देश में मखाना के नाम से जाना जाता है।
आपको आश्चर्य लग रहा होगा की जब वास्तविक नाम मखान है तो मखाना क्यों हुआ. जवाब बहुत आसान है. हिंदी में चीन होता है और अंग्रेजी में चाइना. हिंदी में कृष्ण होता है और अंग्रेजी में कृष्णा. हिंदी में वेद होता है और अंग्रेजी में वेदा. हिंदी में मिश्र टाइटल होता है और अंग्रेजी में मिश्रा. कुछ इसी तरह मिथिला का मखान देशभर में मखाना हो गया।
हां तो हम बात कर रहे थे कि मखाना को लेकर, जिस के कारण इन दिनों बिहार में महाभारत मचा हुआ है। हमने आपको पहले ही कह दिया है कि मखाना मिथिला की सांस्कृतिक पहचान में से एक है। इसे फल के रूप में पूजा पाठ के दौरान भी प्रयोग में लाया जाता है। अगर आप व्रत में है तो फलाहारी के रूप में आप इसका सेवन कर सकते हैं। मिथिला के ब्राह्मण समाज में तो आज भी जब किसी लड़के का विवाह होता है तो शरद पूर्णिमा की रात कोजागरा पर्व मनाया जाता है। इस दिन गांव के सभी लोगों को हकार अर्थात बुलावा भेजा जाता है और सबको बारी-बारी से मखाना और बताशा दिया जाता है। लड़की पक्ष वाले अपनी हैसियत के अनुसार 10 किलो, 20 किलो 30 किलो या उनसे जितना बन सके उतना मखाना खरीद कर भेजते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऐसा भी देखा गया है कि अगर लड़की वाले किसी कारणवश मखाना नहीं भेज पाते हैं तो लड़के वाले अपनी तरफ से मखाने की खरीदारी कर लोगों में वितरण करते हैं।
हम आपको इस तरह की पारंपरिक रिवाजों से इसलिए रूबरू करवा रहे हैं ताकि आपको पता चल जाए कि मिथिला में मखाने की क्या अहमियत है। इन बातों से साफ पता चलता है कि मखाने की खेती मिथिला में हजारों सालों से हो रही है। फिर अब महाभारत क्यों हो रहा है? सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष क्यों किया जा रहा है? कटिहार पूर्णिया में बंद का ऐलान क्यों किया गया है?
साल 2014 में केंद्र की सत्ता पर बैठे मनमोहन सिंह सरकार को हराकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार का गठन होता है और इसके बाद लोकल प्रोडक्ट को बढ़ावा देने का सिलसिला शुरू हो जाता है। एक जिला एक प्रोडक्ट कार्यक्रम के तहत देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर स्थानीय वस्तुओं को बढ़ावा दिया जाता है। मखाना उनमें से एक है। कोरोना के दौड़ में जब लोगों को पता चला की इम्युनिटी बढ़ाने में मखाना महत्वपूर्ण वस्तुओं में से एक है तो न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर के लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया। मखाना की खेती करने वाले किसानों के पास डिमांड बढ़ने लगी। कल तक जो मखाना 300 से ₹500 किलो बिका करता था वह अब 1200 से ₹1500 के बीच बिकने लगा है। अधिक मुनाफा होने के कारण जिस मखाने की खेती पोखर तालाब में किया जाता था, अब इसकी खेती कम पानी वाले खेत में भी होने लगी। इसकी बात आगे करेंगे...
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी साल जब भागलपुर यात्रा पर आते हैं तो कहते हैं कि साल में 365 दिन होते हैं और मैं 300 दिन मखाने का सेवन करता हूं। हमारी सरकार मखाना किसानों के लिए काम कर रही है। हमारा प्रयास है कि दुनिया भर में मखाने की ब्रांडिंग की जाए। यही कारण है कि इस बार के बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार में मखाना बोर्ड के गठन करने का ऐलान किया है। विपक्षी दल के नेताओं ने जब इस बात को लेकर सवाल किया तो बीजेपी के नेता और पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद ने जवाब देते हुए लोकसभा में कहा था कि अभी तक किसी भी बोर्ड का गठन उस स्थान पर हुआ है। जहां सबसे अधिक उस वस्तु की उत्पादन होती है। उदाहरण के लिए चायपत्ती का उत्पादन असम बंगाल में होता है तो बंगाल में बोर्ड का गठन किया गया। उसी तरह मखाने का सबसे अधिक उत्पादन बिहार में होता है इसलिए निसंदेह रूप से मखाना बोर्ड का निर्माण सिर्फ और सिर्फ बिहार में होना चाहिए।
अब तक यह फैसला नहीं हुआ है कि बिहार में मखाना बोर्ड का गठन कहां होगा लेकिन बिहार के तमाम नेता अपने स्तर से यह प्रयास करने लगे हैं कि उनके जिले में मखाना बोर्ड का गठन हो। इसमें कोई गलत बात भी नहीं है। होना भी चाहिए। जनप्रतिनिधि का तो काम ही होता है कि अपने क्षेत्र में अधिक से अधिक काम करावें। दरभंगा के सांसद गोपाल जी ठाकुर और राज्यसभा सांसद संजय झा सहित अधिकांश नेताओं का प्रयास है कि मखाना बोर्ड का निर्माण दरभंगा में हो क्योंकि यहां पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र स्थापित है। वहीं दूसरी और पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव का दावा है कि पिछले 5 से 10 सालों में सबसे अधिक मखाने का उत्पादन बिहार के कटिहार, अररिया, पूर्णिया में होता है इसलिए हर हाल में मखाना बोर्ड का गठन सिर्फ और सिर्फ पूर्णिया में किया जाना चाहिए। दूसरे जन प्रतिनिधि सिर्फ प्रयास कर रहे हैं लेकिन पप्पू यादव ने तो मखाना बोर्ड को लेकर आर पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया। जिस दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भागलपुर आए थे उस दिन उन्होंने मखाना बोर्ड निर्माण को लेकर कटिहार और पूर्णिया को बंद करने का ऐलान कर दिया। बंद करने से पहले उन्होंने पूर्णिया कटिहार सहित आसपास के जिले के व्यापारियों से संवाद किया और कहा कि पूर्णिया के अधिकार के लिए बंद करना जरूरी है। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि पूर्णिया कटिहार बंद सफल था तो कुछ लोगों का कहना था कि यह बंद असफल रहा.
पूर्णिया बंद से 2 दिन पहले देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान सोशल मीडिया में एक पोस्ट डालकर सूचना देते हैं कि मखाना
बोर्ड गठन को लेकर बिहार के दरभंगा में मखाना किसानों से बातचीत करने जा रहा हूं। किसानों से बातचीत करने के बाद मखाना बोर्ड को लेकर बड़ा फैसला किया जाएगा। हमारा प्रयास है कि मखाना किसानों की समस्याओं को जाना जाए और उसे दूर करने का कदम उठाया जाए। इस सूचना के बाद पप्पू यादव एक्टिव हो जाते हैं और अपने साथियों के पास संदेश भेजते हैं.
तब समय के अनुसार शिवराज सिंह चौहान विशेष विमान से दरभंगा एयरपोर्ट आते हैं और अंतर्राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। जहां भारी संख्या में मखाना उत्पादन करने वाले किसानों को बुलाया गया था। जब उन्होंने किसानों से पूछा कि मखाने की खेती आप लोग कैसे करते हैं तो किसानों ने उन्हें बारी बारी से बताने का प्रयास किया। दौरान कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान किसानों के साथ तालाब में उतरते हैं और मखाने की रोपाई करते हैं. जब कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पानी में उतरे तो उनके साथ-साथ सांसद गोपाल जी ठाकुर, बिहार सरकार में मंत्री हरि सहनी, जीवेश मिश्रा और संजय सरावगी के साथ-साथ कई वीआईपी नेता भी पानी में उतरकर मखाने की रोपाई करने लगे.
इसके बाद उन्होंने किसानों से संवाद स्थापित कर यह जानने का प्रयास किया कि आखिरकार मखाने की खेती में उन्हें किन-किन बातों की परेशानी होती है, सरकार को कौन-कौन से काम करने चाहिए। अगले दिन देश के कृषि मंत्री को दरभंगा से भागलपुर जाना था, जहां पीएम मोदी किसान सम्मन निधि की राशि निर्गत करने के लिए बिहार आने वाले थे।
उधर दूसरी ओर पप्पू यादव ने कटिहार पूर्णिया बंद का ऐलान कर दिया और सुबह से ही उनके समर्थक बाजार को बंद करवाने लगे. मैं स्ट्रीम मीडिया में पप्पू यादव का कटिहार पूर्णिया बंद वाली खबरें चलने लगी. पप्पू यादव का साफ कहना था कि बिहार को दूसरा एम्स मिला, जिसे पूर्णिया में बनना चाहिए था लेकिन सीमांचल के लोगों के साथ अन्याय हुआ और इसे दरभंगा शिफ्ट कर दिया गया। अब दोबारा मखाना बोर्ड के नाम पर पूर्णिया और सीमांचल के लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। मखाना बोर्ड पूर्णिया के मखाना किसानों का अधिकार है। हर हाल में हम इसे लेकर रहेंगे। उन्होंने अभी कहा कि वह दरभंगा के विरोधी नहीं है, यही कारण है कि उन्होंने अशोक पेपर मिल, सकरी चीनी मिल, रैयाम चीनी मिल, लोहट चीनी मिल खोलने की मांग की है।
क्या कहते हैं पूर्णिया के किसान...
मखाना बोर्ड को लेकर महाभारत क्यों हो रहा है इस बात को समझने के लिए हमने मखाना की खेती करने वाले पत्रकार चिन्मयानंद सिंह से बात की। वह कहते हैं कि मखाना बोर्ड का गठन पूर्णिया में हो या बिहार के किसी भी जिला में इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि बोर्ड गठन के बाद मखाने को लेकर काम होना चाहिए। इन दिनों चारों ओर मखाने को लेकर जोर शोर से बात हो रही है। अच्छी बात है होना भी चाहिए लेकिन जिस कारण से हम जैसे मखाना किसान परेशान होते हैं उसको लेकर कोई बात नहीं कर रहा। उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस बयान पर भी तंज कसा जिसमें उन्होंने किसानों से संवाद स्थापित करने के दौरान कहा था कि हमने वैज्ञानिकों को ऐसे मखाना बीज बनाने को कहा है जिसमें कांटे ना हो।
चिन्मयानंद कहते हैं कि हम लोगों की परेशानी पानी है। मौसम वैज्ञानिकों ने पहले ही कह दिया है कि इस बार मार्च के बाद से ही भीषण गर्मी पड़ने वाली है। पिछले साल हमने देखा था कि बिहार में बारिश बहुत कम होने के कारण किसानों को काफी परेशानी हुई। हमें कुछ नहीं चाहिए, हमें बस एक चीज चाहिए। मखाना बोर्ड का गठन हो या ना हो, आप वह एक चीज दे दीजिए मखाना अपने आप मखाना उत्पादन में न सिर्फ मिथिला क्षेत्र को बल्कि बिहार को पूरे विश्व में नंबर वन बना कर दिखा देगा। आप कुछ मत कीजिए सिर्फ खेतों तक पानी पहुंचा दीजिए। आप बस मखाना खेत तक बिजली पहुंचा दीजिए ताकि किसानों को पानी के लिए संघर्ष न करना पड़े। कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि जहां-जहां बोरवेल है वहां-वहां बिजली पहुंचा दीजिए।
चिन्मयानंद कहते हैं कि दरभंगा मधुबनी में अधिकांश पोखर में मखाने की खेती होती है लेकिन पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज में खेत को ऐसे तैयार किया जाता है, जिससे वह पोखरनुमा बन जाता है। हम ठेहूंना भर पानी में या कमर भर पानी में मखाने की खेती करते हैं. अगर पानी कम हो जाए तो मखाने के फसल पर प्रभाव पड़ता है और खराब हो जाता है। इसीलिए बारिश नहीं होने की स्थिति में हम समय-समय पर पानी देते रहते हैं। खेत तक बिजली नहीं पहुंचने के कारण किसानों को अधिक पैसे खर्च कर बोरिंग से पानी चलाना होता है. इस पर हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं।
चिन्मयानंद की माने तो इसमें कोई दो राय नहीं की दरभंगा मधुबनी में अधिकांश मखाने की खेती हुआ करती थी। बिहार का सीमांचल क्षेत्र पानी से अधिकांश समय डूबा रहता है। यही कारण है कि यहां के किसानों ने मखाने की खेती को अपनाने का फैसला किया। लेकिन इसे विडंबना कहिए या कुछ और बिहार के कोसी, सीमांचल क्षेत्र (जो कि पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार मिथिला ही है) के किसानों को मखाने की खेती पूर्ण रूप से नहीं करने आती है। यहां के लोग फोड़ी का काम नहीं जानते हैं इसीलिए हम लोग नवंबर दिसंबर के बाद से ही दरभंगा मधुबनी में जाकर मखाने की खेती में काम करने वाले लोगों से संपर्क कर कॉन्ट्रैक्ट करते हैं। उन्हें एडवांस में पैसा देते हैं। इतना ही नहीं उनके रहने खाने की सब व्यवस्था करते हैं। 6 महीने के लिए डोली-खोपड़ी उठाकर वे लोग परिवार और बाल बच्चों के साथ हमारे पास आते हैं और मखाने की खेती करने में मदद करते हैं। वह कहते हैं कि दरभंगा मधुबनी के लोग हम लोगों को फोड़ी का काम नहीं सीखाते हैं। संभव है कि उन्हें डर लगता होगा कि यहां के लोग अगर सीख जाएंगे तो उनकी पूछ नहीं होगी। लेकिन विडंबना यह है कि दरभंगा मधुबनी के किसान इस काम को अपने अगले जनरेशन को भी ट्रांसफर नहीं कर रहे हैं। फोड़ी करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन कम हो रही है। यह चिंताजनक बात है. उनका यह भी कहना है की फोड़ी की कीमत मखाने की कीमत से तय किया जाता है। अगर मखाने की कीमत ₹500 होगी तो पूरी की कीमत 200 से 300. अगर मखाना ₹1000 किलो है तो पूरी 500 से ₹700 किलो बिकेगी.
मखाने का जीआई टैग है 'मिथिला मखाना'
बिहार में जिस तरह से तीन भाषाएं हैं इस तरह से क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है। जहां भोजपुरी बोलने वालों की संख्या अधिक है उसे भोजपुरी क्षेत्र कहा जाता है। जहां मगही बोलने वालों की संख्या अधिक है उसे मगध कहा जाता है और जहां मैथिली बोलने वालों की संख्या अधिक है उसे मिथिला कहा जाता है।
इसलिए मिथिला के लोगों को जब लगने लगा कि उनके मखाने पर बिहार का चश्पा लगाया जा रहा है तो उन लोगों ने काफी आंदोलन के बाद मिथिला मखाना नाम से जीआई टैग प्राप्त किया। उन लोगों का दावा था जब पान को मगही पान कहा जा सकता है तो मखाना को मिथिला मखान क्यों नहीं कहा जा सकता। एमएसयू के अनूप कुमार मैथिल कहते हैं जीआई टैग मिलने के बाद भी बिहार सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इसे मिथिला मखान ना कह कर बिहार का मखाना कहा जाता है। यह कहीं से सही नहीं है।
मखाना बोर्ड गठन से क्या फायदा होगा
मखाना बोर्ड को लेकर चारों ओर जब महाभारत हो रहा है तो हमने यह जानने का प्रयास किया की बोर्ड के गठन से क्या फायदा होने वाला है। पीआईबी द्वारा जारी जानकारी में कहा गया है कि "बोर्ड का गठन मखाने के उत्पादन, प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और मार्केटिंग को बेहतर बनाने के लिए किया जाएगा. ये बोर्ड मखाना किसानों को प्रशिक्षण सहायता देगा और मखाना उत्पादन से जुड़े लोगों को एफ़पीओ में संगठित करेगा।"
Comments