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भूमि सर्वे से लोग परेशान इससे नफा होगा या नुकसान...

  • Writer: azhar rahmani
    azhar rahmani
  • Nov 30, 2024
  • 13 min read

Updated: Dec 1, 2024

रोशन झा


दुर्गा पूजा, दीपावली और छठ पूजा भी बीत चुका है लेकिन अन्य साल की तरह इस साल हर एक घर में जो लोग अपनी परंपरा को निभाने के लिए आया करते थे वह इस बार नहीं पहुंच पाए। मैंने कई लोगों से पूछा कि क्या आपका बेटा इस बार दिवाली और छठ पूजा में आया कि नहीं, तो उनका जवाब था नहीं। कारण पूछने पर उन सब का कहना था की बेटा बड़े शहर में बड़ी कंपनी में जॉब करता है। अधिक छुट्टियां नहीं मिलती है। इस बार की छुट्टियां जमीन सर्वे कराने के चक्कर में खत्म हो गई है। यही कारण है कि इस साल ना तो उन्हें दुर्गा पूजा और ना दिवाली-छठ में घर आने का मौका मिला।


दरभंगा जिले के विनोद कांत कुमर बताते हैं कि मैं हर साल छठ करने के लिए गांव जाया करता था। पत्नी के साथ-साथ मैं खुद भी छठ पूजा करता हूं। लेकिन इस साल लगता है गांव नहीं जा पाऊंगा और कोलकाता में रहकर ही छठ पूजा का आयोजन करना होगा। वह बताते हैं कि गांव से एक दिन, सरपंच चाचा जी ने फोन किया था और कहा था कि बिहार सरकार के द्वारा जमीन सर्वे करवाया जा रहा है। सो जल्द से जल्द गांव आ जाओ, नहीं तो समय बीत जाने पर परेशानी होगी।


गांव जाने के उपरांत पता चला कि किसी जमीन का केबाला पेपर फट चुका है तो किसी जमीन का खतियान गायब है। किसी जमीन का खाता और खेसरा नंबर जो हमारे पास दर्ज है वह सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार गलत बताया जा रहा है। किसी बीत जमीन का रसीद कटा था तो किसी का अब तक कटा -हर ही नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि लिए पेपर दुरुस्त किए बिना जमीन का सर्वे असंभव था।


इस कहानी में यह परेशानी भले एक विनोद बाली कांत कुमार की है लेकिन बिहार सरकार द्वारा जमीन वाब सर्वे शुरू कराने के बाद लगभग हर घर की यह की परेशानी है। कोई ऐसा गांव, टोला या कस्बा नहीं है है। जहां के लोग जमीन सर्वे के कारण परेशान ना हो रहे हो। तो आइये डिटेल में जानते हैं क्या है बिहार यही में जमीन सर्वे की कहानी।


कहानी की शुरूआत करने से पहले यह जान लेते हैं की बिहार में कब-कब जमीन का सर्वे करवाया गया है। अमानत का काम कर रहे प्रेम कटा प्रकाश झा उर्फ अमीन साहब बताते हैं कि बिहार में कि पहला जमीन सर्वे 1890 में अंग्रेजों ने करवाया था था। जिसे पूरा 1910 ईस्वी में किया गया था। गांव देहात नोद में इस सर्वे को पुरना सर्वे कहा जाता है। पुराने सर्वे मीन पर किसी भी आदमी को किसी तरह की कोई आपत्ति यह नहीं है। जब कभी गांव में जमीनी विवाद होता है तो है वह पुराना सर्वे के आधार पर आपसी सहमति से सुलह कर लेते हैं।


देश आजाद होने के बाद बिहार सरकार द्वार स्वतंत्र भारत में पहली बार जमीन सर्वे का काम 1972 में शुरू किया गया जो 1990 में पूरा हुआ। सर्वे इस सर्वे को रीविजनल सर्वे अर्थात आर एस के नाम से जाना जाता है। लोग इसे नया या नबका सर्वे भी कहते हैं। जानकारों का मानना है कि इस जमीन सर्वे को आज भी बिहार के अधिकांश लोग मानने से इनकार करते हैं। कारण साफ है कि पुराने जमीन सर्वे में अगर किसी के पास एक बीघा जमीन है तो उसका अंश कट कर दूसरे के हिस्से में जा चुका है। वहीं दूसरी ओर जिनके हिस्से में गया है उस परिवार मैं के लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वज ने जमीन सर्वे के दौरान कोई ना कोई साक्ष्य जरूर दिया होगा जिस कारण हमारे हिस्से में जमीन आई है।



हमने आपको पहले ही बता दिया है कि बिहार के अधिकांश लोग पुराने जमीन सर्वे को ही सही मानते हैं लेकिन बिहार सरकार नए सर्वे को आधार मानकर काम कर रही है। यही कारण है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने गांव देहात में बढ़ रहे जमीन विवाद को कम करने के लिए लगातार एक के बाद एक नए नियम लागू किए।


मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले नीतीश कुमार ने जमीन संबंधित कागजातों का डिजिटलाइजेशन करवाना शुरू किया। उदाहरण के लिए किसी भी प्रखंड, पंचायत, गांव और मौजे में फलाना खाता और खेसरा किसके नाम पर है और रकबा कितना है, उसमें किसका कितना अंश बनता है, यह सब लोगों को वेबसाइट के माध्यम से उपलब्ध करवाया। अब आप बस एक वेबसाइट पर जाकर पूरे बिहार की जमीन रिकॉर्ड को देख सकते हैं। यहां यह बता देना जरूरी है की वेबसाइट पर जो जमीन संबंधित रिकॉर्ड अपलोड किया गया है वह पुराने सर्वे के अनुसार नहीं बल्कि नए सर्वे के अनुसार है।


लोगों को नक्शा प्राप्त करने में परेशानी हो रही थी, इसका भी उपाय कर दिया गया और अब लोगों को आसानी से नक्शा उपलब्ध हो जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगातार रजिस्ट्री कानून में भी संशोधन करते हुए एक के बाद एक नए नियमों को लागू किया। जैसे पुश्तैनी जमीन का आपसी बटवारा करने के लिए लोगों से कहा गया कि बस नॉमिनल अमाउंट देकर आपस में रजिस्ट्री अर्थात बंटवारा कर लीजिए। जबकि किसी भी जमीन की रजिस्ट्री के लिए सरकार को हजारों लाखों रुपए का लगान देना होता है। जमीन रजिस्ट्री के बाद तुरंत दाखिल खारिज हो जाए इस पर भी नीतीश सरकार ने विशेष ध्यान दिया।


लाख प्रयास के बाद भी जब बिहार में जमीनी विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा था तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड को नए तरीके से दुरुस्त करने के लिए जमीन सर्वे करने का फैसला लिया।


साल 2012 में नीतीश सरकार द्वारा बिहार राने विशेष सर्वेक्षण बंदोबस्त नियमावली 2012 को लागू है। किया जाता है। इसके बाद 2020 में बिहार सरकार रही द्वारा बिहार के 20 जिलों में जमीन सर्वे का काम मों शुरू किया जाता है, और कहा जाता है कि जीवित है। रैयत अर्थात जमीन मालिक के नाम पर नया रिकॉर्ड सुन दर्ज किया जाएगा। नया खतियान आपसी बंटवारे के मों बाद जिनके हिस्से में जो जमीन है उसके नाम पर सी होगा। आसान भाषा में कहा जाए तो अगर आपके स पिता के पास चार बीघा जमीन है, उनके नाम से सर्वे त हुआ है, और आप दो भाई हैं, तो आपके हिस्से में की जो दो बीघा जमीन आती है उसका नया खतियान का नए सर्वे के अनुसार आपका नाम पर बनेगा। इसके चलिए आपको सर्व अधिकारी के पास जमीन होने का र सबूत या दस्तावेज प्रस्तुत करना होगा।


जमीन सर्वे करने के लिए बिहार सरकार द्वारा हर पंचायत और प्रखंड में अमीन, सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी कानून को और लिपिक की पद स्थापना = की गई है। इन लोगों के द्वारा सर्वे में गांव की सीमा, भूखंडों का सीमांकन एवं जमीन संबंधी तथ्यों की जांच पड़ताल की जाएगी। इतना ही नहीं जमीन सर्वे का काम सही ढंग से हो रहा है या नहीं हो रहा है - इसके लिए राज्यस्तर पर नोडल अफसर को नियुक्त - किया गया है।


पहले चरण में बिहार के जिन जिलों में जमीन सर्वे का काम शुरू किया गया उसमें नालंदा, लखीसराय, मुंगेर, जहानाबाद, अररिया, सुपौल, अरवल, कटिहार, किशनगंज, जमुई, खगड़िया, शिवहर, सहरसा, सीतामढ़ी, पूर्णिया, शिवहर, चंपारण, बांका, शेखपुरा, बेगूसराय और मधेपुरा का वे नाम शामिल है। इसके अतिरिक्त बिहार के शेष जिलों में में जमीन सर्वे का काम साल 2024 से शुरू किया गया है। मामला यहीं से बिगड़ता चला गया। आइये के पहले जान लेते हैं कि गांव देहात में क्या हुआ और का लोगों द्वारा क्यों विरोध किया जा रहा है।


मधुबनी के 85 वर्ष के रमेश झा कहते हैं की एक दिन उन्हें गांव के व्हाट्सएप ग्रुप से इस बात की जानकारी मिली कि उनके गांव में जमीन सर्वे को ना लेकर आम बैठक का आयोजन सरकार पंचायत भवन पर होने जा रहा है। अधिक से अधिक लोगों की को आने के लिए आग्रह किया गया था। वे जब वहां पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि बिहार सरकार के द्वारा जमीन का सर्वे करवाया जा रहा है। इसके लिए उन्हें फॉर्म 2 और फॉर्म 3 भर कर देना होगा। उन्हें बताया गया कि फॉर्म 2 में सेल्फ डिक्लेरेशन अर्थात अपना पारिवारिक जानकारी देना है। आपके पास कौन सी जमीन है, उसका खाता और खेसरा नंबर कितना है, रकबा क्या है, चौहद्दी क्या है, आदि। फॉर्म नंबर 3 में उनसे कहा गया कि अगर जमीन पुश्तैनी है तो आपको वंशावली देना होगा, ताकि आपका हिस्सा कायम हो सके। हमें यह भी बताया गया कि बेटियों का नाम हर हाल में देना है।


जैसे-जैसे गांव में अधिकारियों के द्वारा आम बैठक कर जमीन सर्वेक्षण के बारे में जानकारियां दी जा रही थी वैसे-वैसे लोगों के मन में दुविधा उत्पन्न हो रही थी। लोग आनन-फानन में जमीन का कागज तलाशना शुरू कर चुके थे। किसी के पास कागज उपलब्ध था तो किसी के पास नहीं। किसी को अपना खाता खेसरा मालूम था तो किसी को नहीं। किसी को तो यह भी नहीं पता था कि उसके पास किस मौजे में कितनी जमीन है। कुल मिलाकर कहा जाए तो सब के सब महाजाल में फंस गए थे और निकलने का रास्ता तलाश रहे थे, जो नहीं दिख रहा था।



लोग अमीन के पास दौड़ने लगे। आए दिन अखबारों में नई-नई जानकारियां जमीन सर्वेक्षण को लेकर दी जाने लगी। इन जानकारी से लोगों का कंफ्यूजन दूर होने के बदले और बढ़ता चला गया। लोकल यूट्यूब चैनल अपने-अपने स्तर से बिना जांच पड़ताल की जानकारियां देने लगे।


अमीन प्रेम प्रकाश झा बताते हैं कि सर्वे का काम शुरू होते ही अचानक हमारे पास ग्राहकों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ। अमूमन दिन में एक से दो ग्राहक आया करते थे, वह अब बढ़कर 25 से 30 होने लगे। पहले रात के समय में कोई नहीं आया करते थे तो अब सुबह 5:00 से लेकर रात 10:00 बजे तक दफ्तर पर ग्राहकों की भीड़ लगने लगी। सब अपने ग्राहकों की परेशानी को दूर करने के लिए और का उनके सवाल का जवाब देने के लिए मुझे लगा कि मेरे मन में जो सवाल चल रहे हैं उसे पहले मुझे खुद न हल कर लेना चाहिए तब ग्राहकों को बताना चाहिए। को संतुष्टि के लिए सबसे पहले मैं खुद पंचायत सरकार का भवन पर पहुंचा और अधिकारियों से रूबरू हुआ।


मेरा पहला सवाल था की जमीन सर्वे में आप किस सर्वे को आधार मान रहे हैं, नया या पुराना। खाता और खेसरा नंबर कौन सा देना है नया या - पुराना। यह संपूर्ण इलाका बाढ़ ग्रस्त रहा है, किसी - के पास कोई कागज नहीं है, सरकारी रिकॉर्ड रूम से भी गायब है, ऐसी स्थिति में क्या किया जाएगा। मान लीजिए अपनी बेटी या बहन का नाम देने के लिए कहा है, अगर बेटी या बहन के द्वारा हिस्सेदारी मांगी जाती है तो ऐसी स्थिति में क्या होगा ?


हमारे एक भी सवाल का जवाब पंचायत सरकार भवन पर उपस्थित भूमि सर्वेक्षण अधिकारियों के पास नहीं था। बात को टालने के लिए और शिविर में पहुंची भीड़ को शांत करने के लिए उन्होंने बस इतना कहा कि आप दोनों डाटा दे दीजिए। मतलब खाता और खेसरा दोनों नया और पुराना दे दीजिए जबकि फॉर्म में बस एक ही कॉलम है और उसमें नया और पुराने का कोई उल्लेख नहीं है।


लोगों को पहले कहा गया की वंशावली बनाने के लिए आपको कोर्ट से शपथ पत्र देना होगा और इसके बाद सरपंच के पास जाकर वंशावली बनानी होगी। अचानक कोर्ट परिसर में बढ़ी भीड़ को ध्यान में रखते हुए बाद में सरकार ने फैसला लिया कि । वंशावली बनाने के लिए कोर्ट कचहरी की कोई जरूरत नहीं है। सादे पन्ने पर आवेदक अपनी वंशावली खुद बनाकर खुद से सत्यापित कर जमा कर सकते हैं। इसका परिणाम यह हुआ की वंशावली में अधिकांश लोगों ने बेटियों का नाम देना बंद कर दिया।


इस मामले में जब हमने एक दरभंगा के सरपंच प मीनू कुमारी से पूछा तो उन्होंने बताया कि हम जानते हैं कि आवेदक द्वारा बहन और बेटी का नाम छुपाया ना जा रहा है, बावजूद इसके हमें मजबूरन हस्ताक्षर नी करना पड़ रहा है। एक दो लोगों को हमने रोकने का भी काम किया था लेकिन उनका कहना था कि हमें बेटियों को हिस्सा नहीं देना और ना ही उनसे एनओसी के अर्थात नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना है। अमीन प्रेम प्रकाश झा बताते हैं कि हमारे पास रोज ऐसे दर्जनों ग्रामीण आते हैं जिनके पास कोई जानकारी नहीं होती। वे बस फाइल उठा कर ले आते हैं, हम पढ़ने के बाद उन्हें एक लिस्ट बना कर देते हैं कि फैलाने मौजे में फलाना खाता और फालना खेसरा नंबर आपका और आपके पूर्वज का है।


जमीन सर्वे कराने के लिए एक परिवार का खर्च हो रहा दो से तीन लाख रुपया


दरभंगा के योगेंद्र झा बताते हैं कि उनके पिता चार भाई थे। चार में से तीन का निधन हो चुका है। एक चाचा जी जीवित हैं जो काफी बूढ़े हो चुके हैं। सभी के बाल बच्चे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता सहित भारत के अन्य बड़े शहरों में कमाई करते हैं। जमीन सर्वे की घोषणा होने के बाद जब हम लोगों ने कागज ढूंढना शुरू किया तो पता चला कि अधिकांश कागज गायब है। हमें एक फाइल में पिता द्वारा तैयार किया गया एक पेपर मिला जिस पर सभी जमीन के नाम के साथ-साथ नये और पुराने सर्वे के अनुसार उसका खाता और खेसरा नंबर लिखा हुआ था। गांव की भाषा में उस जमीन को किस नाम से पुकारा जाता है यह भी लिखा हुआ था। अब हम में से किसी के पास छुट्टी नहीं है और मैं गांव में रहता हूं। तय हुआ कि एक अमीन को बुलाकर पहले इस बात की जांच करवाई जाए कि कौन सा पेपर हमारे पास है और कौन सा नहीं। जिस जमीन का पेपर हमारे पास उपलब्ध नहीं है उसे ऑफिस जाकर उपलब्ध करवाया जाए। अमीन को पूरा साट्टा अर्थात जिम्मा दे दिया गया है। अमीन द्वारा इस काम पर दो से तीन लाख रुपए खर्च होने की अनुमानित राशि बताई गई है।


एक चाय वाले का दावा पूरा खगड़िया जिला हमारा है, हमारे पास जमीन का खतियान उपलब्ध है



जमीन सर्वे स्टोरी के दौरान हमारी मुलाकात खगरिया रेलवे स्टेशन पर चाय दुकान के मालिक दिलीप राम से होती है। बिहार के मुख्यमंत्री सहित बिहार के राज्यपाल को एक पत्र लिखकर उन्होंने आग्रह किया है की असली खतियान से ही जमीन का सर्वे करवाया जाए। उनका दावा है कि उनके पूर्वजों को बनेली राज द्वारा खगड़िया जिले की अधिकांश जमीन दान में दी गई है जिनका सबूत उनके पास है। वे कई वर्षों से कोर्ट में इसको लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। दिलीप राम का एक हाथ किसी एक्सीडेंट में कट चुका है। अब उनका बेटा चाय दुकान चलाता है और वह रेलवे स्टेशन पर पानी की बोतल बेचते हैं। उन्हें आज भी भरोसा है कि कोर्ट से उन्हें न्याय जरूर मिलेगी और उन्हें उनका हिस्सा या मुआवजा दिया जाएगा।


बिहार सरकार के मंत्री और अधिकारियों का अलग-अलग दावा


जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया था की का जमीन सर्वे को लेकर लोगों के मन में न सिर्फ संसय की है बल्कि डर भी बैठ चुका है। इधर बिहार सरकार है के मंत्री और अधिकारी अलग-अलग बयान देकर स लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि यह जमीन क सर्वे आपको तंग करने के लिए नहीं बल्कि आपके च जमीन की रिकॉर्ड को दुरुस्त करने के लिए किया जा रहा है। बिहार सरकार में भूमि राजस्व मंत्री दिलीप जायसवाल कहते हैं कि हमने अधिकारियों को व आदेश दे दिया है कि विवादित जमीन का सर्वे अभी ना किया जाए। बिहार में 20% विवादित जमीन है। न इसका सर्वे बाद में किया जाएगा। 80% जमीन पर किसी तरह का कोई विवाद नहीं है।


राजस्व और भूमि सुधार विभाग के सचिव जय सिंह कहते हैं कि लोगों के पास जो भी जमीन के सबूत है उन्हें अधिकारियों के पास जमा करवानी चाहिए। अगर एक भी सबूत नहीं है तो डिटेल भरकर दे देनी चाहिए। वेरिफिकेशन के दौरान हम देखेंगे कि अमुक आदमी के द्वारा जो जानकारियां दी गई है वह की सही है कि नहीं। जमीन कागज उपलब्ध करवाने के न्य नाम पर अगर किसी रिकॉर्ड रूम या अभिलेखागार र में पैसे की मांग की जाती है तो लोगों को शिकायत र दर्ज करवानी चाहिए हम उचित कार्रवाई करने का आदेश दे चुके हैं।


पूरी कहानी पढ़ने के बाद इतना तो तय है की बिहार सरकार द्वारा बिहार में जमीन सर्वे करवाने का जो फैसला लिया गया है वह उतना आसान नहीं है ने जितना दिख रहा है। लोगों की मांग पर सरकार ने इसे तीन महीने के लिए बढ़ा दिया है। अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव भी होना है। जमीन सर्वे को लेकर सभी लोगों में जबरदस्त आक्रोश है। अगर बिहार सरकार इस जमीन सर्वे को आसान नहीं बनती न है और कोई बड़ा फैसला नहीं लेती है तो संभव है - आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा जदयू को इसका नुकसान उठाना पड़ जाय।


जमीन सर्वे करने से क्यों डर रहे हैं समाज के अधिक लोग


बिहार में हो रहे जमीन सर्वे से परेशान तो सब है लेकिन सवर्ण समाज कुछ अधिक डरा हुआ है। उन्हें डर है कि जिस जमीन का पेपर उनके पास नहीं है और उनके बाप दादा सालों साल से उसे जमीन पर बसे हुए हैं या उस खेत को जोत रहे हैं, सरकार जमीन सर्वे के नाम पर उसे हड़पना चाहती है। सरकार कहती तो नहीं है लेकिन उनका उद्देश्य साफ दिख रहा है कि जिस जमीन का पेपर किसी के पास ना हो उस पर सरकारी जमीन होने की मोहर लगा दी जायेगी। लोगों का कहना है कि किसी भी जमीन को सरकारी घोषित करने से पहले सरकार को भी जमीन का दस्तावेज दिखाना चाहिए। मान लेते हैं कि हमारे पास पेपर नहीं है लेकिन सरकार के पास उचित पेपर है इसका क्या सबूत है। अगर हमारे पास पेपर नहीं है और राज्य सरकार के पास भी पेपर नहीं है तो इसका साफ मतलब है कि वह जमीन हमारा है। अब तक जिस तरीके से चला आ रहा है इस तरह से चलते रहने देना चाहिए। आसान भाषा में कहा जाए तो कब्जाधारी जमीन मालिक के नाम पर सर्वे किया जाना चाहिए।


अभिलेखागार और रिकॉर्ड रूम के चक्कर लगा रहे लोग



दरभंगा महाराज जमीन कार्यालय में काम कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि जब से सरकार ने जमीन सर्वे की समय सीमा को बढ़ा दी है तब से भीड़ कमने लगी है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। जमीन सर्वे स्टार्ट होने से पहले जहां मुश्किल से 10 से 15 लोग आया करते थे। वहीं अब 200 से 500 लोग आया करते हैं। कई जमीन के पेपर तो हमारे पास भी उपलब्ध नहीं है। हम लोग तय राशि के अनुसार पैसे लेते हैं और लोगों को पेपर देते हैं। रिकॉर्ड रूम की तो और हालत खराब है। लोग चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उनका काम नहीं हो रहा।


बेगूसराय रिकॉर्ड रूम की भी वही हालत है। सिमरिया के रहने वाले अभिषेक नामक एक लड़के ने बताया कि वे कई दिनों से ऑफिस का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उन्हें अपनी जमीन का खतियान नहीं मिल रहा। लगता है उन्हें मुंगेर जाकर देखना होगा। वह यह भी बताते हैं कि बेगूसराय जिला पहले मुंगेर जिला का हिस्सा हुआ करता था यही कारण है कि यहां के लोगों को कभी बेगूसराय तो कभी मुंगेर का चक्कर लगाना होता है।


खगड़िया के लोगों को तो और अधिक परेशानी हो रही है। यहां तो एक अलग कहानी सुनाने को मिली। दिनेश यादव नामक युवक ने बताया कि मुगल बादशाह अकबर ने पहली बार पूरे देश में जमीन का सर्वे करवाया था। उनके महामंत्री टोडरमल ने जरी कड़ी का निर्माण कर हमें यह बताया कि जमीन की नापी कैसे होती है। लेकिन वह पूरे देश में जमीन की मापी कर आए लेकिन खगड़िया और इसके आसपास जिले में जमीन की नापी कभी नहीं हो सकी। इसलिए इसे फर्क किया अर्थात फरकिया कर छोड़ दिया गया। वह बताते हैं कि अधिकांश जमीन पानी में डूबे होने के कारण यहां की जमीन को टोपोलैंड के नाम से जाना जाता है।


जमीन सर्वे के कारण आखिरकार क्यों हो रहा विवाद


भूमि राजस्व विभाग में काम कर रहे एक अधिकारी ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि भूमि सर्वेक्षण कानून को देखकर लगता है कि अधिकारियों ने ए.सी. हॉल में बैठकर सारे नियम बना डाले हैं। कानून बनाने से पहले ना तो लोगों से परामर्श लिया गया और ना ही धरातल पर उतरकर इस बात का अध्ययन किया गया की भूमि सर्वे होने से किन-किन बातों को लेकर परेशानी हो सकती है।


उनका यह भी कहना है की जमीन सर्वे को धरातल पर स्टार्ट करने से पहले सरकार को पहले तैयारी कर लेनी चाहिए थी। ऐसा लगता है कि सरकार ने तैयारी किए बिना जमीन सर्वे को स्टार्ट कर दिया। राज्य सरकार को सबसे पहले अभिलेखागार या रिकॉर्ड रूम में जितने भी दस्तावेज उपलब्ध है उसे ऑनलाइन उपलब्ध करवा देना चाहिए। उदाहरण के लिए किसी का केवाला पेपर खो गया है और राज्य सरकार कहती है कि 700 रुपये लेकर वह केबाला पेपर देने को तैयार है। वर्तमान समय में लोग केवाला पेपर के लिए ऑफिस का चक्कर लगा रहे हैं और दलालों के चककर में फंसकर 3000 से 5000 रुपये तक खर्च कर रहे हैं। अगर सरकार केवाला पेपर को ऑनलाइन उपलब्ध करवाती है तो लोगों को ना तो ऑफिस का चक्कर लगाना होगा और ना ही उन्हें तय राशि से अधिक पैसे खर्च करने होंगे।

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