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कर्तव्य पथ का अडिग राही एक आईपीएस

  • Writer: MOBASSHIR AHMAD
    MOBASSHIR AHMAD
  • Feb 10
  • 3 min read
MD AZHAR RAHMANI - EDITOR - SEEMANCHAL KI AWAZ
MD AZHAR RAHMANI - EDITOR - SEEMANCHAL KI AWAZ

दुनिया में कुछ लोग अपने कार्यों से समाज को इतना कुछ दे जाते हैं जो आने वाली पीढियों के लिए एक मिसाल बन जाती है। ऐसे ही बिहार के एक आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल थे जिन्होंने निर्भीकता से अपनी ड्यूटी को तो अंजाम दिया ही साथ ही धार्मिक कार्यों से समाज में अपनी अमिट छाप भी छोड़ी। पद पर रहते हुए बिहार जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राज्य में वह किसी के सामने झुके नहीं। उनके कार्यकाल में राज्य में अनेक चर्चित कांड हुए जिनके तार राजनेताओं से भी जुड़े। बावजूद इसके अपनी कार्य कुशलता से उन्होंने सभी मामलों में पूरी सच्चाई और ईमानदारी का परिचय दिया। उनकी कार्यशैली कुछ ऐसी थी जो सभी धर्म के लोगों को खासी पसंद थी। उनका व्यक्तित्व इतना विराट था जिसके सभी कायल थे।


पुलिस विभाग में इतना प्रतिष्ठित ओहदा होने के बाद एक निश्चित समय तक उन्होंने नौकरी की। फिर अध्यात्म की ऐसी राह चुनी जिससे पूरे राज्य में उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत कोठिया नामक छोटे से गांव में जन्में किशोर कुणाल शुरू से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। प्रारंभिक पढ़ाई में अव्वल आने वाले कुणाल के पिता हालांकि साधारण परिवार से थे लेकिन उनकी इच्छा बेटे को सरकारी अधिकारी बनते देखने की थी। अपने पिता की इस इच्छा को अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने ऐसा पूरा किया कि आईपीएस अधिकारी ही बन गए। 1972 के दौर में आईपीएस बनना समाज में एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था। इसके बाद वह पटना के एसएसपी भी रहे। इस दौरान उन्होंने बाँथी हत्याकांड में जिस ईमानदारी से अपना परिचय दिया और इस कांड को बखूबी सुलझाया, इससे उन्हें बड़ी प्रसिद्धि मिली।


करीब 29 साल नौकरी करते हुए उन्होंने लालू राबड़ी राज देखा तो नीतीश कुमार के सुशासन को भी काफी परखा। सभी सरकारों के साथ उन्होंने काँम किया लेकिन इस दौरान अपने कर्तव्यों से कभी समझौता नहीं किया। उनको करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि वह हमेशा सच्चाई के पक्षधर थे। एसपी और एसएसपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी उन्होंने कभी किसी के दवाव में काम नहीं किया।


इस परिपेक्ष में यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि एक आईपीएस अधिकारी का यों एकाएक अध्यात्म की ओर रुझान हो जाना काफी विस्मयकारी हो सकता है लेकिन यह संभव हुआ। अक्सर देखा जाता है कि इस रैंक के ज्यादातर अधिकारी उच्च पदीं पर आगे बढ़ते हुए ही रिटायर होना ज्यादा पसंद करते हैं।


किशोर कुमार कुणाल की सोच शायद इससे परे थी तभी उन्होंने आध्यात्मिकता की राह चुनी। अपनी सेवा के बीच में ही उन्होंने पद से त्यागपत्र देकर आध्यात्मिक कार्यों में रुचि दिखानी शुरू कर दी। इसी के चलते उन्हें बिहार चार्मिक व्यास बोर्ड का अध्यक्ष भी बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया। उनके प्रमुख धार्मिक कार्यों में पटना रेलवे स्टेशन का महावीर मंदिर और सीता जी की जन्मस्थली सीतामढ़ी की एक अलग पहचान दिलाना शामिल है। पटना स्टेशन का महावीर मंदिर इतना प्रसिद्ध है जिसमें करोड़ों रुपए चढ़ावे के तौर पर एकत्र होते हैं। इतनी बड़ी धनराशि का उन्हनि सदुपयोग कर कई अस्पतालों का निर्माण कराया और जिनमें हजारों गरीब लीग अपना इलाज करते हैं। इसके अतिरिक्त सीतामढ़ी में सीता रसोई की शुरुआत की गयी जिसमें प्रतिदिन हजारों लोगों के लिए भांडारे का आयोजन किया जाता है।


आज जब किशोर कुमार कुणाल हमारे बीच नहीं रहे तो उनके द्वारा कराए गए धार्मिक कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा। उनका जीवन एक ऐसी प्रेरणा देता है जो अन्यत्र नहीं मिलती। अपने जीवन काल में चंपारण में दुनिया के साबरी आहे जानकी मंदिर' का निर्माण कराना उनका सपना था। उनकी यही इच्छा अधूरी ही रह गई।

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