होली खेलें लेकिन
- MOBASSHIR AHMAD
- Mar 20
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पूजा दुआ
मौज मस्ती से भरा, आनन्द, उल्लास, उमंग के साथ-साथ बसंत ऋतु का प्रमुख पर्व है होली। प्राचीन काल से ही होली का त्योहार पारम्परिक सौहार्द व भाईचारे को प्रगाढ़ करने वाला रहा है लेकिन इस आधुनिक युग में होली की ठिठोली न जाने कहां गायब हो गई। मौज मस्त्री, हास परिहास का उन्मुक्त बातावरण आहिस्ता आहिस्ता समाप्त होता जा रहा है। आखिर होली का पर्व इतना विकृत व दहशत भरा क्यों हो गया है?

अक्सर देखा जाता है कि देवर भाभी के साथ अथवा जीजा साली के साथ असबील हरकतें कर बैठा और दो मिनट में होली का उत्साह तनाम में बदल गया। होली का मतलब किसी को भी ज्यादा रंगने से या जबरन अशिकता पूर्ण रंग डालने से नहीं हैं। प्यार के साथ और सन्नी मन से डाला गया चुटकी भर गुलाल भी काफी महत्वपूर्ण है जो जिन्दगी भर नहीं छूट पाता।
गुब्बारे में रंग भर चार पैकिना, कीचड़ उछाल देना या रंग में तेजाब मिलाबार डाल देगा, ये राथ अतिष्ठता ही है। ऐसी हरकतों का अंजाम तो और भी दुस्खद होता है जैसा कि पिछली होली के अबसर पर सीमांचल के शरारती युवकों ने रंग में तेजाब मिला कर लोगों पर डाल दिया जिससे कई लोगों की त्वचा जल गई और कई भयंकर दुर्घटना के शिकार हो गये।

होली के पुनीत पर्व पर कई लोग नशा करते हैं या भांग पीते हैं। ऐसे लोगों को अपना ख्याल नहीं रहता और आपस में गाली गलौज करते हैं या इपर उधर गिर पड़ते है। नशे की भयंकर बुराई से परिचित होकर भी नशा करना,कहां की समझदारी है।
आजकाल होली में उपयोग किए जाने वाले रंगे जो दिखने में काफी चटक होते हैं, का प्रचलन बढ़ गया है। इन रंगों का प्रयोग वस्त्रोद्योग में विभिन्न भागों को रंगने के कार्य में होता है। ये रंग त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं फिर भी लोग उन्हें दूसरों की लगा देते हैं और यह पर्व पीड़ादायी हो जाता है।
होली के अवसर पर मजाक मजाक में अबील पत्रा अथवा गदि टाइटल या महिलाओं के साथ भी छेड़साड़ जैसे घिनौने कार्य बढ़ते जा रहे हैं। होली की आड़ में इस तरह की अश्रीलता कहीं भी देखी जा सकती है। अच्छे भले सभ्य लोगों को होली के इस विकृत रूप से पृष्णा होने लगी है। हृहमें तो यह फूहड़ त्योहार जरा भी पसन्द नहींा जैसी टिप्पणियां सुनाई देने लगी हैं।

आत्मीयता का यह पर्व मनो मालिन्य पैदा कर सकता है अतः अपनी सीमाओं को ध्यान में रख कर शिष्टतापूर्ण तरीके से होली उत्साह से खेलें। फिर देखिने कितना मजा आता है। जीवन की कुण्ठाओं को त्यागकर इस पवित्रा उत्सव को खेलें (तभी होली की सार्थकता पूर्ण हो पाएगी ।
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