माइक्रोप्लास्टिक बन रहा सेहत के लिए खतरा
- MOBASSHIR AHMAD
- Apr 16
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माइक्रो प्लास्टिक हमारे जीवन के लिए बढ़ा खतरा बनता जा रहा है। हाल ही में वैज्ञानिकों को पठा चला है कि प्लास्टिक के इन महीन कणों के संपर्क में आने से बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति कहीं अधिक प्रतिरोधी हो सकते हैं। दरअसल प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर जब छोटे कणों में बदल जाते हैं तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं। प्लास्टिक के एक माइक्रोमीटर से पांच मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। प्लास्टिक के यह महीन कण आज धरती पर करीब, करीब हर जगह मौजूद हैं। अंटार्कटिका की बर्फ से महासागरों की अथाह गहराइयों में भी इनकी मौजूदगी पाई गई है। यह कण बादलोंए पहाड़ोंए मिट्टी यहां तक की जिस हवा में में भी मौजूद हैं। हमारा खाना. पानी भी इनसे अनछुआ नहीं है। माइक्रोप्लास्टिक मानव रक्त, फेफड़ों, दिमाग सहित अन्य महत्वपूर्ण अंगों तक में अपनी पैठ बना चुके हैं।
क्या है रोगाणुरोधी प्रतिरोध और माइक्रोप्लास्टिक के बीच संबंध
बैक्टीरिया कई कारणों से प्रतिरोध विकसित करते हैंए जिसमें एंटीबायोटिक दवाओं का बढ़ता दुरुपयोग और बेतहाशा होता उपयोग शामिल है। इसके साथ ही प्रतिरोध को बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारक उनका माइक्रोएनवायरनमेंट है, जहां वे बढ़ते अपनी प्रतिकृति बनाते और फैलते हैं। बोस्टन विश्वविद्यालय में शोधकवाओं ने परीक्षण किया है कि नियंत्रित वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने पर एक सामान्य बैक्टीरिया ई कोली कैसे प्रतिक्रिया करता है। विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध के इलाज में 2030 तक और 204 करोड़ लोग गरीब बन सकते हैं।

दुनिया में रोगाणुरोधी प्रतिरोधी एक गंभीर समस्या बन चुका है जो हर साल करीब 49.5 लाख जानें ले रहा है। यदि इससे निपटा न गया तो और 2.4 करोड़ लोग बेहद गरीबी की मार झेलने को मजबूर होंगे। इतना ही नहीं आशंका है कि अगले 25 वर्षों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर दोगुणा हो जाएगा। मतलब की 2050 तक यह एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत की वजह बन सकता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट सीएसईद्ध ने भी अपनी रिपोर्ट ष्वन हेल्थ एक्शन टू प्रिवेंट एंड कंटेन एएमआर इन इंडियन स्टेट्स एंड यूनियन टेरीटोरिस में एएमआर को एक महामारी बताया है जो इंसानों और मवेशियों के स्वास्थ्य के साथ. साथ खाद्य सुरक्षा और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है।
मानव के मस्तिष्क में तेजी से बढ़ रहा माइक्रोप्लास्टिक
बोस्टन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकताओं को एक चौंकाने वाले अध्ययन में पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने वाले बैक्टीरिया कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो गए हैं। इन दवाओं का उपयोग आमतौर पर संक्रमण के इलाज में किया जाता है।

शोधकताओं के मुताबिक यह शरणार्थी शिविरों जैसे भीड़भाड़ और आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से चिंता का विषय है। इन क्षेत्रों में अक्सर प्लास्टिक कचरे के ढेर लगे होते हैं और संक्रमण आसानी से फैलता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एप्लाइड एंड एनवायरनमेंटल माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। बोस्टन विश्वविद्यालय में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता मुहम्मद जमान ने इस चिंता को उजागर करते हुए कहा 'मारे चारों ओर हर जगह माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैए खास तौर पर वे स्थान जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और जहां साफ सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैए वहां इनकी मौजूदगी कहीं ज्यादा है। इससे वंचित समुदायों के स्वास्थ्य पर खतरा बढ़ सकता है।'
किस तरह माइक्रोप्लाटिक करता है काम
प्लास्टिक बैक्टीरिया को चिपकने और पनपने के लिए एक सतह देता है। सतह पर चिपकने के बादए बैक्टीरिया एक बायोफिल्प बनाते हैं यह चिपचिपा पदार्थ एक ढाल की तरह काम करता है और बैक्टीरिया को आक्रमणकारियों से बचाता है। भले ही बैक्टीरिया किसी भी सतह पर आयोफिल्म विकसित कर सकते हैं लेकिन माइक्रोप्लास्टिक उन्हें और भी मजबूत बनाता है। रिसर्च से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक ने बैक्टीरिया की बायोफिल्म को इतना अधिक सुपरचार्ज कर दिया कि जब एंटीबायोटिक्स इसके संपर्क में आए तो इस ढाल को नहीं भेद पाए ।

प्लास्टिक की मौजूदगी बैक्टीरिया को चिपकने के लिए सिर्फ सतह प्रदान करने से कहीं ज्यादा काम कर रही हैए वास्तव में यह प्रतिरोधी जीवों के विकास में मदद कर रहा है। उनके अनुसार शरणार्थियों और विस्थापित लोगों को भीड़ भाड़ वाले शिविरों और सीमित स्वास्थ्य सेवा के कारण पहले ही दवा प्रतिरोधी संक्रमणों का खतरा अधिक रहता है। जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स लेटर्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्सए बैक्टीरिया में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को 30 गुना तक बढ़ा सकते हैं। अनुमान है कि चार लाख लोगों के वेस्ट वाटर को साफ करने की क्षमता वाला एक प्लांट हर दिन माइक्रोप्लास्टिक के करीब 20 लाख कण पर्यावरण में मुक्त कर सकता है जोकि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बढ़ा खतरा बन सकते हैं।
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