कौन जात हो जी...
- MOBASSHIR AHMAD
- May 23
- 18 min read
पहलगाम घटना के बाद मोदी सरकार जाति जनगणना करने को तैयार

सन्नी यादव
जब से केंद्र की मोदी सरकार ने कैबिनेट बैठक में वह फैसला लिया है कि पूरे भारत में जाति जनगणना करवाने को भारत सरकार तैयार है तब से पूरे देश में हाय तौबा मचा हुआ है। कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई विरोध। कोई कह रहा है को जनसंख्या के अनुरूप आरक्षण होना चाहिए और सरकारी नौकरी के साथ-साथ प्राइवेट नौकरी में भी ओबीसी और एससी एसटी के लिए सीट रिजर्व किया जाना चाहिए। हालांकि एक दूसरा पक्ष भी है जो मानता है की जाति जनगणना के बाद समाज में जातिवाद को लेकर जो मैप है वह कम होने के बदले और अधिक बढ़ेगा, लेकिन इन सब के बीच जो एक सवाल है वह इन दिनों काफी बढ़ा है और सब एक दूसरे से धरातल पर हो या सोशल मीडिया में पूछ रहे हैं कि भैया कौन जात हो। ब्राह्मण हो या जादो जी। बाबूसाहब हो या लव कुश। भूमिहार हो या पासवान मुसहर। कहने का मतलब है सब एक दूसरे की जाति और उसकी जनसंख्या जानने को बेताब है।
पिछले महीने 22 अप्रैल की शाम एक बुरी खबर आती है और पता चलता है कि जम्मू के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के द्वारा 28 लोगों की जान ले ली गई है। लोगों से पहले उनका धर्म पूछा जाता है और फिर कपड़े खुलवाकर हिंदू या मुसलमान होने की जांच की जाती है और फिर सबको गोलियां मार दी जाती है। इस घटना में सबसे जो हृदय विदारक मंजर सामने आया वह एक नई नवेली दुल्हन का था जिसके पति को उसके ही सामने गोली मार दी गई। जब उस महिला ने आतंकवादियों से यह कहा कि मेरे पति को तुम लोगों
ने मार दिया है मुझे भी मार डाली तो आतंकवादियों का कहना था कि तुम्हें नहीं मारेंगे। उस महिला को कहा गया कि जाओ जाकर मोदी सरकार से कह दो कि जो करन्नस है सो कर ले। इसके बाद देश में एक बड़ी बहस शुरू हो गई कि देश में हम लोग जात-पात के नाम पर लड़ते हैं लेकिन हमसे हमारा धर्म पूछ कर सरेआम हमें निशाना बनाया जाता है और हमारे लोगों को मार दिया जाता है। आतंकवादियों की नजर में ना ती कोई ब्राह्मण है और ना ही कोई डोम दुसाध। ना ही कोई राजपूत भूमिहार है और ना ही कोई मुसहर पासी। पूरा देश गुस्से में था। इसके बाद जो हुआ वह हम और आप जानते हैं। जाति जनगणना वाले मुद्दे पर वापस लौटते हैं।

पहलगाम की घटना के बाद पूरा देश उद्वेलित था और पाकिस्तान के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन लेने के लिए केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था। लगातार बैठकों का दौर शुरू हो चुका था। जिस दिन घटना होती है उस दिन देश के प्रधानमंत्री सऊदी अरब की यात्रा पर थे। इस कारण गृह मंत्री अमित शाह सीधे कश्मीर पहुंचते हैं और वहां पर लगातार मीटिंग कर स्थिति का जायजा लेते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा को बीच में ही छोड़ कर भारत पहुंचते हैं और सबसे पहले एयरपोर्ट पर ही प्रधानमंत्री को सभी स्थिति से अवगत करवाया जाता है। दिन भर बैठकों का दौर चलता रहता है और अगले दिन अर्थात 24 अप्रैल को जब बिहार के मधुबनी के झंझारपुर स्थित विदेश्वर स्थान में एक जनसभा को संबोधित करने के लिए पीएम मोदी पहुंचते हैं तो सख्त शब्दों में कहते हैं कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले और आतंकवादियों को पनाह देने वाले लोगों को अब तक की सबसे बड़ी सजा दी जाएगी। उन्हें बवशा नहीं जाएगा। इसी मंच से पहली बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ देर के लिए अंग्रेजी में भाषण दिया और दुनिया वालों को साफ कह दिया कि हम चुप रहने वाले नहीं है और जिस किसी ने भारत की अस्मिता पर हमला किया है उसे मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा।
इसके बाद लगने लगा था कि देश गुस्से में है और पाकिस्तान पर एक और डायरेक्ट एक्शन लेने को तैयार है। इस बीच भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। सबसे पहले सिंधु जल समझौता को बंद करने का ऐलान कर दिया। इसके बाद पाकिस्तान के सभी नागरिकों को 48 घंटे के अंदर भारत छोड़ने का आदेश जारी हुआ। पाकिस्तानी दूतावास को भी बंद कर दिया गया। यह सभी फैसले पहलगाम घटना के अगले दिन ली गई। आसान भाषा में कहा जाए तो 22 अप्रैल को शाम में पहलगाम आतंकवादी घटना होती है। अगले 24 घंटे के अंदर अर्थात 23 अप्रैल को भारत सरकार फैसला लेती है। 24 अप्रैल को पीएम मोदी मधुबनी जनसभा को संबोधित करते है।

इस दौरान लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कई बार बैठकों का दौर चला। कभी आर्मी के अध्यक्ष के साथ तो कभी इंडियन एयर फोर्स और जल सेना के अध्यक्ष के साथ। इस दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिलने पहुंचे और उन्हें हालात से अवगत कराया।
दूसरी और सेना आतंकवादियों को ढूंढने में लगी रही और चुन-चुन कर उन तमाम जगहों को निशाना बना रही थी जहां से आतंकवादी अपनी घटनाओं को अंजाम दे रहे थे।
पहलगाम घटना को एक सप्ताह बीत चुका था। 30 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीसीएस की बैठक लेते हैं। पहले यह जान लेते हैं कि सीसीएस मतलब होता क्या है। इसका पूरा नाम 'सुपर कैबिनेट कमेटी' है। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं, इस बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल के कुछ टॉप मंत्री भी मौजूद थे। कई घंटे तक बैठक होने के बाद मोदी कैबिनेट की बैठक होती है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मीडिया के सामने आए और उन्होंने पत्रकारों को विस्तार पूर्वक बताया कि आज हम लोगों ने कई बड़े फैसले किए हैं। उनमें से एक जाति जनगणना है।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। जनगणना के साथ ही जातियों की गिनती होगी। उन्होंने जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस को घेरा। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना को कांग्रेस ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया।
आखिरी जाति जनगणना 1931 में हुई थी। 94 साल बाद पूरे देश में जाति जनगणना होगी। आजाद भारत में पहली बार केंद्र सरकार जाति जनगणना करवाएगी। अश्विनी वैष्णव ने बताया कि शिलॉन्ग से सिल्वर कॉरिडोर को मंजूरी दी गई है। जिसकी कुल लागत 22,864 करोड़ रुपये होगी। 16618 किलोमीटर लंबे 4 लेन हाइवे को मंजूरी दी गई है। मेघालय से असम तक नए हाइवे को मंजूरी दी गई है।
इसके बाद पहलगाम की घटना को भूलकर सभी लोग एक दूसरे से पूछने लगे कौन जात हो जी। लोग यह भी भूल गए कि पहलगाम की घटना में धर्म पूछ कर लोगों को निशाना बनाया गया था। अचानक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में जाति जनगणना ट्रेंड करने लगा। राहुल गांधी सहित कांग्रेस के अधिकांश नेता और विपक्षी दल के सभी नेता जाति ही कोई मुसहर पासी। पूरा देश गुस्से में था। इसके बाद जो हुआ वह हम और आप जानते हैं। जाति जनगणना वाले मुद्दे पर वापस लौटते हैं।

पहलगाम की घटना के बाद पूरा देश उद्वेलित था और पाकिस्तान के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन लेने के लिए केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था। लगातार बैठकों का दौर शुरू हो चुका था। जिस दिन घटना होती है उस दिन देश के प्रधानमंत्री सऊदी अरब की यात्रा पर थे। इस कारण गृह मंत्री अमित शाह सीधे कश्मीर पहुंचते हैं और वहां पर लगातार मीटिंग कर स्थिति का जायजा लेते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा को बीच जनगणना को लेकर क्रेडिट लेने लगे। सोशल मीडिया में तो कुछ लोगों ने इतना तक लिख दिया कि जिस तरह से देश में मुसलमानों के साथ दोयम दर्जा का रवैया अपनाया जा रहा है इस तरह अब ब्राह्मण राजपूत और भूमिहार समाज के साथ-साथ सवर्ण समाज के साथ होने वाला है।

पत्रकार पुष्यमित्र जाति जनगणना पर कहते हैं। कि जिस तरह राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को फॉर ग्रांटेड लेना शुरू कर दिया था. आने वाले वर्षों में कमोवेश यही स्थिति सवर्णों की होने वाली है। अब लगभग तय है कि कांग्रेस और भाजपा जैसी दो बड़ी पार्टियों ने इनकी परवाह बंद कर दी है। भाजपा मान कर चल रही है कि ये बोट उन्हीं को देंगे। खुशी से या दुखी मन से। उन्हें बहलाने के लिए मंदिर और दूसरे सांप्रदायिक मुद्दे काफी हैं। क्षेत्रीय दल पहले से ही पिछड़ी और दलित जातियों के आधार पोट पर बने हैं। मुसलमानों की बात करने के लिए तो खैर ओवैसी हैं, सवों की बात करने वाली एक भी पार्टी आज भारत में नहीं है। बोटर समूह के तौर पर ये अब एक तरह से भारतीय राजनीति में अप्रासंगिक होने जा रहे हैं।
पत्रकार पुष्यमित्र स्वीकार करते हैं कि सवर्ण समाज को पहले इन्हें इनके बोकल और इन्फ्लूएंसर होने का फायदा मिलता था, अब हर जाति और समुदाय में इन्फ्लूएंसर हो गए हैं। इनकी जरूरत खत्म होने लगी है ।संख्या है नहीं, जितनी है भी उस हिसाब से बोट भी नहीं करते।
वही प्रभात खबर के पत्रकार आशीष का कहना है कि में पुष्यमित्र की बातों से सहमत हूं. लेकिन रास्ता यही से निकलेगा। संख्या से सत्ता का खेल बहुत कारगर नहीं होगा। अंतिम शक्ति ज्ञान ही हैं। जिसके पास ज्ञान होगा राज वही करेगा। ये बात भी मगध ने ही दुनियाँ को बताया है।
पत्रकार कुमुद सिंह कहती है कि भारत में पहले विधानसभा चुनाव 1936 से ठीक पहले अंग्रेजों ने जाति को वोटबैंक बनाने के लिए जातिगत गणना करवाई थी। ब्राह्मण अगर जाति हैं तो शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय भी जाति होनी चाहिए थी। अंग्रेजों ने ब्राह्मण को जाति क्यों बनाया, कायदे से तो वो वर्ण हैं। ब्राह्मण वर्ण की जाति ती भूमिहार, जैवार, सरयूपाणी, कन्यकुज आदि से हैं, जैसे उपाध्याय का पेशा अलग हैं, मिश्र की योग्यता अलग हैं, द्विवेदी और चतुवेदर्दी दो जात हैं।। ब्राह्मण कोई जात ही नहीं हैं। राजपूत कोई जात नहीं है। ये अंग्रेजों के बनाए चोचले हैं। सामाजिक तौर पर अंग्रेजों ने इस देश को इतना जाहिल बना दिया कि उससे उबरने में सदियों लग जायेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार का कहना है कि जाति की जनगणना होगी। इसका मकसद है सही है। प्रतिनिधित्व देना। आरक्षण की सीमा को 50 फीसद से अधिक करना। क्या इसके लिए बीजेपी तैयार है? AND हमारा भी मानना है कि जाति की जनगणना जरूरी है लेकिन मोदी सरकार ने इस वक्त यह फैसला क्यों लिया ? बीजेपी ने जाति जनगणना का खुलकर विरोध नहीं किया मगर इतने सालों में उसे लागू भी नहीं किया। लेकिन इस फैसले के सामाजिक पहलुओं को कैसे समझा जाए। पिछले बीस-तीस सालों में जाति को लेकर हमारी समझ में क्या विस्तार हुआ है? क्या इसकी ऐतिहासिक और आधुनिक समस्याओं और स्वरूपों पर पर्याप्त रूप से बहस हो रही है? भोजपुरी में आपसे कुछ बात की है, सुनिएगा।
बिहार विधानसभा के विधायक डॉ संदीप सौरभ का कहना है पूरे देश में जाति जनगणना की घोषणा सामाजिक न्याय की दिशा में देश के विपक्ष और जनांदोलनों की ऐतिहासिक और बड़ी जीत है।
आज गोदी चैनल भले ही इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक कह रहा है लेकिन हकीकत यही है कि भाजपा के नेताओं, उनके ट्रोलआर्मी और स्वयं पीएम ने जाति जनगणना का कई बार मजाक उड़ाया और उसका विरोध किया। लेकिन यह जनता के संगठित दबाव और विपक्ष की लगातार मांगों का नतीजा है कि अंततः उन्हें यह घोषित करना पड़ा। यह सिर्फ गिनती नहीं, बल्कि वचितों के हिस्सेदारी की लड़ाई है।
लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं होता। बिहार में पिछले वर्ष हुई जातिगत सर्वेक्षण ने जो तस्वीर दिखाई, उसके आधार पर आरक्षण का दाबरा बढ़ाकर 65% किया गया, लेकिन आज तक वह संविधान को 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया। जब तक यह नहीं होता, सामाजिक न्याय सिर्फ कागज पर रहेगा। हम मांग करते हैं कि इसे तुरंत प्रचीं अनुसूची में शामिल कर जमीन पर लागू किया जाए।

साथ ही, उसी समय घोषित किए गए गरीबों को 2-2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता का वादा भी आज तक अधूरा है। अगर जाति जनगणना की घोषणा की है, तो सामाजिक न्याय के इन दोनों अहम वादों को भी तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
घोषणा काफी नहीं हक जमीन पर चाहिए। गिनती के बाद अब हिस्सेदारी और हकदारी तय करो।
पत्रकार पंकज प्रसून का कहना है परशुराम जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार और कैबिनेट ने देश में जाति आधारित जनगणना की सौगात दी है। अब अगले साल परशुराम जयंती के अवसर पर प्राइवेट सेक्टरों में भी आरक्षण करने का ऐलान कर दें मोदी जी तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए और उसके अगले साल परशुराम जयंती के अवसर पर यही कोई 80-90 फीसदी आरक्षण सरकारी नौकरियों में कर दें तो फिर मोदी जी का असली मास्टरस्ट्रोक इसको ही कहा जाएगा। बताइये देशवासियों को जंग के मुद्दे से भटकाकर जाति जनगणना में उल्खा दिया सरकार ने। किसी ने सब ही कहा था। जहां से आम आदमी सोचना बंद कर देता है। वहीं उस प्वाइंट से मोदी जी सोचना शुरू कर देते हैं। किस अंदाज में मोदी जी ने पाकिस्तान से बदला के मुद्दे को ही बदल कर रख दिया है। जाति-जाति का गेम बीजेपी और मोदी जी थोड़े ना खेलते हैं। परशुराम जयंती हर्षोल्लास के संग मनाने वाले मोदी जी के इस मास्टरस्ट्रोक के बारे में क्या विचार रखते हैं। इसके लिए हम सबको इंतजार करना होगा।

विपक्षी दल में क्रेडिट लेने की होड़, कांनोस और राजद ने कहा यह हमारी जीत है
जब से केंद्र की मोदी सरकार ने जाति जनगणना को लेकर बड़ा फैसला किया है तब से विपक्षी दल के नेताओं में क्रेडिट लेने की होड़ सी मच गई है।
बिहार में महागठबंधन के अधिकांश नेताओं ने तो जश्न शुरू कर दिया। सबसे पहले बिहार विधानसभा में नेत्ता प्रतिपक्ष और राजद के नेता तेजस्वी यादव ने पार्टी के नेताओं को मिठाई खिलाकर शुभकामनाएं दी और पटाखे फोड़े। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी के साथ-साथ देश के तमाम समाजवादी नेताओं ने जाति जनगणना करने को लेकर एक बहुत बड़ा संघर्ष किया है जो आज सफल हुआ है।
पसमांदा मुसलमानों की जमीनी हकीकत आएगी सामने ओवेसी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इतेहादुल मुस्लिमीन

(AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार से प्जाति जनगणना कराए जाने की लेकर सवाल किया। उन्होंने पूछा कि देश में जाति जनगणना कब कराई जाएगी और इसकी प्रक्रिया कब तक पूरी होगी? ओवैसी ने पसमांदा और गैर-पसमांदा मुसलमानों की भी अलग-अलग गणना कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि हम देशभर में जाति जनगणना की मांग उठाते रहे हैं। आखिरी बार जाति जनगणना 1931 में हुई थी, ऐसे में अगर जाति सर्वेक्षण होगा तो पता चलेगा कि किसे कितना लाभमिल रहा है और किसे नाहीं, इसलिए यह जरूरी है।
जाति जनगणना पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन आओवैसी ने कहा, 'मेरी पार्टी ने 2021 से मांग की थी कि देश भर में जाति सर्वेक्षण होना चाहिए। आखिरी जाति सर्वेक्षण 1931 में हुआ था, अगर जाति सर्वेक्षण होगा तो पता चलेगा कि किसे कितना लाभमिल रहा है और किसे नहीं, किसको आमदनी क्या है और कौन सी कास्ट ज्यादा आगे बढ़ गई, कौन पीछे रह गया, इसलिए यह जरूरी है। हम भाजपा और एनडीए से सिर्फ एक बात कहना चाहेगे, हमें समयसीमा बता दीजिए कि यह कब शुरू होगा, कब खत्म होगा और कब लागू होगा? क्या यह 2029 के संसदीय चुनाव से पहले हो जाएगा या नहीं होगा?'

वहीं पसमांदा मुसलमानों के जाति सर्वेक्षण को लेकर ओवैसी ने आगे कहा, 'पसमांदा मुसलमानों की स्थिति की जमीनी हकीकत सभी को पता चल जाएगी, उन्हें पता चल जाएगा कि गैर-पसमांदा
मुसलमानों की स्थिति कितनी खराब है, ये सब जरूरी है। ताकि यह सुनिश्चित हो कि लाभ हाशिये पर पड़े लोगों को मिले। जब अमेरिका ने सकारात्मक कार्रवाई की बात की, तो अफ्रीकी-अमेरिकी, बहूदी और चीनी इससे लाभान्वित हुए। अमेरिका शक्तिशाली होता गया। इसलिए, भारत के लिए ऐसी जनगणना होना जरूरी है। उसके बाद, उन्हें जरूरी कदम उठाने होंगे। एक अन्य बयान में उन्होंने कहा कि जातिगत आंकड़ों के अभाव के कारण निष्पक्ष नीतिगत निर्णय नहीं हो पा रहे हैं, जिससे देश को पुरानी पड़ चुकी 1931 की जाति जनगणना पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
जाति जनगणना पर तेजस्वी ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

जाति जनगणना के फैसले को तेजस्वी यादव ने ऐतिहासिक बताते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने जातीय जनगणना के बाद आरक्षण को न्यायसंगत बनाने की बात कही है। आइये जानते हैं उन्होंने पत्र में किन-किन बातों का जिक्र किया। तेजस्वी यादव ने अपने पत्र की शुरूआत बीजेपी नेताओं के जतीय जनगणना संबंधी बयानों को लेकर की है। जिसमें उन्होंने लिखा कि जब बिहार में जातीय जनगणना हुई तो बीजेपी नेताओं ने आंकड़ों पर सवाल खड़े किए। इसके बाद उसके लागू होने को लेकर भी अड़ंगा लगाया। तेजस्वी यादव ने लिखा देश भर में जाति जनगणना कराने की आपकी सरकार की हाल की घोषणा के बाद, मैं आज आपको सतर्क
आशावाद की भावना के साथ लिख रहा हूं। वर्षों से आपकी सरकार और एनडीए गठबंधन ने जाति जनगणना की मांग को विभाजनकारी और अनावश्यक बताकर खारिज कर दिया था। जब बिहार ने अपने संसाधनों से जाति सर्वेक्षण कराने की पहल की, तो केंद्रीय सरकार और उसके शीर्ष कानून अधिकारी ने हर कदम पर बाधाएं खड़ी की। आपकी पार्टी के सहयोगियों ने इस तरह के डेटा संग्रह की आवश्यकता पर ही सवाल उठाया। अनेक प्रकार कि फूहड़ और अशोभनीय टिप्पणियां कि गयीं। आपका विलंबित निर्णय उन नागरिकों की मांगों की व्यापकता को स्वीकार करता है, जिन्हें लंबे समय से हमारे समाज के हाशिये पर रखा गया है।
बिहार के जाति सर्वेक्षण नेए जिसमें पता चला कि ओबीसी और ईबीसी हमारे राज्य की आबादी का लगभग 63% हिस्सा हैं, यथास्थिति बनाए रखने के लिए फैलाए गए कई मिथकों को तोड़ दिया। जाति जनगणना कराना सामाजिक न्याय की लंबी यात्रा का पहला कदम मात्र है। जनगणना के आंकड़ों से सामाजिक सुरक्षा और आरक्षण के दायरे को आबादी के अनुरूप बढ़ाने का ध्येय भी इस प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।
एक देश के रूप में, हमारे पास आगामी परिसीमन में कई प्रकार के अन्याय को ठीक करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है। निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण जनगणना के आंकड़ों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। ओबीसी और ईबीसी का निर्णय लेने वाले संस्थानों में पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए विशेष प्रावधान किए जाने चाहिए। राज्य विधानसभाओं और भारत की संसद में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के आधार पर इन वंचित समूहों को सम्मिलित किया जाना होगा।
केंद्र की मोदी सरकार ने जाति जनगणना पर क्यों लिया यू टर्न
जाति जनगणना पर आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार ने यू टर्न ले ही लिया। लोकसभा चुनाव के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि उनकी नजर में सिर्फ चार जातियां हैं गरीब, बेरोजगार अर्थात युवा, महिला और किसान। बाद के दिनों में जाति जनगणना को कमजोर करने के लिए ही भाजपा ने एक और नारा दिया जो कारगर साबित हुआ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक चुनावी रैली के दौरान कहा था कि बटेंगे तो कटेंगे। कहने का मतलब था कि अगर हिंदू समाज के लोग जाति के नाम पर बंटते हैं तो दूसरे धर्म के लोग उन्हें अपना शिकार बनाएंगे।
घोड़ा और पीछे चलते हैं। साल 2020 में बिहार विधानसभा संपन्न होने के बाद और एनडीए सरकार के गठन के बाद तेजस्वी यादव एक दिन अचानक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने के लिए समय मांगते हैं और 24 घंटे के अंदर उन्हें समय मिल जाता है। बंद कमरे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच मुलाकात होती है और इसके बाद एक सर्व दलीय बैठक में सर्व समिति से फैसला लिया जाता है कि बिहार में जाति जनगणना करवाई जाए। इस बावत एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें बिहार के सभी पॉलीटिकल पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल थे, वे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने जाते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी मिलने का समय भी देते हैं लेकिन मुलाकात के बाद साफ कह देते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना करना संभव नहीं है। इसके बाद बिहार सरकार अपने खर्चे पर जाति गणना करती है। और डाटा जारी कर आरक्षण की सीमा को बढ़ाती है। जिस आरक्षण की सीमा को पटना हाई कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया जाता है और सुप्रीम कोर्ट में अभी भी सुनवाई जारी है।
भारत में जाति जनगणना कब और कैसे शुरू हुआ, नेहरू ने क्यों किया विरोध
स्वतंत्र भारत में आज तक कभी भी जाति जनगणना नहीं करवाई गई है। लेकिन देश आजादी से पहले अंग्रेजों ने जाति जनगणना की शुरूआत की थी। सबसे पहले साल 1881 में अंग्रेजों के द्वारा जाति जनगणना करवाई गई और यह साल 1931 तक चलती रही। साल 1941 में जाति जनगणना करवाई तो गई लेकिन इसके डाटा को जारी नहीं किया गया। 1931 की जनगणना के अनुसार उस समय कुल 4,147 जातियां थीं।
इस जनगणना में पता चला कि देश की कुल 2711 करोड़ आबादी में से 52 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) थे। देश आजाद होने के बाद उस समय के तमाम बड़े नेताओं ने जिसमें देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, भीमराव अंबेडकर और मौलाना आजाद सहित कई बड़े नेता शामिल थे, उन लोगों ने जातीय जनगणना नहीं करवाने का फैसला लिया। इन लोगों का तर्क था कि जातीय जनगणना करवाने से समाज में जातिवाद को और अधिक बढ़ावा मिलेगा।
देश आजाद होने के बाद साल 1951 में पहली बार जाति जनगणना की गई तो उसमें सिर्फ एससी और एसटी समाज के लोगों की गिनती की गई। इन लोगों को भी गिनती इसलिए की गई क्योंकि इन्हें आरक्षण देने की बाध्यता संविधान में की गई थी।
इसी बीच मंडल कमीशन को लागू करने का फैसला लिया जाता है और साल 1931 की जातीय जनगणना के अनुसार शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की जाती है जिसे 1990 में ही लागू किया जाता है।
अब यह भी जान लेते हैं कि मंडल कमीशन आखिर था क्या। मंडल आयोग भारत में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की पहचान और उनकी स्थिति में सुधार के लिए उपायों की सिफारिश करने के लिए स्थापित एक आयोग था। यह आयोग 1979 में गठित किया गया था और इसकी अध्यक्षता बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल ने की थी। मण्डल आयोग की सिफारिशें सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित थी, जिसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर प्रदान करना था, विशेषकर उन वर्गों के लिए जो ऐतिहासिक रूप से वंचित रहे हैं।
मंडल आयोग ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी, जो आरक्षण को 27% तक बढ़ाने का प्रस्ताव था। मंडल आयोग की सिफारिशें भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, और उन्होंने आरक्षण के मुद्दे पर बहस को तेज कर दिया। मंडल आयोग की सिफारिशों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा, और इसने ओबीसी के लिए सामाजिक और आर्थिक अवसर प्रदान किए।
मंडल कमीशन लागू होने के बाद कुछ सालों के अंदर ही जाति जनगणना को लेकर आवाज उठने लगी। लालू प्रसाद यादव हो या नीतीश कुमार लोकसभा में जाति जनगणना करने की मांग करते रहे। लेकिन उस समय की केंद्र सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। साल 2005 में जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनी और लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे तब भी उन्होंने जाति जनगणना कराने की मांग की। कांग्रेस की सरकार ने पहले टेक्निकल प्रॉब्लम का हवाला देकर जाति जनगणना करने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में साल 2011 में जाति और आर्थिक जनगणना करने को तैयार हो गई। कहा जाता है कि सरकार ने जाति जनगणना तो करवाया लेकिन आंकड़े जारी करने से इनकार कर दिए। सर्वेक्षण के दौरान जिसे जो मन आया उसने अपनी जाति दर्श करवा दी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश में 46 लाख जातियां निकल आई। हालांकि उसे डाटा को जारी नहीं किया गया लेकिन भारत सरकार सरकारी योजना बनाने में उसे सरकारी आंकड़े का प्रयोग कर रही है।
अब जब नए सिरे से जाति जनगणना कराने की बात हो रही है तो केंद्र की मोदी सरकार ने ऐलान किया है कि साल 1931 की जनगणना को आधार बनाकर जितनी जातियां और उपजातियां थी उसकी पहले सूची बनाई जाएगी और फिर इस सूची के आधार पर लोगों को अपनी जाति चुनने को कहा जाएगा। सूत्रों की माने तो केंद्र की मोदी सरकार ने रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करने का मन बना लिया है। अगर ऐसा होता है तो वर्तमान समय में कई ऐसी जातियां जिन्हें आरक्षण का लाभ मिल रहा है उन्हें आरक्षण सूची से बाहर किया जा सकता है।
संघियों को हमारे एजेंडा पर नचाते रहेंगे" : लालू

वहीं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का कहना है कि जब मैं जनता दल पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करता था तब दिल्ली में हमारी संयुक्त मोर्चा की सरकार ने 1996-97 में कैबिनेट से 2001 की जनगणना में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया था जिस पर बाद में एनडीए की वाजपेयी सरकार ने अमल नहीं किया।
उन्होंने कहा, '2011 की जनगणना में फिर जातिगत गणना के लिए हमने संसद में जोरदार मांग उठाई, मैंने, स्व. मुलायम सिंह जी, स्व. शरद यादव जी ने इस मांग को लेकर कई दिन संसद ठप्प किया और बाद में प्रधानमंत्री स्व. मनमोहन सिंह जी के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराने के आश्वासन के बाद ही संसद चलने दिया. देश में सर्वप्रथम जातिगत सर्वे भी हमारी 17 महीने की महागठबंधन सरकार में बिहार में ही हुआ।
एक्स पोस्ट में लालू ने आगे लिखा, 'जिसे हम समाजवादी जैसे आरक्षण, जातिगणना, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता इत्यादि 30 साल पहले सोचते हैं उसे दूसरे लोग दशकों बाद फॉलो करते हैं. जातिगत जनगणना की मांग करने पर हमें जातिवादी कहने वालों को करारा जवाब मिला. अभी बहुत कुछ बाकी है. हम इन संधियों को हमारे एजेंडा पर नचाते रहेंगे।'
प्राइवेट सेक्टर में भी लागू हो आरक्षण : राहुल गांधी

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का कहना है कि उन्होंने संसद में खड़े होकर कहा कि जाति जनगणना करवा कर रहेंगे और अब ये होने जा रही है. हमने केवल दबाव नहीं बनाया, पूरी योजनाबद्ध तरीके से इसके लिए लड़ाई लड़ी है. इसके साथ ही राहुल गांधी ने जति जनगणना के फैसले को टाइमिंग पर भी सवाल उठाए, जाति जनगणना के फैसले पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गांधी ने कहा, 'संसद में मैंने कहा था कि जाति जनगणना को हम करवा कर छोड़ेंगे. मैंने ये भी कहा था कि 50 फीसदी की जो दीवार है उसको तोड़ेंगे, अब सरकार ने जाति जनगणना कराने का फैसला किया है. हम जाति जनगणना का पूरी तरह समर्थन करेंगे, लेकिन हम चाहते हैं कि इसकी पूरी टाइमलाइन बताई जाए, ये कैसे होगी, कब होगी और तरीका क्या होगा ?'
सरकार के जातिगत गणना के निर्णय पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, 'हम इसका पूरी तरह से समर्थन करते हैं, लेकिन एक समयसीमा चाहते हैं, यह कब तक किया जाएगा, यह पहला कदम है, तेलंगाना जातिगत गणना का द्वामॉडल' है, सरकार अब तक जातिगत गणना का विरोध कर रही थी, लेकिन अचानक इसे करने का फैसला किया, हम इस कदम का स्वागत करते हैं.' राहुल गांधी ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा हटाने की मांग दोहराई. उन्होंने इसके लिए बजट का आवंटन किया जाना चाहिए और तारीख की घोषणा की जानी चाहिए,
राहुल गांधी ने कहा कि हम देश में जातिगत जनगणना के माध्यम से एक नए तरीके का विकास लाना चाहते हैं. चाहे ओबीसी हों, दलित हों या आदिवासी, इनकी देश में कितनी भागीदारी है, यह सिर्फ जातिगत जनगणना से पता चलेगा, लेकिन हमें और आगे जाना है. हमें पता लगाना है कि देश की संस्थाओं और पावर स्टुक्कर में इन लोगों की कितनी भागीदारी है. इसके अलावा, कांग्रेस पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में लिखा था कि आर्टिकल 15 (5) के तहत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू किया जाए और हमारी मांग है कि सरकार इसे तत्काल लागू करे, उन्होंने कहा कि यह हमारा विजन है, इन्होंने इसे अपनाया, इसलिए हम उनका धन्यवाद देते हैं. हमें पूरी टाइमलवन चाहिए कि कब तक जातिगत जनगणना का काम पूरा हो जाएगा. इसके अलावा डेवलपमेंटल विजन भी हमारे सामने रखा जाना चाहिए।
बिहार जाति गणना रिपोर्ट क्या कहती है, जानिए किसकी आबादी कितनी है
लाख जब दो जहाज के बाद बिहार सरकार द्वारा जाति गणना की गई जिसके रिपोर्ट को पिछले साल जारी कर दिया गया. इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक है। पूरे राज्य में पिछड़ा वर्ग-27.12 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग-36.01 फीसदी, अनुसूचित जाति-19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति-1.68 फीसदी, सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी
अगर धर्म को आधार बनाया जाए तो बिहार जाति गणना रिपोर्ट के अनुसार बिहार में हिन्दू-81.99%, मुस्लिम- 17.70%, ईसाई-05%, सिख-01%, बौद्ध-.०४%
किस जाति की कितनी आबादी ?
ब्राह्मण- 3.67%, राजपूत 3.45%, भूमिहार 2.89%, कायस्थ 0.60%, यादव 14.26 %, कुशवाहा-4.27%, कुरमी 2.87%, तेली-2.81%, मुसहर-3.08%, सोनार-0.68%, मल्ल्लाह 2.60%, बढ़ई- 1.4%, कुम्हार 1.4%, पासी-0.9%, धोबी-0.8%, मोची, चमार, रविदास- 5.2%.
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