हम टैक्स क्यों दें? मुफ्तखोरी के खिलाफ अभियान चलाएं
- MOBASSHIR AHMAD

- Mar 19
- 3 min read

• तरूण कुमार निमेष
आजकल मुफ्त योजनाओं (Freebies) का चलन राजनीति का एक आम हिस्सा बन गया है। इन योजनाओं का उद्देश्य जनता को राहत प्रदान करना होता है, लेकिन गहराई से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि मुफ्त सुविधाएं आर्थिक, सामाजिक और नैतिक दृष्टि से कई नुकसान लेकर आती हैं। मुफ्तखोरी न केवल अस्थिर है, बल्कि यह एक राष्ट्र की दीर्घकालिक प्रगति और आत्मनिर्भरता को भी कमजोर करती है।
मुफ्त सुविधाएं सरकार के खजाने पर भारी दबाव डालती हैं। उन धनराशियों का उपयोग, जो बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, या औद्योगिक विकास में हो सकता था, अल्पकालिक लोकप्रिय योजनाओं पर किया जाता है। इसका परिणाम बजट घाटे के रूप में सामने आता है, जिससे सरकारें अधिक कर्ज लेती हैं या जरूरी क्षेत्रों में खर्च कम कर देती हैं।
उदाहरण के लिए, भारत के कई राज्यों में मुफ्त योजनाओं के कारण ऋण में वृद्धि देखी गई है। इस तरह की वित्तीय कुप्रबंधन अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है और निवेशकों का विश्वास कम करता है।
मुफ्त योजनाएं समाज में निर्भरता की संस्कृति को बढ़ावा देती हैं। इसके बजाय कि लोग मेहनत करके अपनी योग्यता को बढ़ाएं और अर्थव्यवस्था में योगदान दें, वे मुफ्त सुविधाओं पर निर्भर हो जाते हैं। इसके विपरीत, कौशल विकास, रोजगार सृजन और उद्यमिता को बढ़ावा देने वाली नीतियां एक स्थायी और आत्मनिर्भर भविष्य का निर्माण करती हैं। मुफ्त योजनाएं करदाताओं के पैसों से चलाई जाती हैं। इसका मतलब है कि समाज का एक छोटा वर्ग, जो कर का भुगतान करता है, उन लोगों के लिए वित्तीय बोझ उठाता है, जो इन मुफ्त सेवाओं का लाभलेते हैं। इससे करदाताओं में असंतोष पैदा होता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी मेहनत की कमाई राजनीतिक उद्देश्यों के लिए बर्बाद की जा रही है।

मुफ्त योजनाओं की संस्कृति ने चुनावी राजनीति को विकृत कर दिया है। राजनीतिक दल सबसे अधिक आकर्षक वादे करने की होड़ में लग जाते हैं, जिससे अल्पकालिक लाभ प्राथमिकता बन जाते हैं और दीर्घकालिक विकास पीछे छूट जाता
मुफ्त बिजली या पानी जैसी योजनाएं अक्सर इन सेवाओं के दुरुपयोग और बुनियादी ढांचे की उपेक्षा का कारण बनती हैं। सेवाओं को मुफ्त में देने के बजाय, सरकारों को उनकी गुणवत्ता और पहुंच में सुधार पर ध्यान देना चाहिए।
मुफ्त योजनाएं समाज में कार्य नैतिकता को कमजोर करती हैं। जब लोग देखते हैं कि बिना प्रयास के दूसरों को लाभ मिल रहा है, तो यह उनकी उत्पादकता को हतोत्साहित करता है और अधिकार की भावना को बढ़ावा देता है।
मुफ्त योजनाओं के बजाय, सरकार को संसाधनों को दीर्घकालिक विकास नीतियों की ओर मोड़ना चाहिए। जैसे
नागरिकों को रोजगार के योग्य बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और शिक्षा में निवेश।
बुनियादी ढांचे का विकासः रोजगार सृजन और जीवन स्तर में सुधार के लिए सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और उद्योगों का निर्माण।
लक्षित कल्याणः जरूरतमंदों को प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करना, जिससे संसाधनों का कुशल उपयोग हो सके।
आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहनः छोटे व्यवसायों के लिए सब्सिडी या उद्यमियों को ऋण देकर काम की संस्कृति को बढ़ावा देना।
मुफ्त योजनाएं अल्पकालिक राहत तो प्रदान करती हैं, लेकिन यह आर्थिक समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं हैं। यह संसाधनों को बर्बाद करती हैं, प्राथमिकताओं को विकृत करती हैं और समाज की नैतिक और आर्थिक नींव को कमजोर करती हैं।
सरकारों को अल्पकालिक लोकप्रियता के बजाय दीर्घकालिक राष्ट्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सशक्तिकरण और पारदर्शिता पर आधारित नीतियां ही समाज को आत्मनिर्भर और प्रगतिशील बना सकती हैं।
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