दिल्ली में भाजपा की सफल चौंकाऊ परंपरा
- MOBASSHIR AHMAD
- Mar 19
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डॉ. रमेश ठोकुर
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में भारी मंथन और विचार-विमर्श के पश्चात दिल्ली चुनाव परिणाम के 12वें दिन बाद आखिरकार रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान हुआ। मुख्यमंत्री के नाम पर भारतीय जनता पार्टी की चीकाऊ शैली का सिलसिला विभिन्न राज्यों की तरह दिल्ली में भी जारी रहम्। भाजपा के जीते 48 विधायकों में शायद कोई एवथ नाम छूटा हो जिनका नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर सोशल मीडिया में न तैरा हो। बड़ा कयास तो प्रवेश वर्मा को लेकर था लेकिन अंत में वह पिछड़ गए। क्यों पिछड़े? इसका जवाब किसी के पास नहीं? आठ फरकी के चुनाव परिणाम के दिन से लेकर 19 तारीख को देर शाम तक मुख्यमंत्री के नाम को लेकर भाजपा ने सस्पेंस बरकरार रखा। जैसे पिटारे से नाम बाहर निकला, सभी चकित रह गए। ऐसा नाम जिसकी कल्पना तक किसी नहीं की?
भाजपा ने एक और नई परंपरा शुरू की है। चुनाव जीतने के बाद राज्यों में किसी बड़े चेहरे को मुख्यमंत्री के पद पर नहीं बैठाएंगे जबकि, अंदरखाने इस परंपरा से वह नेता असांज और बेहद नाखुश हैं जो जीत में बड़ी भूमिका अदा निभाते हैं। सीएम पद के दावेदारों में-दिल्ली में भी कुछ बड़े और प्रचलित नाम थे लेकिन सभी नकारे गए। मोदी-शाह के फैसले के बाद पार्टी का अन्य कोई महत्वाकांक्षी विधायक शायद ही रेखा गुप्ता का विरोध करने का अब दुस्साहस कर पाए ? सीएम बनने के बाद रेखा गुप्ता को भी अपना सियासी कार्यकौशल दिखाना पड़ेगा। पार्टी ने चुनाव अभियान में दिल्ली वालों को बहुतेरे सब्जबाग दिखाए हैं। उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी उन पर होगी। फ्री की सौगातें, पेयजल समस्या से निपटना, बिजली संकट, यमुना की सफाई बेरोजगारी जैसे बड़े मसलों पर उनको राजनीतिक परीक्षा दिल्ली को जनता लेगी। परीक्षा आम आदमी पार्टी की भी है। विपक्षी भूमिका में कितना कारगर साबित होंगे, ये उन्हें सिद्ध करना होगा।

भाजपा का चुनाव जीतने के बाद अंत तक मुख्यमंत्री के नाम को सार्वजनिक नहीं करने की 'चौंकाऊ परंपरा' इस समय चचाओं में है। ये सिलसिला बीते कुछ वर्षों से उन्होंने जारी रखा है। हालांकि इसके फायदे-नुकसान का गणित उन्हें ही पता होगा ? पिछले ही साल मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी इसी शैली ने सबको चौकाया था। एमपी में डॉ. मोहन यादव, राजस्थान में पंडित भजनलाल शर्मा को सामने लाकर पार्टी ने प्रदेशों में खलबली मचा दो थी। उन तीनों राज्यों के निर्णयों में एक बात तो कॉमन थी जो कतई भी चौकाती नहीं? दरअसल, तीनों ही मुख्यमंत्री आरएसएस और भाजपा की राजनीतिक-संस्कृति में पले-बड़े नेता हैं? तीनों नाम संघ-भाजपा की आपसी सहमति से तय हुए। पेशे से वकील रेखा गुप्ता सालों से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रहीं हैं। संघ के नेताओं से भी उनके संबंध बेहतरीन बताए जाते हैं।
हरियाणा के जींद जिले स्थित नंदगढ़ में जन्मी रेखा गुप्ता को लेकर भाजपा ने एक मास्टर स्ट्रोक खेला है. इस समय तकरीबन राज्यों में भाजपा को हुकूमते हैं जिनमें किसी में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं हैं। इसलिए राजधानी में महिला को मुख्यमंत्री बनाकर उस कमी की भाजपा ने दूर किया है क्योंकि विपक्षी दल ये आरोप लगाते आए थे कि भाजपा महिला सशक्तिकरण की बात तो करती है पर निभाती नहीं? पार्टी ने जाति-समीकरण को देखकर ही रेखा गुप्ता का सीएम के लिए चुनाव किया है क्योंकि यह वैश्य समाज से वास्ता रखती हैं। दिल्ली में वैश्य बहुतायत संख्या में हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी वैश्य थे. उनकी काट पार्टी ने रेखा के जरिए की है। वैश्य समुदाय से जुड़े अन्य नेता के नाम पर भी मंथन हुआ। जैसे कि अगर अनुभवी
राजनेता विजेंद्र गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया जाता, तब भी इस समीकरण को साध सकते थे लेकिन महिला होने के नाते रेखा गुप्ता का पलड़ा विजेंद्र गुप्ता से भारी पड़ा।

भविष्य की चुनौतियों की जहां तक बात है तो उससे लड़ने के लिए न सिर्फ मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को जमीन पर उतरना पड़ेगा। बल्कि भाजपा को पूरी मशीनरी को भी सामूहिक रूप से दिल्ली में मोर्चा संभालना होगा क्योंकि पार्टी ने चुनाव में वादों की बौछार की हुई है। सभी वादों को पूरा करना होगा। बादे पूरे इसलिए करने होंगे क्योंकि दिल्ली को राजनीतिक पाठशाला कहते हैं। केंद्रीय मीडिया भी यहीं बसती है। नेता-नगरी से लेकर तमाम पावर पैसा यहीं है। उन सभी की नजरें टिकी रहेंगी। इसके बाद भाजपा को बिहार भी कूच करना है। दिल्ली का मौजूदा बजट 76 हजार करोड़ के आसपास है जिसमें बेतहाशा वृद्धि नई सरकार को करनी पड़ेगी, तभी महिलाओं को नगद पैसे देना, पेंशन में बढ़ौतरी, बिजली-पानी फ्री, बस फ्री, प्रेग्नेंट महिलाओं को पैसा देना इत्यादि सभी वादों का खर्च उठा पाएगी सरकार।
रेखा गुप्ता को राजनीति अभी तक नगर निगम तक सीमित रही। बड़े औहदे का उन्हें अनुभव नहीं है। हालांकि, उनकी निजी शख्सियत खांटी भाजपाई की रही है पर राष्ट्रीय नेतृत्व वाली छवि से दूर ? उनके भाषणों में उग्रता, मुखरता और लड़कपन हमेशा से दिखा। तभी तो, उनके नाम की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर उनके पुराने विवादास्पद व आपत्तिजनक भाषणों को हाएक्सद्ध से उठाकर लोग शेयर कर रहे है पर देखा जाए जो मौजूदा राजनीतिक संस्कृति में इस तरह के कमेंट्स न सिर्फ अब पसंद किए जाते हैं. बल्कि उन्हें योग्यता के तौर पर देखा जाता है। निगम में उनके द्वारा माइक तोड़ने की घटना, केजरीवाल को अनाप-शनाप कहने वाले बयान भी सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं।

बहरहाल, दिल्ली की राजनीति में अब चुनौतियों का दौर सत्ता पक्ष और विपक्षी पार्टी हाआपड़ दोनों के लिए शुरू होगा? हारने के बाद आम आदमी पार्टी और विजय प्राप्ति के बाद भाजपा, दोनों दिल्ली में अपने-अपने राजनीतिक वजूद को बचाने और बढ़ाने में जुटेंगी। कांग्रेस के समझ भी चुनौतिया है, वह भी उभरने की कोशिश करेगी। देखते कौन-कौन अपनी परीक्षा में सफल होगा या विफल?
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