रघुवर : राज्यपाल की गरिमा छोर बने संगठन के दास
- MOBASSHIR AHMAD
- Feb 15
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पूर्व मुख्यमंत्री के झारखंड की राजनीति में दुबारा लौटने से राजनीति में एक नयी गर्माहट
• डॉ.पी.के. मिश्र
झारखंड की राजनीति में एक गर्माहट महसूस की जा रही है। रघुवर भाजपा में फिर लौट आए हैं। उन्होंने ओडिशा के राज्यपाल के पद को छोड़ दिया। भाजपा की नए सिरे से सदस्यता ग्रहण कर ली। मंदिरों का दौरा शुरू कर दिया। जगह जगह उनका स्वागत भी होने लगा। लोगों को लग रहा है कि भाजपा में एक नयी उम्मीद का संचार हो रहा है। भाजपा में दूसरी पारी खेलने उतरे रघुवर दास ने बीजेपी में अपनी वापसी को एक गर्वपूर्ण निर्णय बताया। उन्होंन कहा, राज्यपाल होना गरिमा की बात होती है, लेकिन संगठन का दास होना गर्व की बात होती है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रहे रघुवर दास ने रांची में समारोहपूर्वक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्यता दुबारा ग्रहण की। उनके इस कदम से भाजपा खेमे में उत्साह दिख रहा है। रांची स्थित बीजेपी दफ्तर में हुए इस कार्यक्रम में उन्होंने न केवल अपनी सदस्यता ली, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदेश भी दिया कि के पार्टी के संगठन के प्रति पूरी तरह समर्पित है। रघुबर ने अपने बयान में पार्टी को प्राथमिकता दी कहा कि इस पार्टी में अदना कार्यकर्ता आगे बढ़ सकता है। ओडिशा के राज्यपाल के पद पर रहते हुए, रघुवर दास ने काफी सक्रियता से कार्य किया, लेकिन अब उन्होंने उस पद से इस्तीफा देकर अपनी पुरानी भूमिका यानी पार्टी कार्यकर्ता के रूप में लौटने का निर्णय लिया है।
ओबीसी के माध्यम से ऑपरेशन लोटस का बीजारोपण
रघुवर की वापसी को राजनीतिक पंडित और विश्लेषक भाजापा के केंद्रीय नृत्वत्व के ऑपरेशन लोटस का बीजारोपण मान रहा है। पार्टी को कहीं न कहीं इसका एहसास हो गया है कि सिर्फ आदिवासी बोट सता तक भाजपा को नहीं पहुंचा सकते हैं। ऐसे में ओबीसी नेता खेवमनहार बन सकता है। यही कारण रघुवर को झारखंड में उत्पन्न राजनीतिक परिस्थिति में उन्हें फिर से इंट्री दी गयी है।
चेहरा बने रहेंगे बाबूलाल
भाजपा एकाएक बाबूलाल को उनकी जिम्मेवारी से हटाएगी ऐसा अभी नहीं लगता है। पर पार्टी को इसका एहसास है कि सिर्फ बाबूलाल से काम नाहीं चालने वाला है। विदित हो कि बाबूलाल मरांडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं उनके नेतृत्व में लड़ा गया पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहतर नहीं रहा। इसके पीछे कई राजनीतिक कारणं थे पर एक जो बड़ा कारण था वह भाजपा संगठन में कसावट की कमी थी। पूरे चुनाव में भाजपा बिखरी - बिखरी दिखी। कई ध्रुर्वी में लोग इधर-उधर थे। चाहे वह प्रदेश स्तर का मामला हो या फिर ज़िला स्तर का। नतीजा भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। केंद्रीय संगठन को भाजपा की इस हार का क्या कारण रहा यह भले अभी पता नहीं हो पर एक बात की कमी जो पार्टी क लोग महसूस कर रहे हैं वह संगठन में एक बड़े खेवनहार की कमी जरूर है। ऐसे में रघुवर का पर्दापर्ण निश्चित रूप से भाजपा को एक नई उम्मीद जगा रहा है। यही कारण है कि ओडिशा से महामहिम का पद त्यागकर रघुवर फिर से भाजपा में सक्रिय दिख रहे हैं। बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद रघुवर दास ने यह भी स्पष्ट किया कि वे पार्टी के लिए जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, उसे पूरे समर्पण और मेहनत के साथ निभाएंगे। उन्होंने कार्यकताओं से अपील की कि वे पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों के लिए अपनी ऊर्जा को लगाएं और पार्टी को फिर से झारखंड में सत्ता में लाने के लिए एकजुट हों। मौके पर रघुवर दास की बीजेपी में वापसी के बाद-पार्टी के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता उनका स्वागत करने के लिए जुटे थे। रांची स्थित बीजेपी दफ्तर में आयोजित कार्यक्रम में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और अन्य नेताओं ने उन्हें बधाई दी। ऐसे में रघुवर का भी मनोबल बढ़ा है। रघुवर को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में वह फिर सीएम तक की कुर्सी तक पहुंच सकते हैं। वैसे रघुवर के मुख्यमंत्री के कार्यकाल को देखा जाए तो एक बात जरूर डंके की चोट पर कही जा सकती है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में भाजपा की साख बढ़ाई थी। हालांकि दुबारा उन्हें कुर्सी नहीं मिली। इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण था वह रघुवर का कठोर व्यवहार। वह लोगों से ऐसे कठोर रूप में पेश आने लगे थे कि कई लोगों की दिल में बात चुभने लगी थी, इसका रघुवर के विरोधियों ने फायदा उठाया। नतीजा अगले चुनाव में रघुवर को अपनी सत्ता से हाथ गंवाना पड़ा। इसके बाद झामुमो गठबंधन ऐसा हावी हुआ कि पिछले दो
चुनाव में भाजपा को सत्ता से दूर रखने को बाध्य होना पड़ा। करीब 14 महीने तक राज्य की राजनीति से दूर रखने के बाद केंद्र ने रघुवर को नए सिरे से फिर से भाजपा में इंट्री करवाई है। इसके पीछे ऑपरेशन लोटस को कहीं न कहीं साकार करने की मंशा दिख रही है।
रघुवर दास का यह कदम उनके लिए व्यक्तिगत और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। उनके इस निर्णय से यह साफ हो गया कि वह केवल सत्ता में रहने के लिए राजनीति में नहीं हैं, बल्कि पार्टी और देश के प्रति अपने दायित्वों को निभाने के लिए उन्होंने अपने पुराने रास्ते को फिर से अपनाया। यह न केवल उनके व्यक्तित्व को दशार्ता है, बल्कि बीजेपी में उनके योगदान को भी महत्वपूर्ण बनाता है।
यूनियन नेता से सीएम और महामहिम तक फिर नए सिरे से शुरूआत
रघुवर दास ने यूनियन नेता से मुख्यमंत्री और फिर राज्यपाल तक का सफर तय किया। उन्होंने राज्य में छठे मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवा दी। वह पहले गैर आदिवासी सीएम रहे और अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 28 दिसंबर 2014 से 29 दिसंबर 2019 तक झारखंड में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। उनके कार्यकाल में कई काम हुए। 2018 में दारोगाओं की नियुक्ति हुई। इसमें किसी तरह का आरोप प्रत्यारोप नहीं सामने आया। रघुवर दास का कार्यकाल राज्य के विकास, औद्योगिकीकरण और सामाजिक सुधारों के लिए जाना जाता है। उनके नेतृत्व में झारखंड ने ने कई विकासात्मक कार्यों को देखा, जिनमें बुनियादी ढांचे के विकास, बिजली की आपूर्ति और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में कई योजनाएं शामिल थी।
उनकी राजनीति का एक अहम पहलू यह था कि उन्होंने पार्टी को मजबूत करने और कार्यकताओं के बीच एकजुटता बनाए रखने में विशेष ध्यान दिया। उनकी संगठनात्मक क्षमताओं और मेहनत ने बीजेपी को झारखंड में एक मजबूत राजनीतिक ताकत बना दिया था। हालांकि उनके कार्यकाल के दौरान कई आलोचनाएं भी उठी थीं, खासकर आदिवासी समुदाय के प्रति उनकी नीतियों को लेकर, लेकिन उनके कार्यों का एक बड़ा हिस्सा राज्य के विकास और पार्टी की सफलता के रूप में देखा गया। हालांकि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने रघुवर को हमेशा सपोर्ट किया। चुनाव हारने के बाद भी वह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। बाद में उन्हें झारखंड की राजनीति से कुछ दिनों के लिए हटाकर राज्यपाल बनाए गए, लेकिन फिर अब, बीजेपी में उनकी वापसी से यह स्पष्ट हो गया कि वह राष्ट्रीय राजनीति के बजाय राज्य स्तर पर पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम करना चाहते हैं।
जमशेदपुर में भी रघुवर के लिए अब मुस्किल नहीं है कि क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्री रहे सरयू राव जदयू में चले गए हैं। ऐसे में भाजपा में उनके लिए रोड़े खड़े करने वाले वैसे लोग नहीं दिख रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में रघुवर को एक बेहतर मौका मिलने की उम्मीद दिख रही है।
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