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किशनगंज विधानसभा

  • Writer: MOBASSHIR AHMAD
    MOBASSHIR AHMAD
  • Feb 16
  • 11 min read
क्या चाहती है जनता चुनाव में किसका पलड़ा भारी ?
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प्रिया कुमार


साल 2020 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ था और इस साल अर्थात 2025 में फिर से एक बार बिहार विधानसभा का चुनाव होना है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों किशनगंज सहित सीमांचल क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। वे दोनों जानते हैं कि अगर सत्ता की कुर्सी प्राप्त करनी है तो सीमांचल क्षेत्र के सभी विधानसभा सीटों पर उन्हें अपना-अपना कब्जा जमाना होगा। वह दोनों यह भी जानते हैं कि सीमांचल क्षेत्र में जिसको गाड़ी पीछे छूट जाएगी वह बिहार की सत्ता से उतना दूर हो जाएगा। इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव कितना महत्वपूर्ण होने वाला है। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चुनाव सितंबर-अक्टूबर के बाद होना है और और अभी से एनडीए और महागठबंधन ने बिहार की राजनीति में चुनाव को लेकर अघोषित रूप से शंखनाद कर दिया है। यही कारण है कि आपका अपना पसंदीदा मैगजीन 'सीमांचल की आवाज' अब आपके लिए चुनावी समय से पहले बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर हाजिर हो रहा है। इस दौरान हम आपसे सीमांचल क्षेत्र के विभिन्न विधानसभा के पॉलीटिकल सिनेरियो को लेकर हाजिर होंगे और वहां की वर्तमान स्थिति से आपको रूबरू करवाएंगे। सबसे पहले हम किशनगंज विधानसभा सीट की बात करेंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि आखिरकार किशनगंज विधानसभा सीट की जनता चाहती क्या है। इस बार वह किसके साथ जाने वाली है। क्या किशनगंज की जनता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास मॉडल के साथ है और उन्हें ही एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। सवाल यह भी उठता है कि क्या किशनगंज की जनता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और राबड़ी देवी के सपने को साकार करते हुए उनके छोटे बेटे और वर्तमान समय में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी या नहीं। ?


किशनगंज विधानसभा चुनावी कहानी आरंभकरने से पहले आप लोगों से एक सवाल है। क्या आप कमलेश्वरी प्रसाद यादव को जानते हैं। आप में से जो एक आध पुराने लोग होंगे जो बिहार की या देश को राजनीति से इंटरेस्ट रखते होंगें वह कमलेश्वरी बाबू को अवश्य जानते होंगे, लेकिन जब हमने किशनगंज की सड़कों पर कुछ लोगों से पूछा तो उनमें से अधिकांश लोगों का जवाब था कि हम कमलेश्वरी बाबू अर्थात कमलेश्वरी प्रसाद यादव को नहीं जानते हैं। हमें लगा कि किशनगंज वर्तमान समय में मुस्लिम बाहुल क्षेत्र है इसलिए संभव है कि यहां के लोग कमलेश्वरी प्रसाद को नहीं जानते होंगे। इस बार हमने अपना सवाल बदलते हुए लोगों से पूछा कि क्या आप अब्दुल हयात साहब को जानते हैं। इस बार भी अधिकांश लोगों ने ना में जवाब दिया।


इसी दौरान हमें कुछ हिंदू और मुसलमान समाज की महिलाएं और स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियां मिली, जिससे हमने पूछा कि क्या आप लोग यशोदा देवी या सुशीला कपूर को जानती हैं। आप लोगों को जानकर आश्चर्य लगेगा कि इनमें से किसी ने यह नहीं कहा कि हम इन्हें जानते हैं। हमें दुख तो हुआ लेकिन हमें हमारा रास्ता मिल चुका था। हम सोच रहे थे कि किशनगंज चुनाव की कहानी को कहां से शुरू किया जाए और असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। तभी हमें हमारा जवाब मिल गया है। और हमने सोचा कि इस कहानी को कमलेश्वरी प्रसाद यादव से ही आरंभ की जानी चाहिए।


उस समय हमारा देश गुलाम हुआ करता था, साल 1902 ईस्वी में कमलेश्वरी बाबू का जन्म वर्तमान मधेपुरा जिला के चतरा में हुआ था। उनके पिता रामलाल मंडल एक जमींदार थे और उनके परिवार का मधेपुरा और आस पास के क्षेत्र में काफी प्रतिष्ठा थी। लोग आदर सम्मान दिया करते थे। इसी बीच काफी संघर्ष करने के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होता है और लाल किले के प्राचीर से तिरंगा झंडा को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा शानों शौकत के साथ लहराया जाता है। इसके साथ ही किशनगंज सहित पूरे देश में एक नया सूर्योदय होता है। देश आजाद होने के बाद संविधान सभा का गठन होता है और बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव बिहार के खगड़िया क्षेत्र से निर्वाचित होकर संविधान सभा पहुंचते हैं। उनके भाषणों को संविधान सभा के प्रोसिडिंग में देखा जा सकता है।


साल 1952 में जब पहली बार चुनाव करवाया जाता है तो कमलेश्वरी बाबू किशनगंज क्षेत्र से विधायक बनते हैं और किशनगंज क्षेत्र की समस्याओं को जिम्मेदारी से सदन में उठते हैं। इनके साथ-साथ साल 1952 में राक्तमल अग्रवाल को भी किशनगंज से विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है और यह दोनों नेवा इंडियन नेशनल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत प्राप्त करते हैं।


साल 1957 के चुनाव में कांग्रेस के अब्दुल हयात, 1962 में स्वतंत्र पार्टी से मोहम्मद हुसैन आजाद और कांग्रेस से यशोदा देवी को किशनगंज से विधानसभा पहुंचने का मौका प्राप्त होता है। इसी बीच 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी द्वारा सुशीला कपूर को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है और वे जीत जाती है। इसके बाद साल 1969 से लेकर 1977 तक कांग्रेस के रफीक आलम और साल 1980 से 1990 तक मोहम्मद मुस्ताक को किशनगंज का विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त होता यह वह दौर था जब किशनगंज अनुमंडल पूर्णिया जिले का हिस्सा हुआ करता था और यहां के लोग अपने आप को पूर्णिया वासी कहते थे। यहां के अधिकांश लोगों की मातृभाषा मैथिली और सूरजापुरी थी। काफी संघर्ष और सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन करने के बाद किशनगंज को पूर्णिया जिले से अलग कर स्वतंत्र जिला बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।


14 जनवरी 1990 को किशनगंज को स्वतंत्र जिला बना दिया गया। उस समय कांग्रेस पार्टी से डॉ जगन्नाथ मिश्रा बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उनका यह कार्यकाल काफी छोटा था। मात्र 94 दिनों के लिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। जानकारी अनुसार 6 दिसंबर 1989 को जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री बने थे और 10 मार्च 1990 तक उनका कार्यकाल रहा था। कुल मिलाकर 94 दिन। उनसे पहले सत्येंद्र नारायण सिंह मुख्यमंत्री थे जिनका कार्यकाल 270 दोनों का था।


जैसा कि हमने आपको बताया कि किशनगंज जिले की स्थापना 14 जनवरी 1990 को हुआ और 10 मार्च 1990 को जगन्नाथ मिश्र को कुर्सी छोड़नी पड़ी। इस फैसले के पीछे का कारण यह भी था कि जगन्नाथ मिश्रा मिथिला क्षेत्र के नेता थे और उस समय तक पूर्णिया और किशनगंज के अधिकांश लोग खुद को मिथिला क्षेत्र का मानते थे और मैथिली को अपनी मातृभाषा कहा करते थे। आज भी अगर आप किसी पुराने सुरजापुरी भाषा भाषी से मिलेंगे तो वह आपको गर्व के साथ यह कहते हुए मिल जाएंगे की उनकी भाषा सूरजापुरी और मैथिली का बहुत पुराना नाता है।


हम किशनगंज चुनावी यात्रा को लेकर बात कर रहे थे और इतिहास जाने बिना वर्तमान की चर्चा तो हो ही नहीं सकती है। किशनगंज जिला बन चुका था और उसके बाद से लेकर अब तक यहां जितने विधायक हुए वे सब के सब मुसलमान समाज से आते हैं। चाहे हम कांग्रेस के रफीक आलम की बात कर ले या चाहे राष्ट्रीय जनता दल के तस्लीमुद्दीन साहब और अख्तरुल इमान की बात कर ले, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद हो या ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के कमरुल होदा हो या कग्रेिस के वर्तमान किशनगंज विधायक इजहारुल हुसैन हो सब के सब मुसलमान समाज से आते हैं। बावजूद इसके सवाल उठता है कि मुसलमान समाज के लोगों की स्थिति में अधिक बदलाव क्यों नहीं हो रहा है। किशनगंज आज भी पिछड़ा हुआ क्यों है। यहां रूटीन वर्क को छोड़ दिया जाए तो कोई स्पेशल काम क्यों नहीं हो रहा।


आज भी यहां के लोग सड़क जाम से परेशान हैं। खेलकूद के लिए एक अच्छे से स्टेडियम का घोर अभाव है। जो मैदान है वह भी ठीक नहीं है। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लक्ष्य है कि बिहार के हर जिले में मेडिकल कॉलेज अस्पताल खोला जाएगा तो आज तक किशनगंज में मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल का निर्माण क्यों नहीं किया गया। डेढ़ दशक बाद आज जिले में एएमयू सेंटर खुला तो सही, मगर इसे अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयत्न करना पड़ रहा हैं। यूपीए सरकार ने इस सेंटर को 400 करोड़ अनुदान देने की घोषणा की थी लेकिन अब तक इस सेंटर को सिर्फ 10 करोड़ रुपए मिले हैं। फण्ड नहीं मिलने से एएमयू किशनगंज सेंटर कैंपस में भवन निर्माण का काम अब तक शुरू नहीं हो पाया है। यहां के ऐतिहासिक खगड़ा मेला को आज तक राजकीय मेले का दर्जा क्यों नहीं दिया गया। सीमावर्ती क्षेत्र होने के बाद भी आज तक यहां के लोगों को एयरपोर्ट से वंचित क्यों रखा गया। हालांकि बहुत जल्द पूर्णिया में एयरपोर्ट बनकर तैयार होने वाला है।


इन सभी सवालों के जवाब के लिए हमें एक ऐसे आदमी की जरूरत थी जो स्वतंत्र होकर हमें सब कुछ साफ-साफ बता सके। किशनगंज के बुद्धिजीवी समाज में उनका नाम आदर से लिया जाता है। वे जितने एनडीए वालों के करीबी हैं उतने ही महागठबंधन के नेता भी उन्हें मान सम्मान देते हैं। बातचीत के दौरान ही उन्होंने हमें कह दिया कि उनके नाम का खुलासा न किया जाए। हम तैयार हो गए और इसके बाद बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह चलता ही रहा।


उन्होंने हमें बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और यहां लगभग 70% लोग मुसलमान हैं। सूरजपुरी समाज को छोड़कर अधिकांश मुस्लिम समाज के लोग यहां के लोकल नहीं है वे लोग कहीं ना कहीं बाहर से आकर यहां पर बस गए हैं। एक तरह से कहिए वो किशनगंज के हो चुके हैं। लेकिन यहां का सूरजपुरी समाज उन्हें अपना नहीं मानता। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बाहर से आए लोगों के द्वारा ना तो सुरजापुरी भाषा को सम्मान दिया जाता है और ना ही इसका प्रयोग किया जाता है। हम और आप देखते हैं कि बिहार या बिहार के बाहर से जो लोग रोजी रोटी के लिए मुंबई, असम, बंगाल, गुजरात सहित भारत के अन्य हिस्सों में जाते हैं वे सबसे पहले वहां की भाषा और संस्कृति को अपनाने का काम करते हैं। इससे वहां के लोगों को लगता है कि यह लोग भले बाहर से आए हैं लेकिन हमारी सभ्यता और संस्कृति का सम्मान करते हैं। लेकिन जो लोग बाहर से किशनगंज आए उन्होंने ना तो अपनी मातृभाषा को जिंदा रखा और ना यहां की भाषा का सम्मान किया।


यही कारण है कि अब यहां आपको सुरजापुरी, मैथिली, मगही, और भोजपुरी वाले भी मिल जाएंगे लेकिन सब के सब हिंदी में रंग चुके हैं। हालांकि हिंदी बोलने में कोई खराबी नहीं है, सवाल उठता है कि स्थानीय भाषा को सीखने में परेशानी क्या है।?


जब कभी चुनाव का समय आवा है सूरजपुरी समाज के लोगों को अपने ऊपर मंडरा रहे खतरे दिखने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अगर हम लोग एक होकर नहीं रहेंगे तो बाहर से आकर यहां बसने वाले लोग चाहे वह पछिमा हो या शेरशाहबादी, वे उन पर हावी हो जाएंगे। अगर अभी से वे लोग सतर्क नहीं रहेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा जब उनका नामोनिशान मिट जाएगा। इसीलिए 70% मुसलमान समाज की जनसंख्या होने के बाद भी यह लोग एकजुट होकर वोट नहीं करते हैं।


अन्य बातों पर मुस्लिम समाज भले अलग-अलग सोचते हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी भी है जिस पर सब के सब एक हैं। यह लोग जितना बीजेपी अर्थात भारतीय जनता पार्टी का विरोध करते हैं उतना ही ओवैसी की पार्टी एमआईएमआईएम के विरोधी हैं। अगर हिंदू समाज के लोगों की बात करें तो 30 परसेंट में से अधिकांश लोग बीजेपी समर्थक हैं लेकिन उन्हें पता है कि सिर्फ 30% बोट से उनके उम्मीदवार नहीं जीत सकते हैं और ओवैसी की पार्टी जीत न जाए इसलिए वे बीच का रास्ता इख्तयार करते हैं। एक तरह से कहा जाए तो सूरजापुरी और लोकल हिंदू समाज के लोग एकजुट होकर वोट करते हैं।


यही कारण है कि जिस कांग्रेस पार्टी की स्थिति दयनीय हो चुकी है और 40 लोकसभा सीट वाले बिहार में 39 सीट को एनडीए गटबंधन ने अपने कब्जे में ले लिया था तब भी बिहार में कांग्रेस पार्टी कि लाज किशनगंज सीट से डॉ मो. जावेद आजाद की जीत ने बचाई कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार किशनगंज में न सिर्फ सांसद बनते हैं बल्कि विधायक भी बन जावे हैं। यहाँ लोगों को लगता है कि कांग्रेस देश की एकमात्र ऐसी पार्टी है जो अधिक कम्युनल नहीं है और सबको साथ लेकर काम करती है।


क्या सच में मुसलमान समाज के लोगों को लगता है कि केंद्र की मोदी सरकार या या बिहार बीजेपी के नेता उनके लिए अच्छा काम नहीं करते हैं तो जवाब मिलता है कि ऐसा नहीं है। यंग जनरेशन के लोगों में बदलाव दिखने लगा है। वे लोग पढ़ लिखकर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता सहित देश के अन्य राज्यों में आकर बड़ी-बड़ी कंपनियों में नौकरी करने लगे हैं। विभिन्न सरकारी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियां कर अफसर बनने लगे हैं। वे लोग जानने लगे हैं कि उनके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है। इसलिए आप ऐसा नहीं कह सकते हैं कि किशनगंज की गरीब जनता मोदी सरकार की योजनाओं से प्रभावित नहीं है। चुनाव में जीत-हार तो एक पैमाना है ही, जिसका अधिक महत्व होता है लेकिन अगर आप अध्ययन करेंगे तो देखिएगा की बीजेपी के प्रति मुस्लिम समाज के लोगों का मन पहले से बदल रहा है। यह भी सच है कि जदयू अर्थात नीवीश कुमार की पार्टी अगर भारतीय जनता पार्टी, भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी तो उसके उम्मीदवार चुनाव नहीं जीतेंगे। फिर यहां के लोग महागठबंधन के साथ जाना पसंद करेंगे भले उम्मीदवार राष्ट्रीय जनता दल का हो या कांग्रेस का।


हमारे मन में सवाल था कि किशनगंज विधानसभा सीट से आज तक कोई हिंदू नेता विधायक क्यों नहीं बन पाया। क्या बीजेपी का यहां पर कोई ऐसा नेता नहीं है जो मुसलमान समाज के लोगों के बीच में जाकर काम करता हो, जिसके बारे में कहा जाता हो कि वे जितना हिंदू समाज का है उतना ही मुसलमान समाज का। बीजेपी को छोड़िए जदयू-राजद और कांग्रेस वाले ही किसी हिंदू नेता को टिकट क्यों नहीं देते हैं।


देखिए ऐसा है कि किस सीट पर किस समाज के लोगों की जनसंख्या अधिक है यह फैसला पटना या दिल्ली में बैठे आला कमान के नेता कर लेते हैं। जैसा कि यहां पर मुसलमान समाज के लोगों की संख्या अधिक है, इसीलिए कोई भी पार्टी मुसलमान बिरादरी को नाराज नहीं करना चाहती है और ना कोई हिंदू उम्मीदवार किशनगंज सीट से विधानसभा का टिकट लेकर रिस्क उठाना चाहता है। यह अलग बात है कि अगर कोई संघर्ष का रास्ता तैयार करें तो जीत हो भी सकती है।


इस बार के चुनाव में क्या होने जा रहा है, जब हमने यह सवाल किया तो जवाब साफ था की महागठबंधन के लिए यह सेफ सीट है। किशनगंज की जनता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वो पसंद करती है लेकिन उनको यह भी पता है कि नीतीश कुमार के मजबूत होने का मतलब यह भी है कि बिहार में भाजपा मजबूत होगी। वर्तमान में जो विधायक हैं वह हिंदू और मुसलमान समाज के लोगों को साथ लेकर चलते हैं, अगर वह बहुत अच्छे नहीं है तो उन्हें खराब भी नहीं कहा जा सकता।


हालांकि दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल के नेवाओं का कहना है कि हम लोग इस बार किशनगंज सीट से अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं, कांग्रेस से गठबंधन होती है तो उन्हें किशनगंज के बदले कोई दूसरा सीट देने का ऑफर दिया जाएगा।


वहीं एआईएमआईएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हुसैन ने हमें बताया कि इस बार किशनगंज की जनता ने मन बना लिया है, कोई दाल गलने वाला नहीं है। पिछली बार चार सीट में से दो सीट पर हमने जीत का परचम लहराया था। इस बार चारों सीट पर हमारी जीत होगी। विरोधी दल के नेताओं के द्वारा नाहक भ्रम एआईएमआईएम के बारे में फैलाया जा रहा है। वहीं बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव में अभी काफी टाइम है, सीट शेयरिंग को लेकर कोई बात नहीं हुई है। अभी यह कहना जल्द बाजी होगा कि किस सीट से किस पार्टी का उम्मीदवार चुनाव लड़ने जा रही है। हालांकि इतना तय मानिए कि जो सीट हमारे पास है वहां से हमारी पार्टी का ही उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरने वाला है।


जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद नेता संजय कुमार झा का कहना है कि हम लोगों को 2025 में एक बार फिर से अपनी सरकार बनानी है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सचा की कुर्सी पर बिठाना है इसीलिए हम लोगों ने 243 विधानसभा सीटों में से 225 विधानसभा सीट जीतने का अपना संकल्प और अभियान रखा है। एनडीए गठबंधन मजबूत है जहां से जिस उम्मीदवार के जीतने की अधिक संभावना होगी, वहां से उस पार्टी के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतार जाएगा।


क्या कहती है किशनगंज की जनता

किशनगंज की अधिकांश जनता का कहना है कि हमें कोई हारे और कोई जीते उससे उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना इस बात से फर्क पड़ता है कि किशनगंज में शांति व्यवस्था बनी रहती है या नहीं। हमें विकास के साथ-साथ शांति व्यवस्था चाहिए। आपसी भाईचारा चाहिए। हम उस पार्टी का कभी साथ नहीं दे सकते जो जात और धर्म के नाम पर लड़ाने का काम करती है।

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