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शख्शियत

  • Writer: MOBASSHIR AHMAD
    MOBASSHIR AHMAD
  • Apr 15
  • 6 min read
किशनगंज की बेटी शिक्षिका गुड्डी को सलाम, बच्चों को पढ़ाती है इंग्लिश, मिल चुका है राष्ट्रपति सम्मान

रोशन झा


जिस बिहार में आज भी अंग्रेजी भाषा को स्कूली शिक्षा में अनिवार्य नहीं किया गया है, इस राज्य में एक महिला इंग्लिश टीचर को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है. शख्सियत नामक श्रृंखला में हमने आपको पिछली बार किशनगंज के रिटायर्ड शिक्षक, जिन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, स्यामानंद झा के बारे में विस्तार से बताया था। इस अंक में एक नई कहानी लेकर हम फिर से हाजिर हैं। गुड्डी कुमारी मूल रूप से बिहार के किशनगंज की रहने वाली है और साल 2023 में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हो चुकी हैं। देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें सम्मानित किया है. गुट्टी कुमारी कहती है कि चचपन में मुझे शिक्षा प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। यही कारण था कि मैंने स्कूल कॉलेज में ही फैसला ले लिया था कि बड़े होकर लड़कियों के लिए काम करना है ताकि उन्हें पढ़ाई करने के लिए संघर्ष न करना पड़े।


8 मार्च 2025 के दिन बिहार सहित न सिर्फ पूरे देश में बल्कि विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इस साल भी गुड्डी कुमारी को शिक्षा जक्त में उत्कृष्ट योगदान देने ने के के लिए लिए गागर्मी गागर्मी नारी शक्ति अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उनको यह सम्मान बिहार के प्रतिष्ठित आईपीएस अधिकारी विकास वैभव के हाथों दिया गया है।

GUDDI KUMARI WITH PRESIDENT OF INDIA                 (File Photo)
GUDDI KUMARI WITH PRESIDENT OF INDIA (File Photo)

जब हमने उनसे पूछा कि आपको राष्ट्रपति पुरस्कार या जो जो पुरस्कार मिले हैं, उसके पीछे का कारण क्या है तो गुड्डी कुमारी सहज भाव से कहती हैं कि बतौर शिक्षक मैंने नौकरी ज्वाइन करने के पहले दिन से ही बच्चों को पढ़ाने में अन्य शिक्षकों की तुलना में अधिक मेहनत की है। मैं जब इंग्लिश टीचर बनकर स्कूल में योगदान करने पहुंची तो मेरे लिए यह एक चुनौती पूर्ण काम था। बिहार में आज भी ना तो बच्चे और ना बच्चों के अभिभावक इंग्लिश विषय को गंभीरता से लेवे हैं। इसके पीछे कहीं ना कहीं हमारी शिक्षा प्रणाली भी दोषी है। सबको पता है कि जीवन में आगे बढ़ाने के लिए अंग्रेजी भाषा की क्या भूमिका है। बावजूद इसके बिहार सरकार ने अब तक इस भाषा को स्कूली शिक्षा में अनिवार्य रूप से लागू नहीं किया है। बच्चों को क्लास वन से अंग्रेजी सब्जेक्ट नहीं पढ़ाया जाता है।


मैट्रिक परीक्षा के दौरान किसी बच्चे से बात करेंगे तो अधिकांश बच्चों का कहना होता है अंग्रेजी पढ़ कर क्या होगा। अगर आप 100 नंबर ले ओगे तो भी कुछ नहीं होना है और अगर आप फेल कर. जाओगे तो भी कुछ नहीं होना है. क्योंकि यह बिहार में अनिवार्य संब्जेक्ट नहीं है।


गुड्डी कुमारी को बीच में टोकते हुए हम सवाल पूछते हैं कि बिहार सरकार का मानना है की अंग्रेजी विषय को अनिवार्य कर दिया जाएगा तो बिहार सरकार द्वारा आयोजित मैट्रिक परीक्षा में 50% से अधिक बच्चे फेल हो जाएंगे. इस बात का जवाब देते हुए गुड्डी कुमारी कहती है, तो क्या अन्य सब्जेक्ट पढ़े बिना बच्चे पास हो जाते हैं। मैथ्स, साइंस, हिस्ट्री, सिविक्स जियोग्राफी सहित अन्य विषयों को पास करने के लिए जब बच्चे दिन-रात मेहनत कर सकते हैं तो इंग्लिश पढ़ने के लिए मेहनत क्यों नहीं करेंगे। आप बच्चों को क्लास वन से इंग्लिश पढ़ना स्टार्ट कीजिए। क्लास 10 तक जाते-जाते बच्चे अंग्रेजी भाषा को लेकर सहज हो जाएंगे जितने अन्य अर्थात सब्जेक्ट को लेकर हैं.



तो क्या आप मानती हैं की इंग्लिश को हर हाल में अनिवार्य कर दिया जाना चाहिएं। गुड्डी कुमारी के चेहरे पर कॉन्फिडेंस साफ दिखता है। वह कहती है कि उन्होंने बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के पूर्व अपर सचिव एस सिद्धार्थ से मुलाकात कर इस बाबत अपना एक प्रस्ताव रखा है। अब तक कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है लेकिन उन्हें भरोसा है कि एक न एक दिन बिहार में अंग्रेजी भाषा की महत्व को जरूर समझा जाएगा और इसे स्कूल में अनिवार्य रूप से लागू किया जाएगा।


आप जब क्लास रूम में बच्चों को इंग्लिश पढ़ाने जाती हैं तो क्या बच्चों की संख्या या बच्चों का रवैया कैसा होता है। गुड्डी कुमारी कहती है कि मेरे स्कूल के बच्चे जितने अन्य सब्जेक्ट से लगाव रखते हैं उतना ही इंग्लिश सब्जेक्ट से भी रखते हैं। मैंने तो एक इंग्लिश क्लब भी बना रखा है। छुट्टी के दिनों में बच्चों को इंग्लिश सब्जेक्ट को लेकर अलग से पढ़ाया जाता है। शुरूआती दौर में थोड़ी परेशानी हुई लेकिन हमने बच्चों के परिजनों से मिलकर पहले बात किया और उन्हें समझाया-बुझाया भी। अब किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है।


अब तो ऐसा होता है कि मान लीजिए किसी कारणवश छुट्टी के दिनों में मैं क्लास लेने नहीं जा पाई तो गार्जियन के तरफ से फोन कॉल आता है और पूछा जाता है कि मैडम आज आप क्यों नहीं आई। कहीं आपकी तबीयत तो खराब नहीं हो गई है। स्कूली शिक्षा के अंलावे में बच्चों को अन्य जरूरी बातों के लिए भी जागरूक बनाती हूं। आप जानते ही हैं कि एक तो बिहार पिछड़ा राज्य है उसमें भी हमारा किशनगंज काफी पीछे है। आज भी यहां की महिलाएं और लड़कियां माहवारी पर बात करने से डरती हैं और लजाती हैं। मैंने छात्रों की मदद से नवाचार, महिला सशक्तिकरण, सेल्फ डिफेंस, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काफी काम किया है। अभी और बहुत कुछ करना बाकी है। थोड़ी सी सफलता मिलने के कारण हमें निश्चित नहीं होना है। इसी बीच गुड्डी कुमारी कहती है कि में पहले नियोजित शिक्षक थी लेकिन अब बीपीएससी परीक्षा पास करने के बाद फिर से उसी स्कूल में बतौर इंग्लिश टीचर काम कर रही हूं।


जब हमने उनसे पूछा कि आप इतना कुछ कर रही हैं तो आपके पति, परिवार के लोग और बच्चों का रिएक्शन क्या होता है। क्या वह कभी नहीं कहते कि अन्य लोग स्कूल जाते हैं और पढ़ने के बाद आराम से व्यक्तिगत जीवन जीते हैं, तुम्हें इतना कुछ करने की क्या जरूरत है। गुड्डी कुमारी हंसते हुए कहती है कि आपको जानकर आश्वर्य लगेगा कि मुझे आगे बढ़ाने में मेरे परिवार वालों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन लोगों के बिना लड़‌कियों के लिए कुछ भी करना असंभव था। सबसे अधिक सपोर्ट करने के लिए कह अपने पति को धन्यवाद देती हैं।



राष्ट्रपति पुरस्कार के बारे में गुड्डी कुमारी कहती है कि मुझे जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्ट काम *करने के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन देश की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों सम्मानित होना एक अलग ही अनुभव और सम्मान है। राष्ट्रपति सम्मान सिर्फ मेरा नहीं बल्कि किशनगंज की जनता, किशनगंज के सभी सम्मानित शिक्षक और छात्रगण का सम्मान है। इसलिए इस पुरस्कार को मैं उन सभी लोगों को समर्पित करती हूं।


अपने बचपन को याद करते हुए मुझे कुमारी कहती है कि क्लास 8 तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई है। में पढ़ने में काफी तेज थी, लेकिन यह वह समय था जब बिहार में लड़कियों को पढ़ने के लिए



घर से बाहर दूर नहीं भेजा जाता था। उस समय हमारे घर के आसपास प्राइवेट स्कूल ना के बराबर हुआ करता था। इसलिए मेरा एडमिशन गर्ल्स हाई स्कूल में कर दिया गया। साल 1990 में जब में इंटर में थी तब माता-पिता ने शादी करने का फैसला ले लिया। उस समय मैं मात्र 17 साल की थी। आप कह सकते हैं कि बाल विवाह हुआ था। विरोध करने का तो सवाल ही नहीं उठता। ना तो उतनी समझ थी और ना हिम्मत। परिवार वालों ने काफी जांच पड़ताल के बाद लड़के को चुना था। यही कारण था कि ससुराल वाले काफी अच्छे थे। शिक्षित परिवार होने के कारण सासू मां ने पढ़ाई रोकने के लिए कभी दबाव नहीं बनाया। उनकी बस एक शर्त थी, उनका कहना था कि पारिवारिक दायित्व के साथ-साथ शिक्षा का दायित्व अगर उठा सकती हो तो पढ़ाई करने में कोई एतराज नहीं है। संयुक्त परिवार होने के कारण काफी बड़ा परिवार था, लेकिन मैंने कॉलेज के साथ-साथ परिवार वालों को को भी बराबर का समय दिया।



जिस कारण उन्हें शिकायत का मौका कभी ना मिल पाया। सरकारी स्कूल में नौकरी करने से पहले गुड्डी कुमारी ने सरस्वती विद्या मंदिर नामकं स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम किया. इसके लिए उन्हें इंटरव्यू देना पड़ा। इसके बाद उनका सिलेक्शन हुआ। इस दौरान उन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। घर में विवाह के 14 साल बाद बेटी ने जन्म लिया। इससे पहले एक या दो बच्चे खराब हो गए। अबॉर्शन भी करवाना पड़ा. लेकिन मुड्डी कुमारी कहती है जो होता है अच्छे के लिए होता है। परिवार वालों ने साथ दिया और मैं पढ़ाई करती चली गई। बेटी के जन्म के बाद उन्होंने सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल को छोड़ दिया और घर के बगल में स्थित एक प्राइवेक स्कूल को ज्वाइन कर लिया। इस स्कूल में उनकी बेटी भी पढ़ती थी।


इसी दौरान साल 2005 में नियोजित शिक्षकों की बहाली होती है और मैं बतौर सरकारी शिक्षक स्कूल में योगदान दिया। उस समय मेरे पास बीएड की डिग्री नहीं थी। मैंने डिस्टेंस से बीएड की परीक्षा पास की है। इसी दौरान बिहार सरकार द्वारा टीईट और एसटीईटी परीक्षा का आयोजन किया जाता है। मैं दोनों में सेलेक्ट हो जाती हूं। इसके बाद में सिंधिया प्लस टू स्कूल में बतौर इंग्लिश टीचर नियुक्त होती हूं।


छात्र जीवन में लड़‌कियों की शिक्षा को लेकर जो संकल्प लिया था वह अब भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा. अभी बहुत कुछ करना बाकी है. तब तक काम करना है जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए।



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