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गरीबों के मसीहा और भगवान हनुमान के भक्त थे आईपीएस आचार्य किशोर कुणाल

  • Writer: MOBASSHIR AHMAD
    MOBASSHIR AHMAD
  • Feb 10
  • 8 min read
आईपीएस आचार्य किशोर कुणाल
आईपीएस आचार्य किशोर कुणाल
  • प्रिया कुमारी


रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि 'हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता'। आसान भाषा में इसका अर्थ स्पष्ट किया जाए तो हरि अनंत हैं और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते। इसी तरह आज इस आलेख में हम जिस व्यक्ति के बारे में हम बात करने जा रहे हैं वह अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी कथा अनंत है। उनका व्यक्तित्व काफी विशाल है। वह लालू-राबड़ी के जंगलराज में रियल सिंघम बनकर उभरे तो नीतीशजी के सुशासन में हिंदु हृदय सम्राट। वह जितने हिंदु समाज के लोगों को प्रिय हैं उतने ही मुसलमान समाज के लोगों के लिए अपने हैं। उन्होंने पटना स्टेशन स्थित महावीर मंदिर को विश्व भर में एक नई पहचान दिलाई तो उस मंदिर से होने वाली लाखों-अरबों रुपए की आमदनी से गरीब लोगों के लिए कई अस्पतालों का निमार्ण किया। जिन्होंने, अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निमार्ण हो इसको लेकर संघर्ष किया तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद दस करोड़ रुपए का चंदा देकर इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उनका ही प्रयास था कि माता सीता की जन्मस्थली सीतामढ़ी स्थित पुनौराधाम में मां जानकी के भक्तों के लिए प्रतिदिन सीता रसोई नामक भंडारे का आयोजन किया जाता था तो अयोध्या में रामः मंदिर उद्घाटन से पूर्व ही राम भक्तों के लिए राम रसोई का आयोजन किया जाने लगा। पटना के महावीर मंदिर पर तो हर रोज गरीबों को दी टाइम अच्छा भोजन मिल सके इसके लिए दरिद्रनारायण नाम से भोजन की शुरूआत की गई। इसमें जो चाहे बैठकर मुफ्त खाना खा सकते हैं।-

अब तक तो आपको पता चल ही गया होगा कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं। अगर अब भी आपको पता नहीं चल पाया है तो चलिए हम इस संस्पेंश को खत्म करते हैं। इस आलेख में हम जिस महापुरुष के बारे में बात कर रहे हैं उनका नाम आचार्य किशोर कुणाल है। वहीं पटना के फेमस महावीर मंदिर वाले आचार्य किशोर कुणाल। जो बिहार न्यास बोर्ड के अध्यक्ष थे। जो कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। जो बिहार के चंपारण में दुनिया के सबसे बड़े जानकी मंदिर का निर्माण करवा रहे थे। लेकिन थोड़ रुकिए इस सबसे इतर उनकी एक अलग पहचान है, वह है कि वे एक आईपीएस अधिकारी थे।

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किशोर कुणाल की कर्मस्थली भले बिहार की राजधानी पटना कहा जा सकता है लेकिन वह मूल रूप से बिहार की मुजफ्फरपुर जिला के रहने वाले थे। बरूराज थाना अंतर्गत एक गांव है जिसका नाम है कोठिया। 10 अगस्त 1950 को. समचंद्र प्रसाद शाही के घर में एक लड़के का जन्म हुआ। माता-पिता ने नाम रखा कुणाल। आगे चलकर स्कूल पढ़ाई के दौरान उसे बच्चों ने अपना नाम रख लिया कुणाल किशोर। यही लड़का जब आईपीएस अधिकारी हुआ और विश्व विख्यातं हुआ तो लोगों ने उन्हें आचार्य कुणाल किशोर के नाम से जाना। गांव के लोग उन्हें प्यार से लाल बाबू कहकर बुलाया करते थी। वे बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे। उनके निधन की खबर सुनकर गांव में सन्नाटा पसरा है। लोग मातम मना रहे हैं। सबकी' आंखों में आंसू है। जिसे देखो वही आचार्य किशोर कुणाल को याद कर उनका गुणगान कर रहे हैं। गांव के लोगों ने बताया कि उनके पैतृक आवास पर लोगों का रो-रो कर बुरा हाल है।


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गांव के बहादुर शाही ने बताया कि वे दोनों एक ही परिवार से आते हैं। एक तरह से कहा जाए तो दियाद हैं। रिश्ते में वह किशोर कुणाल के दादा लगेंगे लेकिन वह मुझे मात्र तीन साल छोटे थे इस कारण हम दोनों में काफी बनती थी एक तरह से कहा जा सकता है कि हम दोस्त थे। हम एक साथ खेलते थे और एक साथ पोखर में नहाने भी जाया करते थे। उन्हें पानी से काफी डर लगता था। उनकी आरंभिक पढ़ाई गांव में शुरू हुई थी। उसे समय गांव में मात्र एलपी स्कूल हुआ करता था। जिसमें सिर्फ कक्षा चार तक की पढ़ाई होती थी। आगे की पढ़ाई करने के लिए लोगों को को मध्य विद्यालय बरूराज जाना पड़ता था। साल 1965 में उन्होंने बरूराज हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसे दिन पूरे गांव में जश्त मना था क्योंकि रिजल्ट फर्स्ट डिवीजन आयक था।


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आगे की पढ़ाई के लिए उनका नामांकन मुजफ्फरपुर के प्रसिद्ध लंगह सिंह कॉलेज अर्थात एनएम कॉलेज में करवाया गया और इसके बाद बी.ए की पढ़ाई उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से की। पिता उत्तर प्रदेश के देवरिया में स्थित चीनी मिल में सुपरवाइजर की नौकरी करते थी और उनकी इच्छा थी कि बेटा पर लिखकर अफसर बने। यही कारण था कि बेटे ने यूपीएससी परीक्षा देने का फैसला लिया और सफल हुए। बतौर आईपीएस उनका सिलेक्शन हो गया। उनके बारे में एक रोचक घटना बताते हुए ग्रामीणों ने कहा कि सरकारी नौकरी होते ही लड़की वालों का लाइन लग गयी। बहुत जल्द उनकी शादी करवा दी गई गांव में पोखर किनारे एक झोपड़ी नुमा मंदिर हुआ करता था। प्रणाम करने के दौरान उनकी दादी को चोट लग गई और खून बहने लगा। फिर क्या था दादी ने मन्नत मांगते हुए कहा कि पोते की पहली सैलरी से इस मंदिर का भव्य निर्माण किया जाएगा। वैसा ही हुआ पहली सैलरी से किशोर कुणाल ने इस भव्य मंदिर निर्माण करवाया।



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1972 में बने आईपीएस, गुजरात के आणंद जिले में हुई पहली पोस्टिंग

साल 1972 में वह सिविल सेवा परीक्षा पास करके गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी बन गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर एसपी गुजरात के आणंद जिले में हुई। आईपीएस किशोर कुणाल साल 1983 में पटना के भी एसएसपी बनाए गए। उन्होंने बतौर पुलिस अधिकारी कई पदों पर सेवाएं दी। इसके बाद साल 2001 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर आध्यात्म की राह पकड़ ली। फिर वह बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए।




बॉबी और आचार्य किशोर कुणाल की फाइल तस्वीर 
बॉबी और आचार्य किशोर कुणाल की फाइल तस्वीर 
बॉबी हत्याकांड जांच मामले से रातों-रात हुए फेमस, मुख्यमंत्री की पैरवी मानने से किया इनकार

साल 1983, किशोर कुणाल एसपी बनकर पटना आये थे। इसी बीच बिहार विधानसभा में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी की मौत होती है। उसका वास्तविक नाम श्वेतनिशा था, लेकिन लोग उसे बॉबी नाम से जाना करते थे। उसकी पहुंच बिहार के विधायक सांसदों से लेकर बड़े-बड़े राजनेताओं के बीच भी हुआ करता था। क्या नेता क्या ठेकेदार और क्या अवसर सब की सब उसकी सुंदरता के दीवाने थे। अगर गॉसिप पर विश्वास करें तो बॉबी के बारे में बहुत सारी कहानियां आज भी सुनने को मिल जाती है। अचानक एक दिन खबर, आती है कि बाँबी नहीं रही उसका मौत हो गयी। एक तरह से कहा जाए तो बॉबी की हत्या कर दी गई थी। आनंद फानन में डेड बॉडी को दफना दिया गया था। तब इस मामले में आईपीएस किशोर कुणाल की एंट्री होती है और मामले की जांच शुरू की जाती है। सबसे पहले लाश को निकालकर दोबारा से पोस्टमार्टम किया जाता है। इस हत्याकांड को याद करते हुए बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि पत्रकार के रूप में सन 1983 में कुष्णाल साहब के संपर्क में आने का मुझे अक्सर मिला था। तब मैंने और मेरे पत्रकार मित्र परशुराम शर्मा ने आइपीएस किशोर कुणाल को बाँबी हत्या कांड की खबर दी थी। तब मैं दैनिक आज और परशुराम जी दैनिक प्रदीप में काम करते थे। वह एक ऐसा सनसनीखेज कांड था, जिसकी रिपोटिंग करके हमने भारी खतरा मोल लिया था। पर, कुणाल साहब ने उस केस को आगे बढ़ाकर हमें किसी खतरे से मुक्त कर दिया था। यदि उस समय पटना के वरीय एस पी के पद पर किशोर कुणाल नहीं होते तो राजनीतिक रूप से वह अत्यंत संवेदनशील कांड दबा दिया जाता और गलत खबर देने का आरोप हम पर लगाया जा सकता था। उस हत्याकांड को लेकर श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बाँची की उप माता राजेश्वरी सरोज दास तक भयवश पुलिस से शिकायत करने को तैयार नहीं थीं। क्योंकि उस कांड में प्रलाक्ष-परोक्ष रूप से बड़ी-बड़ी हस्तियों के नाम आ रहे थे। ऐसे मामले में कोई प्राथमिकी न हो: पुलिस को कोई सूचना न हो फिर भी खबर छाप देना बड़ा जोखिम भरा काम था। फिर भी हम दो संवाददाताओं मानन से किया इनकार ने तय किया कि यह खतरा उठाया जाये। मई, 1983 में आज और प्रदीप में एक साथ वह सनसनीखेज खबर छपी। मेरी खबर के साथ 'आज' का शीर्षक था "बॉबी की मौत से पटना में सनसनी।" चूंकि आज का प्रसार अपेक्षाकृत अधिक था, इसलिए इस स्टोरी ब्रेक को लेकर मेरा नाम अधिक हुआ। हालांकि हम दोनों पत्रकारों का समान योगदान था। इस कांड के फॉलोअप रिपोर्टिंग में परशुराम जी और आज के अवधेश ओझा नै शानदार काम किये थे हत्या की खबर छपते ही दोनों अखबारों की खबरों को आधारबना कर पटना पुलिस ने सचिवालय थाने में अंप्राकृतिक मौत का केस दर्ज किया और जांच शुरू कर दी। ईसाई कब्रगाह से बाँबी की. लाश निकाली गई। पोस्टमार्टम कराया गया। बेसरा में जहर पाया गया। दो चश्मदीदों का बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष कराया गया। जांच जब निर्णायक दौर में पहुंचने लगी तो इस केस को सी.बी.आई. के हवाले कर दिया गया। क्योंकि बड़ी हस्तियां फंस रही थीं। उच्चत्तम स्तर से हुए हस्तक्षेप के कारण सी.बी.आई. ने मामला रफादफा कर दिया। पर, लोगबाग तो बात समझ ही गये। । उस बीच भारी दबाव कोपरवाह किये बिना कुणाल ने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी ड्यूटी निभाई। संयोगवश उन्हीं दिनों एक अन्य कर्तव्यनिष्ठ अफसर आर. के. सिंह पटना के डी.एम. थे ओ बाद में केंद्रीय मंत्री बने।


हिंदु-मुस्लिम एकता के मिशाल थे आइपीएस किशोर कुणाल

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कुणाल किशोर को याद करते हुए पंत्रकार एमडी उमर अशरफ कहते हैं की बिहार के लिए बहुत बड़ा नुकसान है- नई नस्ल उन्हें पटना के महावीर मंदिर ट्रस्ट के संस्थापक के तौर पर ही जानती है। लेकिन बहुत कम लोगों को उनके बारे में पूरी तरह पता है। असल में आचार्य कुणाल किशोर एक आईपीएस अधिकारी थे, और अपने वक़्त में बड़े मकबूल और मशहूर थे। जब सरकारी पोस्ट पर थे तब उन्हें बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन इस मामले में अमेरिका जैसी विदेशी ताकत घुसी हुई थी, तो फिर मामला सुलझता कैसे ? नहीं सुलझा, दंगा फसाद हुआ। लोग मरे।


तब आचार्य कुणाल ने वे कसम खाया के हम एक उदाहरण पेश करेंगे, जहाँ सभी धर्मों के लोगों को धर्म की बुनियाद पर एक जगह लाएंगे और उन्होंने पटना में महावीर मंदिर ट्रस्ट बनाया और उसके तहत कई संस्थान खोले। बाद में उन्होंने आईपीएस के पद से इस्तीफा भी दे दिया।


महावीर आरोग्य संस्थान की। लोगों की गवर्निंग बॉडी में सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया, जिसमे इमारत ए शरिया से जुड़े मौलाना अंनिसुर रहमान कासमी साहब भी रहे। महावीर कैंसर संस्थान के लिए पहला डोनेशन दिल्ली की जामा मस्जिद के शाहीमा आमा बुखारी साहब ने दिया, और उन्ही के हाथ से इसका शिलान्यास 1993 में हुआ। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद 1993 कितना कठिन वक़्त था, जो लोग इतिहास जानते हैं उन्हें पता है।


फिर 1998 में दलाई लामा द्वारा महावीर कैंसर संस्थान का उद्घाटन किया गया। इसी बीच सभी धर्मों के लोग यहाँ आए और अपना कुछ न कुछ योगदान दिया, ताकि समाज में नफरत कम हो। मौलाना निजामुद्दीन साहब, नाजिम इमारत ए शरिया लगातार यहाँ के कार्यक्रम में शामिल होते रहे, और इसके धर्मशाला का उद्घाटन उन्होंने ही किया।


अपने निजी तजुर्बे से आचार्य कुणाल किशोर धार्मिक और जाति आधारित भेदभाव के विरोधी किस हद तक हो गए के उन्होंने अपने बेटे तक की जाति से बाहर शादी का उदाहरण पेश किया। वो लगातार समाज में सकारात्मक संदेश और बदलाव के लिए काम कर रहे थे।


उनकी कोशिश की वजह कर पूर्वी चंपारण जिले में बन रहे दुनिया के सबसे बड़े मंदिर में कई करोड़ की जमीन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने फ्री में दान कर दी। कोई भी चीज एकतरफा नहीं है। निजी जीवन में भी वो लोगों के त्वेहार-पर्व में शामिल होते रहे। आचार्य कुणाल किशोर बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। धार्मिक न्यास बोर्ड ठीक वैसा ही है जैसा वक्फ बोर्ड होता है।


आचार्य किशोर कुणाल आपका शत शत वंदन
  • हृदय नारायण झा



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जो परलोक में ले जाता

उस गाड़ी का कंफर्म टिकट है।

जिस दिन का जिसका है उसको

उस दिन ही जाना पड़ता है ।।

किस-किसी को तो कुछ भी

कहने कासमय नहीं मिलता है।

साँसें रुक जाती है अचानक

बिन बोले जाना पड़ता है ।।

ऐसा ही परलोक गमन

कर गये आचार्य किशोर कुणाल ।

शोक में डूबा जन जन खोकर

ऐसा एक बिहार के लाल ।।

मन्दिर में न्द्र वर्ष के अवसर

की कर लीपुरी तैयारी।

चले गए सब छोड़ छाड़ कर

धरी रही सारी तैयारी ।।

अमर कीर्ति के लिए रहेंगे

स्मरणीय सभी के आप ।

धर्म सनातन रोगी श्रद्धावान

जनों के सेवक आप ।।

जाति धर्म के भेद भाव से

ऊपर उठकर माना सबको ।

दलित देवो भव लिखकर

अपना धर्म बताया सबको ।।

ऐसे हे आचार्य किशोर कुणाल

आपका शत शत वंदन।

श्रद्धा सुमन समर्पण में हे

बंदनीय है शत शत वंदन ।।

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