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स्वर्ग का नजारा है माउंट आबू

  • Writer: MOBASSHIR AHMAD
    MOBASSHIR AHMAD
  • Mar 20
  • 6 min read
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रोचू शर्मा


राजस्थान का एकमात्र पर्वतीय स्थल माउंट आबू न केवल गर्मियों का स्वर्ग है बल्कि 11वीं और 13वीं सदी के बेहतरीन स्थापत्यकाल के अद्भुत नमूने दिलवाड़ा जैन मंदिरों ने इसे जैनों का प्रमुख तीर्थ बना दिया है। रेतीले टीले, हरी भरी पहाड़ियां, खूबसूरत झीलें, विशाल किले, भव्य महल, रंगबिरने परिधानों में स्त्री-पुरुष, ऊंट, हाथी, बाप, तपती धूप और शाम की ठंडी बयार जी हाँ, इन विरोधाभासों को विविधता में बदलना देखना हो तो राजस्थान का कोई जबाव नहीं। राजस्थान का इतिहास करीब 500 साल पुराना आन-बान-शान, राजे और रजबाड़े के लिए मशूहर इस राज्य में पर्यटकों के लिए मानों खजाना खुला है। यह प्रदेश अपने राजसी ठाठ-बाट के लिए जाना जाता है। यहाँ के महल, हवेलियां किले अपनी भव्यता के लिए विख्यात है। उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है। पक्षियों के लिए जगह है सरिस्का में। साइबेरियाई सारस के शीतकालीन निवास स्थान सरिस्का में भाति-भांति के पक्षी दिखाई देते हैं। उनमें से बहुत सी प्रजातियों लुप्तप्राय हैं।


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'माउंट आबू' ऐसा ही एक अनुपम दर्शनीय स्थल है जो कि केवल डेजर्ट स्टेट' कहे जाने राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है बल्कि गुजरात के लिए निर्माण 1031 ई. में गुजरात के शासक भीमदेव के मंत्री विमल शाह ने दिलवाड़ा गांव में कराया था। यह मंदिर प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित है। दूरस्सा मंदिर इसके 200 वर्ष बाद 1231ई. में बनवाया गया था। इसे गुजरात के शासक बिरधवला के मंत्रियों भाइयों वास्तुपाल और तेजपाल ने बनवाया था। यह मंदिर जैनों के 22वें तीर्थकर नेमिनाथ को समर्पित है। इतिहास के ये मूक गवाह ये दिलवाड़ा के मंदिर शिल्प की रष्टि से उत्कृष्ट कोटि का है। माउंट आबू अऋषियों और मुनियों की भी धरती रही है। इसके अतिरिक्त आज प्रजापति ब्रह्माकुमारी के मुख्यालय पांडव भवन के कारण से भी माउंट आबू की प्रसिद्धि सारी दुनिया में फैल गई है। देश-विदेश के हजारों भी 'हिल स्टेशन' की कमी को पूरा करने वाला 'सांझा पर्वतीय स्थल' है। गुजरात की सीमा से सटा यह हिल स्टेशन' चार हजार फीट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। माउंट आबू कभी राजस्थान की जबरदस्त गरमी से बदहाल पूर्व राजघरानों के सदस्यों का 'समर रिसोर्ट' हुआ करता था। कालांतर में इसे 'हिल आफ विजडम' भी कहा जाने लगा क्योंकि इसरो जुड़ी कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं ने इसे एक धार्मिक सांस्कृतिक और केंद्र के में भी विश्वात कर दिया है। इसके अतिरिक्त माउंट आबू में प्रतिवर्ष बुद्ध पूर्णिमा पर ग्रीष्मकालीन उत्पन और दिसम्बर माह में शरद उत्सव का आयोजन किया जाता है। राज्य सरकार के पर्यटक विभाग की ओर से आयोजित होने वाले इन उलाबों में यहाँ की जनजातीय लोक कलों और लोक नृत्यों आदि विविधताओं से भरपूर लोक सुभावन कार्यक्रमों का प्रदर्शन देखने लायक होता है।


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राजस्थान की अरावती श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित इस पर्वतीय स्थल के ठंढे सुहाने मौसम में पयर्टक यहाँ खिंचे चले आते हैं क्योंकि जैन मंदिर अपनी बारीक शिल्पकारी के लिए दुनियाभर में विख्यात है। माउंट आबू में दर्शनीय स्थलों की सूची में सबसे पहला नाम दिलवाड़ा जैन मंदिर का आता है। इन मंदिरों का निर्माण 11 वीं शताब्दी में हुआ है। विमल कसाही सबसे पुराना मंदिर है। इसका निर्माण 1031 हैं, में गुजरात के शासक भीमदेव के मंत्री विमल शाह ने दिलवाड़ा गांव में कराया था। यह मंदिर प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित है। दूसरा मंदिर इसके 200 वर्ष बाद 1231ई. में बनवाया गया था। इसे गुजरात के शासक विश्वकारा के मंत्रियों भाइयों वास्तुपाल और तेजपाल ने बनवाया था। यह मंदिर जजैनों के 22वें तीर्थकर नेमिनाथ को समर्पित है। इतिहास के वे मूक गवाह ये दिलवाड़ा के मंदिर शिल्प की दृष्टि से उत्कृष्ट कोटि का है। माउंट आबू अऋषियों और मुनियों की भी धरती रही है। इसके अतिरिक्त आज प्रजापति ब्रह्माकुमारी के मुख्यालय पांडव भवन के कारण से भी माउंट आबू की प्रसिद्धि सारी दुनिया में फैल गई है। देश-विदेश के हजारों ब्रह्मकुमार बंधु-भगिनियों की उपस्थिति हर समय रहती है। माउंट आबू में अछर देवी मंदिर भी दर्शनीय है। सिरोही से 85 किलोमीटर और झीलों की नगरी उदयपुर से करीब 185 किमी दूर हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य स्थित इस पर्वतीय स्थाल के डंडे और सुहाने मौसम से मोहित होकर पर्यटक दूर-दूर से खिखंचे चले आते हैं। 1219 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित यहाँ की प्रसिद्ध नक्की झील 800 मीटर लंबी और चार सौ मीटर चैड़ी है। माउंट आबू का नाम यहां स्थित प्राचीन मंदिर अबुर्य देवी के नाम पर ही पढ़ा है। 450 सीढ़ियों वाले इस मंदिर में स्थापित अकुर्दा देवी को आबू की रक्षक देवी माना जाता है। आबू की उत्पत्ति के संदर्भ में अनेक दंत कथाएं प्रचलित है। एक के अनुसार 'आबू' हिमालय पुत्र के प्रतीक रूप में जाना जाता है जिसकी उत्पत्ति अर्बद से हुई थी जिसने भगवान शिव के पवित्र बैल नंदी को बलिष्ठ सांप के चंगुल से बचाया था। माउंट आबू अनेक साधु संतों की स्थाली भी रही है। वशिष्ठ ऋषि भी उन प्रमुख संतों में से एक थे जिन्होंने पृथ्वी को दैत्यों से बचाने के लिए पवित्र मंत्रों से यज्ञ करते हुए अग्नि से चार अग्निकुल राजपूत वंशों परमार, परिहार, सोलंकी और चैहान का सृजन किया था। यह यज्ञ उन्होंने आबू की पहाड़ी के नीचे स्थित प्राकृतिक झरने के पास किया गया था। झरना गाय के सिर की आकृति वाली पहाड़ी से निकलता है अतः इसे गौमुख भी कहते हैं। इसी तरह यहां ऋषि बाल्मीकि से जुड़े कथा प्रसंग भी है। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की सबसे ऊंची चोटी कहे जाने वाला गुरू शिखर नामक पर्वत भी माउंट आबू में ही है जिसकी ऊंचाई 1722 मीटर है। यहाँ के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं-


सनसेट प्वाइंट-

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यहाँ से देखने पर सूर्यास्त का रस्य बहुत आकर्षक दिखाई देता है। ढलते सूर्य की सुनहरी रंगत कुछ पलों के लिए पर्वत श्रृंखलाओं को कैसे स्वर्ण मुकुट पहना देती है। वहाँ दूबता सूरज गेंद की तरह लटकते हुए दिखता है। यहाँ आने वाला हर इस मनोहारी दृश्य का आनंद लेना नहीं भूलता। ऐसा लगता है कि मानों सूर्य आसमान से नीचे गिर रहा है और पाताल में चल गया हो।



हनीमून प्वाइंट-

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सननोट प्वाइंट से दो किलोमीटर दूर नवविवाहित जोड़ों के लिए यहाँ हनीमून प्वाइंट बना हुआ है। शाम के वक्त यहाँ लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है, यह आंदा प्वाइंट के नाम से भी जाना जाता हैं हनीमून प्वाइंट से हरे भरे मैदान और घाटियों का विहंगम दृश्य मंत्रमुग्ध कर देता है।





गोमुख-
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आबू के बाजार से करीब ढाई किलोमीटर दक्षिण में जाने पर हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर से करीब 700 सीढ़ियां नीचे उतरने पर वशिष्ठ जी का आश्रम है। यहाँ पत्थर के बने गोमुख से सदा जल बहता रहता है, इसीलिए इस स्थान को गोमुख कहते हैं। माउंट आबू, राजस्थान के राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय भी है। प्रति वर्ष गर्मियां शुरू होने के बाद कुछ समय के लिए राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन कैंप बन जाता है। राजभवन में स्थित कला दीर्घा दर्शनीय है। माउंट आबू में राजस्थान के साथ ही गुजरात सरकार का गेस्ट हाउस भी है। इसके अलावा यहां विभिन्न पूर्व रियासतों के नाम से बने हुए 'गेस्ट हाउस' सुन्दर बादियों के मध्य स्वर्ग के समान अनुभूति करवाने वाले हैं। माउंट आबू पर भारतीय सेना का बेस कैंप भी है। यहाँ हर समय होने वाले सैनिक अभ्यास और घुड़सवारी के अनुठे करतब सैलानियों के लिए अतिरिक्त आकर्षण का केंद्र बनते हैं।


कुल मिलाकर राजस्थान के इस स्वर्ग का नजारा यह भी भीषण गर्मियों में लेना ही तो माउंट आबू से बेहतर जगह कोई और हो ही नहीं सकती। विशेष रूप से वे लोग जो बार-बार शिमला, मनाली, मसूरी, नैनीताल आदि जा चुके हैं, उनके लिए माउंट आबू जाना एक अलग अनुभव होगा। उत्तर भारत से रेल, सड़क मार्ग से आबू रोड़ पहुंचना आसान है। जो लोग एक ही बार में ठंड और गर्मी का स्वाद चखना चाहते हो उनके लिए उदयपुर, हल्दी घाटी, श्रीनाबद्वारा आदि स्थानों के बाद माउंट आबू का रूख करना चाहिए। गुजरात की सीमा के पास है इसलिए सावड़ाजी के दर्शनों के अतिरिक्त, अम्बाजी जा सकते हैं तो हिम्मत नगर, अहमदाबाद, गांधी नगर भी बहुत दूर कहाँ शेष रहता है।


नक्की झील-
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रघुनाथ मंदिर के पास ही माउंट आबू का दूसरा बड़ा आकर्षण है नक्की झील। समुद्र तल से 1200 फीट की ऊंचाई पर बनी इस झील के बीच में छोटे-छोटे टापू बने हुए हैं। रोड टापू की आकृति ऐसी है मानी यह अभी पानी में छलांग लगाने वाला है। किवदंती के अनुसार इस झील को देवताओं ने अपने नखों (नाखूनों) से खोया था, इसलिए इसे नखी या नक्की झील कहा गया। माउंट आबू में 3937 फुट की ऊंचाई पर स्थित नक्की झील लगभग ढाई किलोमीटर के दायरे में पसरी है जहां बोटिंग करने का लुत्फ अलग ही है। हरीभरी वादियां, खजूर के वृक्षों की कतारे, पहाड़ियों से घिरी झील और झील के बीच टापू, कुल मिलाकर देखें तो सारा हस्य बहुत ही मनमोहक है। इस झील में हानौका विहारद्ध की व्यवस्था है।

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